झील का चांद | एक बार एक व्यक्ति किसी प्रसिद्ध संत के पास गया और बोला, " हे गुरुवर, मुझे जीवन के पूर्ण सत्य सार्थक का ज्ञान है। मैंने सभी शास्त्रों का अध्ययन भी है। परन्तु फिर भी मेरा मन किसी भी काम में नहीं लगता। मेरा मन भटकने लगता है जब भी कोई काम मैं करने बैठता हूं तो और फिर मैं उस काम को छोड़ देता हूं। आखिर इस अस्थिरता का क्या कारण है ? कृप्या मेरी इस समस्या का समाधान कीजिए।" मेरा लक्ष्य बताये .
संत ने उसे रात का इंतजार करने को कहा रात होने पर एक झील के पास वह उसे ले गए और झील के अंदर चमचमाते चांद केप्रतिबिंब को दिखाकर बोले, “देखो एक चांद आकाश में है और झील में भी एक चाँद है और इसी झील की तरह तुम्हारा मन भी है। तुम्हारे पास ज्ञान तो बहुत है लेकिन तुम उसका प्रयोग करने की बजाय सिर्फ उसे अपने मन में लेकर बैठे हो, ठीक उसी तरह जैसे झील असली चांद का प्रतिबिंबलेकर बैठी है तुम्हारा ज्ञान तभी सार्थक हो सकता है जब तुम उसे अपने व्यवहार में एकाग्रता व संयम लाने की कोशिश करो।"
झील का चांद तो मात्र एक भ्रम है। भला यह चांद आकाश के चंद्रमा की बराबरी कहां कर सकता है? उसी तरह तुम्हें काम में मन लगाने, के लिए स्वयं को आकाश के चंद्रमा की तरह बनाना है। झील का चंद्रमा पानी मे कंकड़ पत्थर गिरने पर हिलने लगता है। जरा-जरा सी बात पर तुम्हारा मन भी डोलने लग जाता है।
जीवन में तुम्हें अपने ज्ञान व विवेक को नियमपूर्वक प्रयोग में लाना होगा तभी तुम अपना लक्ष्य हासिल कर सकोगे। थोड़ी परेशानी तुम्हें शुरू में आएगी किन्तु कुछ- समय बाद तुम अभ्यस्त हो जाओगे। व्यक्ति संत का आशय समझ गया।
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