गौतम बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल की कहानी विश्व भर में युद्ध, संघर्ष, विनाश का दौर चल रहा है। लोगों के दिलों से घृणा को दूर करना और उनके दिलों को एकजुट करना वास्तव में बहुत नाजुक है। ऐसी स्थिति में केवल बुद्ध की शिक्षा ही मनुष्य को बचा सकती है हम आपको गौतम बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल की कहानी के अनुसार बताते है एक समय की बात है। अंगुलिमाल एक डाकू था। जो भी उसके घर के पास से गुजरता था, वह उसे मारकर उसके पकौड़े खा लेता था। उन्होंने 100 लोगों को पकौड़े खिलाने का संकल्प लिया 99 पूर्ण हो गये।

गौतम बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल की कहानी
महात्मा गौतम बुद्ध उसके रास्ते से गुजरते थे। अंगुलिमाल ने दूर से बुद्ध को आते देखा। सोचने लगा- सौवें आदमी को मारकर ही मेरी प्रतिज्ञा पूरी होगी, लेकिन बुद्ध के सुंदर मुख को देखकर उसने कहा- हे श्रमण, तुम अपने जीवन की परवाह नहीं करते। क्या आप नहीं जानते, यह अंगुलिमान का क्षेत्र है। मैं तुमसे कहता हूं कि चले जाओ नहीं तो मैं तुम्हें मार डालूंगा। तुम अकेले और निहत्थे हो, तुम्हें देखकर मेरा मन बदल गया है। आख़िरकार मैं फिर से 100 पूरा कर लूँगा।
भगवान बुद्ध ने कहा- 'अंगुलिमाल! हम अपने रास्ते पर हैं। हालाँकि, यह भी करो, अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हें अपनी शपथ पूरी करनी है। बुद्ध की इस बात पर अंगुलिमाल आश्चर्यचकित हो गया और सोच में पड़ गया। बुद्ध ने भी कहा- अंगुलिमान! अच्छा बताओ अपने इस ब्रांड से तुम इस पेड़ की शाखा काट सकते हो।
अंगलूमल ने कहा-यह कौन सी बड़ी बात है। कटलेट के एक ही झटके से उसने पेड़ की शाखा काट कर रख ली। बुद्ध ने भी कहा- ठीक है, अब क्या तुम इस शाखा को दोबारा जोड़ सकते हो? यह सुनकर अंगुलिमाल ने कहा- यह तो अघुलनशील है।
बुद्ध ने भी कहा- अंगुलिमाल! काटना आसान है, लेकिन जोड़ना नाजुक है। हम जोड़ने का काम करते हैं, काटने का नहीं। सचमुच एक बच्चा वह काम कर सकता है जो आप करते हैं।
अंगुलिमाल पर बुद्ध के वचनों का गहरा प्रभाव पड़ा। उसने अपना ब्रांड और हथियार नीचे फेंक दिए और प्रव्रज्या मांगी।' आओ भिक्षु!' यह कहकर भगवान ने उन्हें दीक्षा दे दी।
इससे यह सीख मिलती है कि हिंसा करना बेहद आसान है, लेकिन किसी को अपना बनाना बेहद नाजुक है। किसी भी चीज़ को तोड़ना बेहद आसान है लेकिन उसे बनाना बेहद नाजुक है। जो व्यक्ति सृजनकर्ता है वह महान है और जो व्यक्ति विध्वंसक है वह शैतान है।
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