'उडुपी श्रीकृष्ण मठ' 'udupi sri krishna matha' जहां खिड़की से होते हैं भगवान के दर्शन, श्रद्धालु फर्श पर खाते हैं प्रसाद ! कर्नाटक के उडुपी में श्रीकृष्ण मठ udupi sri krishna matha (temple) udupi karnataka बहुत प्रसिद्ध है। यहां भगवान श्रीकृष्ण की एक सुंदर प्रतिमा है जिसे कनकधारा के नाम से जाना जाता है। यहां पर होली का त्यौहार भी बहुत खास अंदाज में मनाया जाता है और भक्त भगवान श्रीकृष्ण का पूजन-अर्चन करने व आशीर्वाद लेने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। आइये जानते है की उडुपी श्री कृष्ण मंदिर से उडुपी रेलवे स्टेशन की दूरी (udupi sri krishna temple to udupi railway station distance) कितनी है
उडुपी श्री कृष्ण मंदिर से उडुपी रेलवे स्टेशन की दूरी udupi sri krishna temple to udupi railway station distance
कैसे पहुंचें उडुपी श्री कृष्ण मंदिर How to reach udupi sri krishna matha (temple)
हवाईजहाज से : मंदिर का करीबी एयरपोर्ट करीब 59 किलोमीटर दूर मेंगलुरु है।
रेल से : करीबी उडुपी रेलवे स्टेशन मंदिर से केवल 3.2 किलोमीटर दूर है। आप टैक्सी या ऑटो किराए पर ले सकते हैं या सरकारी और प्राइवेट बसों से भी मंदिर पहुंच सकते हैं।
खिड़की से होते हैं दर्शन
नौ छेदों के द्वारा दिखाई देते हैं यहां श्री कृष्ण ( udupi sri krishna matha architectural styles ) यहां भगवान श्रीकृष्ण बालरूप में विराजमान हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार से पहले, एक विशाल गोपुरम वाली एक खिड़की दिखाई देती है, जो द्रविड़ वास्तुकला शैली में निर्मित है। इस खिड़की से भक्त भगवान के दर्शन कर सकते हैं। यहां कोई भी श्रद्धालु सीधा मूर्ति के दर्शन नहीं कर सकता, बल्कि उसे भगवान के दर्शन इसी 9 छिद्रों वाली खिड़की से होते हैं।
माना जाता है कि भगवान ने अपने एक भक्त की भक्ति से खुश होकर यह खिड़की बनाई थी, जिससे वह उनके दर्शन कर सके।
इससे जुड़ी पौराणिक कथा दिलचस्प है। किंवदंती के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के एक परम भक्त को मूर्ति दर्शन नहीं करने दिया जाता था। तब भक्त मंदिर के बाहर प्रार्थना करने लगा। उससे खुश होकर भगवान ने दीवार में एक छेद बना दिया, जिसके द्वारा भक्त हर रोज मूर्ति का दर्शन करता था।
बाद में छेद वाले स्थान पर ही खिडकी बना दी गई। होली तथा जन्माष्टमी के मौके पर इस मंदिर की सजावट देखने लायक रहती है। मंदिर को फूलों, दीपों और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है, भक्तों को भगवान की एक झलक पाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है।
उडुपी कृष्ण मंदिर का इतिहास क्या है?
13वीं शताब्दी में हुई स्थापना दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक इसको 13वीं शताब्दी में श्री वैष्णव संत श्री माधवाचार्य ने स्थापित किया था। वे द्वैतवेदांत सम्प्रदाय के संस्थापक थे।
उडुपी कृष्ण का इतिहास क्या है? udupi sri krishna matha history : एक बार श्री माधवाचार्य ने समुद्री तूफान में फंसे एक जहाज को अपनी दिव्य शक्तियों से बचाया था। जब जहाज किनारे आया तो उसमें श्रीकृष्ण की मूर्ति मिली। यह समुद्री मिट्टी से ढकी थी। इसके बाद माधवाचार्य ने उस मूर्ति को उडुपी लाकर मंदिर में स्थापित कर दिया।
मनोकामना पूर्ण होने पर जमीन पर रखा प्रसाद खाते हैं श्रद्धालु
मान्यता के अनुसार कई श्रद्धालु फर्श पर प्रसाद परोसने की मांग करते हैं। दरअसल, जिन भक्तों की मनोकामना पूरी हो गई होती है, वे मंदिर के फर्श पर रख कर इसको खाते हैं। इसे प्रसादम या नैवैद्यम कहा जाता है। , मंदिर के फर्श को मशहूर काले काड्डपा स्टोन से बनाया गया है.
कुल 8 मठ
उडुपी कृष्ण मंदिर मंदिर udupi sri krishna matha (temple) के चारों ओर 8 मठ स्थित हैं। ये चक्रीय क्रम में बारी-बारी से मंदिर की देखभाल करते हैं। पहले हर एक मठ मंदिर की 2 महीने तक देखभाल करता था लेकिन बाद में स्वामी वदिराज ने इस नियम को संशोधित कर इसे दो साल के लिए कर दिया।
उडुपी की कहानी क्या है?
एक और कहानी यह है कि उडुपी नाम संस्कृत शब्दों उडु और पा के संयोजन से आया है, जिसका अर्थ है "तारे" और "भगवान"। किंवदंती के अनुसार, राजा दक्ष के श्राप के कारण एक बार चंद्रमा की रोशनी कम हो गई थी, जिनकी 27 बेटियों (हिंदू ज्योतिष के अनुसार 27 सितारे) का विवाह चंद्रमा से हुआ था।
उडुपी श्री कृष्ण मंदिर की विशेषता क्या है?
