प्रकृति किसी न किसी रूप में सजा अवश्य देती है। महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ने वाले महायोद्धा भीष्म पितामह शरशय्या (बाणों की सेज) पर पड़े थे और अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें अपना प्रणाम कहने उनके पास श्रीकृष्ण व अर्जुन आए।

भीष्म पितामह ने श्रीकृष्ण से कहा, जीवन भर वह एक व्रती रहे, कभी किसी के साथ अन्याय नहीं किया। अब यह उन्हें कैसी और किस कर्म की सजा मिल रही है ?
श्रीकृष्ण सुनकर मुस्कुराए। फिर उन्हें सात जन्म पहले की याद दिलाई। जब भीष्म कहीं जा रहे थे, रास्ते में उन्हें एक दोमुंहा (दो मुंह वाला) सांप दिखाई पड़ा जिसे उन्होंने बिना कसूर के अपने बाण से उठाकर एक कंटीले झाड़ पर फेंक दिया जहां पर उसके तड़प तड़प कर उसके प्राण निकले ठीक उसी प्रकार भीष्म पितामह के भी प्राण निकल रहे है।
प्रकृति किसी भी जीव, जंतु के साथ अकारण बुरा बर्ताव करने वाले को किसी न किसी रूप में सजा अवश्य देती है। अच्छा-बुरा कोई भी कर्म हो वह बिना फल दिए नहीं रहता।
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प्रकृति किसी न किसी रूप में सजा अवश्य देती है।
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