
भगवान जगन्नाथ, भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण का ही अवतार स्वरूप हैं जो मनमोहक और मनोहारी अलौकिक छवि द्वारा सबका मन मोह लेते हैं। जब परस्पर प्रेम भाव से रथ पर विराजमान हो नगर भ्रमण/परिक्रमा करते हैं तो तीनों लोक और देवी देवता भी उनका स्वागत सत्कार कर पुष्पित अभिनंदन करते हैं।
उड़ीसा के जगन्नाथपुरी धाम को भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भैया बलदेव और बहन सुभद्रा का निवास कहा जाता है जहां वर्ष भर असंख्य श्रद्धालुओं की भीड़ इनके दर्शनार्थ और विशेष तौर पर आषाढ़ मास में आयोजित की जाने वाली विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा को देखने उमड़ती है।
यह विश्व का सबसे बड़ा और पौराणिक, ऐतिहासिक रथयात्रा महोत्सव है।
इतिहास पर नजर डालें तो 12वीं शताब्दी से इसका प्रारम्भ माना जाता है। यह उड़ीसा का प्रमुख उत्सव तो है ही, अपितु पूरे भारतवर्ष में इसे मनाया जाता है। यह रथयात्रा भगवान श्री कृष्ण की अपनी मां देवकी की जन्मभूमि की यात्रा का भी प्रतीक है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार सुभद्रा ने नगर भ्रमण की इच्छा की तो तीनों भाई-बहन रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण को निकले। यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी गुंडिचा मंदिर जाते हैं और वहां 7 दिनों तक विश्राम करते हैं।
इस प्रकार कई राजाओं द्वारा इस परम्परा को जारी रखा गया तथा इसे वर्ष के प्रमुख उत्सव की तरह मनाया जाता रहा।
रथयात्रा में शामिल होने को ही सौ यज्ञों के पुण्य बराबर का फल कहा गया है। पद्म पुराण में वर्णित है कि जो भी श्रद्धा भाव से रथ के रस्सों को खींचता है या छू भी लेता है, उसके जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाते हैं तथा पुण्यों की प्राप्ति होती है। साथ ही उसे प्रभु का शुभाशीष प्राप्त होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अपनी देह का त्याग पूरी में वर्तमान जगन्नाथ मन्दिर के स्थान पर ही किया था तथा वर्तमान में लकड़ी के उनके विग्रह रूप में उनका हृदय आज भी धड़कता है जिस कारण इस अलौकिक दिव्य रूप की मान्यता बहुत अधिक है।
इन विग्रह रूपों को देव शिल्पी बाबा विश्वकर्मा ने निर्मित किया था परन्तु उनके वचन अनुसार निश्चित समयावधि में हाथ, पैर, पंजे बनने बाकी रह गए।
इस प्रकार प्रभु का यह अधूरा परंतु अलौकिक, दिव्य और अनुपम रूप ही सर्वजगत को प्रिय हुआ तथा जिसके दर्शन मात्र से ही अलौकिक पुण्य मिलता है।
इन्हीं भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलदेव और दोनों की बहन सुभद्रा के इन मनमोहक स्वरूपों को भव्य और दिव्य रथों पर विराजमान कर रथयात्राएं निकाली जाती हैं जोकि सामुदायिक एकता का संदेश तो देती ही हैं, भाई बहन के अलौकिक, अनुपम प्रेम को भी जगजाहिर करती हैं।
भगवान जगन्नाथ रथयात्रा सामाजिक प्रेम, भाईचारे और भारतवर्ष के गौरवशाली प्राचीन सांस्कृतिक महत्व की भी प्रतीक है जिसे सैंकड़ों वर्षों से प्रभु भक्त बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ निकालते हैं।
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