श्री कृष्ण मंदिर की एक अनूठी विशेषता जो बहुत से पर्यटकों को आकर्षित करती है, वह यह है कि भगवान की पूजा केवल नौ छेद वाली खिड़की के माध्यम से की जाती है जिसे नवग्रह कीटिकी कहा जाता है । खिड़की चांदी की परत से बनी है और देखने में बहुत अच्छी लगती है।
उडुपी इतना प्रसिद्ध क्यों है?
उडुपी कर्नाटक का एक तटीय जिला है, जिसे 1997 में दक्षिण कन्नड़ जिले से अलग करके बनाया गया था । उडुपी अपने भोजन, मंदिरों, समुद्र तटों और शैक्षिक और वित्तीय संस्थानों के लिए लोकप्रिय है । माना जाता है कि “उडुपी” नाम संस्कृत के शब्द “उडु और पा” से आया है जिसका अर्थ है “सितारे” और “भगवान”।
उडुपी जाने का सबसे अच्छा समय क्या है?
उडुपी जाने का सबसे अच्छा समय क्या है? What is the best time to visit Udupi? उडुपी घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच udupi sri krishna matha temple timings है। सुहावने दिन और ठंडी रातें इस मौसम को समुद्र तटों पर घूमने और आसपास के इलाकों को देखने के लिए बेहतरीन बनाती हैं। आप दिवाली, क्रिसमस, नए साल, संक्रांति और शिव रात्रि के त्यौहारों और समारोहों के दौरान जगमगाते शहर का आनंद ले सकते हैं।
उडुपी मंदिर में दर्शन का समय क्या है? udupi sri krishna matha timings ?
मठ का क्षेत्र रहने और भक्ति के लिए एक पवित्र स्थान है। इसके आसपास कई मंदिर हैं। सबसे प्राचीन मंदिर 1500 वर्ष पुराने हैं जो लकड़ी और पत्थर से बने हैं।
उडुपी मंदिर का समय : उडुपी श्री कृष्ण मंदिर में दर्शन का समय सुबह 4:30 बजे से लेकर रात 9:30 बजे तक होता है, हालाँकि आम भक्तों के लिए मंदिर सुबह 5 बजे खुलता है.
बंद होने का समय: रात 9:30 बजे
निर्माल्य विसर्जन पूजा: सुबह 5:30 बजे
दर्शन का समय: सुबह 6 बजे से लेकर 1:30 बजे तक और 3 बजे से लेकर रात 9 बजे तक
आरती: सुबह और शाम को
विशेष दर्शन: मंदिर में किसी भी विशेष दर्शन की व्यवस्था नहीं है, कोई भी भक्त मंदिर के खुलने के समय के दौरान दर्शन कर सकता है.
अन्य जानकारी:
- मंदिर में मोबाइल फोन ले जाने की अनुमति है, लेकिन मंदिर के अंदर उन्हें बंद रखना चाहिए.
- मंदिर में देवता की पूजा नौ छेदों वाली चांदी की परत चढ़ी खिड़की (नवग्रह किंदी) के माध्यम से की जाती है.
- मंदिर में दोपहर के समय प्रसाद भी चढ़ाया जाता है और इसे लोकप्रिय रूप से अन्न ब्रह्मा कहा जाता है क्योंकि यह बड़ी संख्या में भक्तों को भोजन कराता है.
- पुरुषों को धोती या पैंट और शर्ट पहननी चाहिए, जबकि महिलाओं को साड़ी, हाफ साड़ी, सलवार-कमीज, सेट-मुंडू या स्कर्ट और ब्लाउज पहनना चाहिए.
- लुंगी, शॉर्ट्स और अन्य आधुनिक परिधानों की अनुमति नहीं है.
- मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मूर्ति के सामने एक दीपक है, जो पिछले 700 वर्षों से जल रहा है
उडुपी का इतिहास क्या है?
उडुपी का इतिहास कई कहानियों से जुड़ा हुआ है. उडुपी का नाम तुलु के शब्द ओडिपु से लिया गया है. उडुपी को राजाता पीठ और शिवली (शिबालेल) के नाम से भी जाना जाता है. उडुपी कृष्ण मंदिर के बारे में भी कई कहानियां प्रचलित हैं.
उडुपी के इतिहास से जुड़ी बातें
- उडुपी का नाम संस्कृत के शब्दों उडु और पा के संयोजन से भी आया है, जिसका अर्थ है "तारे" और "भगवान".
- उडुपी जिले का गठन 25 अगस्त, 1997 को तत्कालीन दक्षिण कन्नड़ जिले से अलग करके किया गया था.
- उडुपी कृष्ण मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में संत माधवाचार्य ने करवाया था.
- उडुपी कृष्ण मंदिर की खासियत यह है कि देवता की पूजा नौ छेदों वाली चांदी की परत चढ़ी खिड़की (नवग्रह किंदी) के ज़रिए की जाती है.
- उडुपी कृष्ण मंदिर की स्थापत्य शैली द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है.
- उडुपी कृष्ण मंदिर को तुलु अष्टमथा के लिए जाना जाता है.
- उडुपी से जुड़ी और बातें
- उडुपी शहर में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा तुलु है.
- उडुपी शहर में कन्नड़ और कोंकणी भी बोली जाती है.
- उडुपी शहर में मणिपाल नाम का एक इलाका भी है.
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