बच्चों को जाओ पढ़ो नहीं, कहिए आओ पढ़ें ... how to develop reading skills in children : बच्चे का मन बड़ा कोमल होता है। उसे गुस्से में न कहें जाओ पढ़ो बल्कि उसे कहें कि आओ पढ़ें। बच्चे के साथ बच्चा बनकर उससे खेलें, उसके साथ समय बिताएं और अच्छी-अच्छी कविताएं गाएं, चित्र बनाएं, फूल और तितलियां तथा कागज की नाव बनाने दें। उनकी कृतियों पर उन्हें शाबाशी दें।
जब कविताएं, फलों और सब्जियों के नाम बताते हैं, सप्ताह के दिनों के नाम सुनाते हैं, ताली बजाकर उनका उत्साह बढ़ाएं। टॉफियां, पैंसिल और तस्वीरों वाली पुस्तकें देकर उत्साह बढ़ाएं।
यदि वे कुछ गलत कर देते हैं तो उन्हें डांटे-फटकारें, मारें नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक ढंग से पेश आकर उनके मनोबल को ऊंचा करें।
हाथ से पकड़ पकड़ कर शुद्ध लिखना सिखाएं। नकारात्मक सोच को उन पर हावी न होने दें। सदैव यह कहें कि आप और सुंदर कर सकते हो। बच्चा एक कोरा कागज है, उस पर जो अंकित कर दोगे, वही स्थायी हो जाएगा।
फ्रांस का विद्वान रूसो कहता था कि 'तुम मुझे बच्चे के प्रथम पांच वर्ष दे दो और मैं जो तुम चाहो उसे, बना दूंगा।' तात्पर्य है कि बचपन ही उसके जीवन की आधारशिला है जो उसके जीवन का निर्माण करती है। बच्चों को यदि बचपन में राष्ट्रीय गान, राष्ट्रीय गीत सिखाया जाए तो बड़ा होकर वह राष्ट्र भक्त बनेगा।
छोटा बच्चा समझकर उसके सामने सिगरेट, हुक्का, शराब का सेवन कभी नहीं करना चाहिए। आपको पता होना चाहिए कि बच्चा अनुकरण करता है और आपकी यह भूल भारी पड़ सकती है।
जब बच्चे कॉलेज में प्रवेश करते हैं तो व्यस्क हो चुके होते हैं। उनके शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं। माता-पिता को उनका गाइड बनकर मार्गदर्शन करना चाहिए। उनको उनकी जरूरत के अनुसार आर्थिक सहायता देनी चाहिए।
उन्हें गलत संगत से दूर रहने की सीख देना भी आपका कर्तव्य है। प्रायः देखा गया है कि युवक और युवतियां अपने दोस्तों और सहेलियों पर ज्यादा विश्वास रखते हैं। माता-पिता को चाहिए कि उनके माता-पिता से संपर्क करके पता करें कि वे समाज में किस प्रकार का संबंध रखते हैं।
शरीफ खानदान के बच्चे हैं या - बिगड़ैल किस्म के। यदि बच्चे बुरी संगत का शिकार हो गए तो बिगड़ भी सकते हैं। कहीं आपका बेटा या बेटी धोखे का शिकार तो नहीं हो गए, यह देखना माता-पिता का फर्ज है। सहेलियों के घर रातें गुजारना भी भारी पड़ सकता है। लड़के किन दोस्तों के साथ बाहर घूमते हैं, उसका भी अवलोकन करना चाहिए।
प्रायः लड़के और लड़कियां अकेले कमरे में रहकर पढ़ना चाहते हैं। माता-पिता की गैर हाजिरी में वे मोबाइल से चिपके रहते हैं। प्रेम की बातें करते रहते हैं। अश्लील फिल्में भी देखने लगते हैं। माता-पिता को उन्हें चैक करते रहना चाहिए।
कम नम्बर लाने पर बच्चों को भला-बुरा नहीं कहना चाहिए, इससे उनमें आत्महीनता की भावना आ जाती है। कई तो निराश होकर अपना जीवन समाप्त तक कर लेते हैं। उन्हें हौसला देते हुए कहना चाहिए कि और परिश्रम करो, सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी।
माता-पिता को खुद भी सादा जीवन अपनाना चाहिए। समाजसेवा की भावना होनी चाहिए। परोपकार की लगन होनी चाहिए। राष्ट्र प्रेम तथा कर्म प्रिय होना चाहिए। यदि माता-पिता का समाज में सम्मान है तो बच्चे भी उन जैसा बनने की कोशिश करेंगे।
माता-पिता का अनुशासन में रहना, उनकी आदतों में शामिल हो जाएगा। ऐसे बच्चे कहीं उच्च शिक्षा या नौकरी करने जाएं तो अपनी अनुशासनप्रियता और ईमानदारी के कारण ख्याति अर्जित करेंगे और देश का नाम ऊंचा करेंगे।
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