बुजुर्गों का सम्मान हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है लेकिन बदलते समय के साथ इसमें गिरावट आ चली है। विश्व स्तर पर वृद्धों की स्थिति का आकलन करने वाले आंकड़ों के आधार पर भारत में वृद्धों को स्थिति संतोषजनक नहीं है। जानिए कैसे बड़े-बुजुर्गों को 'सम्मान' दें | Senior Citizens Problems and Solutions How did you take care of the elderly in your family?
परिवार एवं समाज में उनकी उपेक्षा एवं तिरस्कार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। बढ़ते वृद्धाश्रमों की संख्या इस कटु सत्य की ओर संकेत करती है, जिसमें सुधार की अत्यंत आवश्यकता है।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि बुजुर्ग अनुभव से पके, श्रद्धा व सम्मान के पात्र, परिवार के बहुमूल्य सदस्य एवं किसी भी समाज की अमूल्य थाती होते हैं। इनकी देखरेख हमारा पावन कर्त्तव्य है और जरूरत भी।
आज जब संयुक्त परिवार विखंडित हो रहे हैं, परिवार का ताना-बाना बिखर रहा है, एकल परिवारों का चलन जोरों पर है, बच्चों का विकास अवरुद्ध-सा दिखता है, ऐसे में परिवार में बुजुर्गों के महत्व को समझने की जरूरत है।
प्रायः बुढ़ापे में इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं, शरीर पूरी क्षमता के साथ काम करने में सक्षम नहीं होता और शरीर पर अशक्तता हावी होने लगती है। यह हर इंसान के लिए सत्य है कि सबको एक दिन बुढ़ापे की इस अवस्था से गुजरना ही होता है।
अतः हमारा कर्त्तव्य बनता है कि इस अवश्यम्भावी प्रक्रिया का सम्मान करें और बुजुर्गों को इसका सामना करने में आवश्यक सहयोग देने की पूरी व्यवस्था करें। साथ ही हर युवा एवं प्रौढ़ को भी समय रहते वृद्धावस्था के लिए पहले से दूरदर्शिता भरी तैयारी करने की आवश्यकता है, जिससे कि वे समय आने पर अपनी गरिमापूर्ण उपस्थिति के साथ परिवार, समाज में महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। दादा-दादी व नाना-नानी की भूमिका में वे इस आधार पर अपना विलक्षण योगदान दे सकते हैं।
बच्चों के विकास में बुजुर्गों की अहम भूमिका
आज की भागमभाग वाली जिदगी में नौकरीपेशा माता-पिता के पास बच्चों के लिए अधिक समय नहीं होता। ऐसे में बच्चों के विकास के लिए घर में बैठे बुजुर्गों की गोद एक उर्वर भूमि होती है, जिसमें बचपन बखूबी पनप सकता है। बुजुर्ग अनुभवों से परिपक्व चलते-फिरते पुस्तकालय होते हैं। बुजुर्गों के जीवन भर के अनुभवों से पकी कहानियां, रोचक संस्मरण, ज्ञानवर्द्धक बातें एक अमूल्य थाती हैं, जिनकी छाया में एक शानदार एवं यादगार बचपन पनप सकता है। ऐसा बचपन सौभाग्यशाली है, जिसे बुजुर्गों का समर्थ संबल मिलता है। ऐसे व्यक्ति निश्चित रूप से जीवनपर्यंत एक गहरी भावनात्मक संतुष्टि एवं दृढ़ता लिए होंगे और जीवन की चुनौतियों का बखूबी सामना करने की स्थिति में भी होंगे।
ऐसे में बुजुर्गों का कर्त्तव्य बनता है कि वे जीवन के अनुभवों से नई पीढ़ी को यथासंभव लाभ दें। बच्चों के साथ बिताने के लिए गुणवत्तापूर्ण समय निकालें। बच्चों की शिक्षा से लेकर उनको संस्कार सम्पन्न बनाने, में अपना आवश्यक योगदान दें। ऐसा करने में उन्हें गहरी संतुष्टि व शांति मिलेगी और साथ ही जीवन की आपा-धापी में खोए तनावग्रस्त माता-पिता के लिए भी वे एक बहुत बड़ा संबल साबित होंगे। परिवार व समाज के लिए उपयोगिता के आधार पर जो सम्मान एवं गौरव का भाव मिलता है उसके वे सहज रूप से अधिकारी बनेंगे।
आज, यह वैज्ञानिकों द्वारा सिंद्ध तथ्य है कि आठ वर्ष की आयु तक बच्चों का 80 प्रतिशत बौद्धिक विकास हो जाता है। अतः जीवन के इन प्रारंभिक वर्षों में बुजुर्ग बच्चों के भावी जीवन की सशक्त नींव रखने में अपना उल्लेखनीय योगदान दे सकते हैं। घर में पढ़ाई-लिखाई के अतिरिक्त बच्चों के साथ बुजुर्ग बाहर घूमने का समय निकाल सकते हैं और उनकी बाल सुलभ जिज्ञासाओं का समुचित समाधान करते हुए उनके ज्ञान में वृद्धि कर सकते हैं।
इस तरह परिवार में बुजुर्ग अपनी मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हुए जीवन की ढलती शाम को संतोषपूर्ण ढंग से बिता सकते हैं और नई पीढ़ी के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। साथ ही समय के थपेड़ों के बीच टूटते-बिखरते परिवारों को प्रेम से जोड़े रखने का कार्य भी वे सहज ही सम्पन्न कर सकते हैं।
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