माता-पिता की बच्चों के प्रति सहानुभूति, लाड़-प्यार तथा मां की ममता की कोई तुलना नहीं की जा सकती। वें तो बच्चों के लिए अपनी जान भी कुर्बान करने को तैयार रहते हैं मगर कृतघ्नता की पराकाष्ठा को लांघते हुए आजकल के बहुत से युवा-लाडले अपने आदरणीय माता-पिता की अवहेलना व तिरस्कार करते हुए पाए जा रहे हैं। क्यों जीवन जैसा दिखता है लाडलों की 'उपेक्षा' से वैसा होता नहीं' Senior Citizens Problems and Solutions | How did you take care of the elderly in your family? इन संबंधों को सुदृढ़ बनाने के लिए बच्चों व माता-पिता / बुजुर्गों को निम्नलिखित आचरण पर चलने की सलाह दी जाती है-

1. बच्चों को अधिक से अधिक समय अपने माता-पिता के साथ व्यतीत करना चाहिए तथा उनके अहसानों को कभी भी नहीं भूलना चाहिए। जो व्यक्ति आपके मल-मूत्र को साफ करते थे, उनके प्रति जिम्मेदारियां समझनी चाहिएं।
2. उनकी आत्मा व हृदय को मन, वचन, कर्म और धर्म से किसी भी • प्रकार की चोट नहीं पहुंचानी चाहिए।
3. उनसे ऊंची आवाज में बात न करें तथा उनकी कभी भी बुराई न करें और न ही किसी अन्य सदस्य को करने दें।
4. अपने मन को नियंत्रण में रखते हुए उनकी हर आदत का सत्कार करें।
5. न अपनी पत्नी को अपने माता-'पिता के सामने और न ही माता को पत्नी के सामने डांटें।
6. पत्नी व माता-पिता में समन्वय बनाने की कोशिश करें और अपनी भूमिका एक जानदार व्यक्ति के रूप में निभाएं।
7. उनके अनुभव और दुनियादारी की समझ की सीख को दबाव नहीं समझना चाहिए।
8. चाणक्य की इस उक्ति को कभी न भूलें, कि' पृथ्वी से भारी तथा आसमान से ऊंचा माता एवं पिता की ममता व स्नेह होता है।'
जहां एक तरफ बच्चों के अपने माता-पिता के प्रति कुछ कर्त्तव्य हैं, वहीं दूसरी तरफ मां-बाप को भी अपने बच्चों के प्रति अपनी परिपक्व जिम्मेदारी समझनी चाहिए-
1. जब तक जिंदा हैं, आत्मनिर्भर रहने का प्रयास करें तथा किसी पर निर्भर रहने की आदत को कम करें।
2. बच्चों से ज्यादा उम्मीद न लगाएं क्योंकि वे अपनी जिंदगी में बच्चों के कारण वैसे ही बहुत व्यस्त होते हैं। बिना वजह की दखलंदाजी न करें। हां, जहां आवश्यक हो वहां पुत्र व पुत्रवधू को अच्छी नसीहत दें।
3. इच्छा रहित बनें तथा लोभ, लिप्सा व वासना से दूर रहें।
ध्यान दें
पैसा कमाते-कमाते बुढ़ापा भी गुजर जाएगा तथा आखिर में समझ आएगा कि जो कमाया वह किसी भी काम का नहीं है। जो पुण्य किया, उसी का लाभ होगा।
गीता में लिखा है कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु तथा पुनर्जन्म भी निश्चित होता है, इसलिए दिल-दिमाग को चुस्त दुरुस्त रखते हुए एक स्वस्थ जीवन व्यतीत करें।
हमारा जीवन विधाता की दी हुई एक अनमोल भेंट है। कहते हैं कि 84 लाख योनियों में मानव शरीर सबसे बड़ी उपलब्धि है, इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम इस जीवन को भरपूर आनंद के साथ जिएं।
एक-एक पल बीतता जा रहा है, इसलिए जरूरी है कि हम अपने जीवन का सदुपयोग करें। न जाने जीवन की डोर कब टूट जाए तथा कटी हुई पतंग नीचे गिर जाए। बुढ़ापे में कोई किसी का नहीं होता। आपका साथी आप खुद हैं तथा मत भूलें कि आपका स्वस्थ जीवन ही सच्चा साथी होगा।
एक बार बीमार होकर यदि चारपाई पर पड़ गए तो सभी सगे-संबंधी आपसे विमुख होते चले जाएंगे।
बच्चों व माता-पिता को एक-दूसरे की संवेदनशीलता को समझना तथा परिवार में रहते हुए ही स्वर्ग जैसा आनंद लेना चाहिए।
आगे पढ़िए : बुजुर्गों की आम स्वास्थ्य समस्याएं
Thankyou