सौंदर्य का घमंड | vanity of beauty
Short Stories : सम्राट आचार्य चाणक्य का काफी सम्मान करते थे, मगर उनके मन में कहीं श्रेष्ठता की भावना भी घर करने लगी थी। कभी-कभी यह बात उनके व्यवहार में दिख जाती थी। आचार्य चाणक्य से उनकी यह मनोदशा छिपी नहीं थी मगर वह सही मौके की तलाश में थे। एक बार जब सम्राट चंद्रगुप्त ने मजाक के स्वर में उनसे कहा, "मैं आपकी विद्वता, सूझ-बूझ और चतुराई की प्रशंसा करता हूं, परंतु अच्छा होता भगवान ने आपको सुंदर रूप भी दे दिया होता।"
चाणक्य ने जान लिया कि सम्राट को अपने सौंदर्य पर घमंड हो गया है और वह सौंदर्य के सामने विद्या को तुच्छ समझने लगे हैं। पर उस समय वह चुप रह गए। थोड़ी देर बाद वह सम्राट से विदा लेकर अपने आश्रम आ गए। अगले दिन उन्होंने अपने सेवक को बुलाकर कहा, “आज दरबार में सम्राट के आने से पहले एक मिट्टी का घड़ा और एक सोने का घड़ा रखवा दो।
दोनों घड़े शुद्ध जल से भरे होने चाहिएं।" समय से सम्राट आए और दरबार का कामकाज शुरू हुआ। थोड़ी देर में सम्राट को प्यास लगी तो चाणक्य के आदेशानुसार उन्हें सोने के घड़े का पानी पेश किया गया। पानी पीते ही सम्राट बिफर उठे, "यह कैसा पानी दिया है। इतना गरम क्यों है पानी ?" चाणक्य के इशारा करते ही उन्हें मिट्टी के घड़े वाला शीतल जल दिया गया। - चाणक्य बोले, "महाराज, यह पानी पीकर देखें, क्या यह ठीक है?" इस - बार सम्राट पानी पीकर संतुष्ट हुए।
मगर पूछा कि 'वह कैसा पानी था और क्यों दिया गया वैसा पानी ?' आचार्य बोले, "वह सोने के घड़े का पानी था। हमने सोचा, मिट्टी के कुरूप घड़े की बजाय सोने के सुंदर घड़े का पानी आपको बेहतर लगेगा।" सम्राट को तुरंत पूरी बात समझ में आ गई। उन्हें जवाब मिल चुका था।
आगे पढ़ें प्रेरक कहानी : हर हाल में संतुष्ट रहें
Thankyou