
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्र का आगमन होता है। शारदीय नवरात्र के इस पर्व में मां भगवती जगत जननी आदि शक्ति मां जगदम्बा की कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी सेवा तथा आराधना की जाती है।
पावन पर्व नवरात्र में मां देवी दुर्गा की कृपा, सृष्टि की सभी रचनाओं पर समान रूप से बरसती है। यह नवरात्र पर्व ऋतु परिवर्तन के प्रतीक भी माने जाते हैं।
जगत पालनकर्त्ता भगवान विष्णु जी के अंतःकरण की शक्ति सर्व स्वरूपा योगमाया आदिशक्ति महामाया हैं तथा वे देवी ही प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति, स्थिति तथा लय की कारण भूता हैं।
साक्षात आदि शक्ति महामाया ही शिवा स्वरूपी शिव अर्धांगिनी पार्वती एवं सती हैं, जिनकी आराधना करके स्वयं ब्रह्मा जी इस जगत के सृजनकर्त्ता हुए, भगवान विष्णु पालनकर्त्ता हुए तथा भगवान शिव संहार करने वाले हुए।
तत्तवार्थ जानने वाले मुनिगण जिन्हें मूल प्रकृति कहते हैं। वेद, उपनिषद्, पुराण, इतिहास आदि सभी प्राचीन ग्रंथों में सर्वत्र मां भगवती आदिशक्ति की ही अपरम्पार महिमा का वर्णन है।
श्री महादेव जी नारद जी को देवी पुराण में बताते हैं 'या मूल प्रकृतिः शुद्धा जगदम्बा सनातनी।' अर्थात : जो मूल प्रकृति हैं, मूल प्रकृति स्वरूपा जगत जननी जगदम्बा हैं, शुद्ध शाश्वत् और सनातन हैं; वे ही साक्षात् परमब्रह्म हैं।
शारदीय नवरात्रि में मां नवदुर्गा के नवरूपों की पूजा-आराधना, पाठ, जप, यज्ञ-अनुष्ठान, व्रत, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि मां भगवती आदि शक्ति को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। भगवान श्री राम जी ने भी लंका पर चढ़ाई से पूर्व मां भगवती दुर्गा की आश्विन माह में आने वाले शारदीय नवरात्र में आराधना कर विजय का वर प्राप्त किया।
तभी से आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम नौ दिनों में मां भगवती जगदंबा का आराधना पर्व शारदीय नवरात्र प्रारंभहुआ। इन दिनों मां भगवती जी के नौ रूपों की नवदुर्गा के रूप में आराधना की जाती है :
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चंद्रघंटेति, कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।। पञ्चमं स्कंदमातेति, षष्ठं कात्यायनीति च । सप्तमं कालरात्रीति, महागौरीति चाष्टमम् ॥ नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः । उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ॥ पौराणिक कथानुसार प्राचीन काल में दुर्गम नामक राक्षस ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। उसने वेदों को अपने अधिकार में लेकर देवताओं को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया। जिस कारण पूरे संसार में वैदिक कर्म बंद हो गया।
इस वजह से चारों ओर घोर अकाल पड़ गया। पेड़-पौधे व नदी-नाले सूखने लगे। चारों ओर हाहाकार मच गया। जीव-जंतु मरने लगे। सृष्टि का विनाश होने लगा।
सृष्टि को बचाने के लिए देवताओं ने व्रत रखकर नौ दिन तक मां जगदम्बा की आराधना की और माता से सृष्टि को बचाने की विनती की।
तब मां भगवती व असुर दुर्गम के बीच घमासान युद्ध हुआ। मां भगवती ने दुर्गम का वध कर देवताओं को निर्भय कर दिया। तब देवताओं ने मां भगवती की आराधना की।
दुर्गा सप्तशती के बारहवें अध्याय में मां जगदंबा दुर्गा सप्तशती में वर्णित अध्यायों के पाठ के संबंध में कहती हैं, जो पुरुष इन स्तोत्रों द्वारा एकाग्रचित्त होकर मेरी स्तुति करेगा, उसके सम्पूर्ण कष्टों को निःसंदेह मैं हर लूंगी। मधुकैटभ के नाश, महिषासुर के वध और शुंभ तथा निशुंभ के वध की जो मनुष्य कथा कहेंगे अथवा एकाग्रचित्त होकर भक्तिपूर्वक सुनेंगे, उनको कभी कोई पाप न रहेगा, पाप से उत्पन्न हुई विपत्ति भी उनको न सताएगी, उनके घर में दरिद्रता न होगी। उनको किसी प्रकार का भय न होगा। इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को भक्तिपूर्वक मेरे इस कल्याणकारक माहात्म्य को सदा पढ़ना और सुनना चाहिए।
देवतागण मां भगवती जगतजननी की स्तुति में कहते हैं : हे शरणागतों के दुख दूर करने वाली देवी ! आप प्रसन्न होओ, हे सम्पूर्ण जगत की माता ! आप प्रसन्न होओ। विन्ध्येश्वरी ! आप विश्व की रक्षा करो क्योंकि आप इस चर और अचर की ईश्वरी हो। आप भगवान विष्णु की शक्ति हो और विश्व की बीज परम माया हो और आपने ही इस सम्पूर्ण जगत को मोहित कर रखा है। आपके प्रसन्न होने पर ही यह पृथ्वी मोक्ष को प्राप्त होती है।
जो श्रद्धा भाव से मां भगवती की स्तुति करता है, मां आदि शक्ति उन्हें धर्म में शुभबुद्धि प्रदान करती है। वही मनुष्य के अभ्युदय के समय घर में लक्ष्मी का रूप बनाकर स्थित हो जाती है। वास्तव में नवरात्र पर्व है आध्यात्मिक उन्नति और अनुभूति का, जिसमें मनुष्य को अपने विकारों पर नियंत्रण करने तथा अपने कल्याण के लिए शुद्ध सात्विक आचार, विचार, आहार तथा जप-तप आदि धर्म कार्यों को करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः।।
अर्थात् 'शरदऋतु' में जो वार्षिक महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) को श्रद्धा-भक्ति के साथ सुनेगा, वह मनुष्य मेरी अनुकंपा से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन, धान्य एवं पुत्रादि से सम्पन्न होगा। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। सम्भवतः इसी कारण बंगाल में दुर्गा पूजा मुख्यतः शारदीय नवरात्र में ही होती है। शारदीय नवरात्र-पूजा वैदिक काल में प्रचलित थी। संसार के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ 'ऋृगवेद' की प्रारम्भिक ऋचा में इसकी चर्चा है, जो कि आद्या महाशक्ति का ही एक रूप है। 'ऋृगवेद' ( 4 सं. 40 सू-5) में शारदीय शक्ति दुर्गा पूजा का उल्लेख मिलता है। बंगाल में विशाल मृण्मयी प्रतिमाओं में सप्तमी, अष्टमी और महानवमी को दुर्गापूजा होती है। दशमी को प्रतिमाएं नदी में या तालाब में विसर्जित कर दी जाती है। माता को यहां कन्या रूप से अपनाया गया है। मानो विवाहिता पुत्री पति के घर से पुत्र सहित तीन दिन के लिए माता-पिता के पास आती है। मां दस भुजाओं में दस प्रकार के आयुध धारण कर शेर पर सवार होकर, महिषासुर के कंधे पर अपना एक चरण रखे त्रिशूल द्वारा उसका वध कर रही होती है।
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