अपने एक मंत्री से राजा ने पूछा की गृहस्थ जीवन में रहकर भी, क्या मनुष्य को भगवान को प्राप्त कर सकता है , राजा के मंत्री ने उत्तर दिया, "ऐसा हो संभव है।” राजा ने पूछा, “यह किस प्रकार हो सकता है ?" राजा के मंत्री ने उत्तर दिया, "इसका सटीक उत्तर तो आपको घने जंगल में रहने वाले महात्मा जी से ही मिल सकता हैं।"
राजा अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए दूसरे दिन मंत्री को को साथ लेकर उन महात्मा जी से मिलने चल दिए। कुछ दूर चलकर मंत्री ने कहा, “महाराज, ऐसा नियम है कि जो उन महात्मा जी से मिलने जाता है, वह रास्ते में चलते हुए कीड़े-मकौड़ों को बचाता चलता है। यदि एक भी कीड़ा पांव से कुचल जाए तो महात्मा जी श्राप दे देते हैं।"

राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली और खूब ध्यानपूर्वक आगे की जमीन देख-देखकर पैर रखने लगे। इस प्रकार चलते हुए वे महात्मा जी के पास जा पहुंचे।
महात्मा जी ने दोनों को सत्कारपूर्वक बिठाया और राजा से पूछा कि आपने रास्ते में क्या-क्या देखा मुझे बताइए । राजा ने कहा, “भगवन् मैं तो आपके श्राप के डर से रास्ते के कीड़े-मकौड़ों को देखता आया हूं। इसलिए मेरा ध्यान दूसरी ओर गया ही नहीं, रास्ते के दृश्यों के बारे में मुझे कुछ भी मालूम नहीं है।"
इस पर महात्मा ने हंसते हुए कहा, "राजन यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। जैसे मेरे श्राप से डरते हुए तुम आए, उसी प्रकार ईश्वर के दंड से डरना चाहिए, कीड़ों को बचाते हुए चले, उसी प्रकार दुष्कमों से बचते हुए चलना चाहिए।
जिस सावधानी से तुम मेरे पास आए हो, उसी से जीवनक्रम चलाओ तो गृहस्थ में रहते हुए भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो।" राजा ठीक उत्तर पाकर संतोषपूर्वक लौट आए।
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