विघ्नकर्ता / बाधक का अर्थ है बाधा डालने वाला, रोकने वाला, या विघ्न उत्पन्न करने वाला। यह शब्द किसी भी चीज़ या व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हो सकता है जो किसी कार्य या प्रक्रिया में रुकावट पैदा करता है।
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एक बार की बात है। एक महात्मा अपने शिष्य के साथ एक गांव से गुजर रहे थे। उन दोनों को बहुत भूख लगी थी। पास में ही एक घर था। दोनों घर के पास पहुंच गए और दरवाजा खटखटाया।
घर के अंदर से एक आदमी बाहर निकला। जिसने फटे-पुराने कपड़े पहने हुए थे। महात्मा ने उससे कहा, "हमें बहुत भूख लगी हुई है, क्या हमें खाना मिल सकता है ?"
उस आदमी ने उन दोनों को खाना खिलाया। खाना खाने के बाद महात्मा ने कहा, "तुम्हारे खेतों की यह जमीन बहुत ही उपजाऊ लग रही है लेकिन तुम्हारी फसलों को देख कर लगता है कि तुम खेत पर ज्यांदा ध्यान नहीं देते और तुमने अपने खेत में ज्यादा फसल भी नहीं बोई है। तुम्हारा गुजारा कैसे होता है।"
उस आदमी ने कहा, "हमारे पास एक भैंस है जो काफी दूध देती है। उस दूध से हमारा गुजारा हो जाता है।"
रात होने लगी थी, इसलिए दोनों वहीं पर रुक गए। रात को महात्मा ने अपने शिष्य को उठाया और कहा, "चलो हमें अभी यहां से चलना है और चलने से पहले हम उस आदमी की भैंस को अपने साथ ले जाएंगे।"
शिष्य को गुरु की इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था लेकिन वह उनकी बात को टाल भी नहीं सकता था। वे दोनों उस आदमी की भैंस को लेकर रात को ही वहां से चले गए।
यह 'बात उस शिष्य के मन में खटकती रही।
कुछ सालों बाद जब वह सफल आदमी बन गया तो उसने सोचा कि क्यों न उस आदमी से मिला जाए और अपनी गलती को सुधारने के लिए उसकी मदद की जाए। वह शिष्य उस खेत के पास पहुंचा। उसने देखा कि वहां खाली पड़े खेत अब फलों के बगीचों में बदल चुके थे।
उसे लगा कि भैंस के मरने के बाद वह आदमी सब कुछ बेचकर चला गया होगा। यह सोच कर वह वापस लौटने लगा। तभी उसने उस आदमी को देखा। वह उसके पास जाकर बोला, "शायद आपने मुझे पहचाना नहीं। वर्षों पहले मैं अपने गुरु के साथ आपसे मिला था।"
"हां, मुझे याद है। कैसे भूल सकता हूं, उस दिन को। तुम लोग तो बिना बताए ही चले गए थे। उस रात न जाने हमारी भैंस भी कहां चली गई।"
शिष्य ने पूछा, "उसके बाद आपने क्या किया ?" आदमी ने बताया, "पहले तो हमारी समझ में नहीं आया कि क्या करें ? लेकिन जीने के लिए कुछ तो करना ही था। पहले तो मैं जंगल से लकड़ियां काटकर उन्हें बाजार में बेचने लगा, उससे कुछ पैसे मिले तो मैंने बीज खरीद कर खेतों में बो दिए। उस वर्ष फसल भी अच्छौ हो गई। उससे जो पैसे मिले, उन्हें मैंने फलों के बगीचे लगाने में इस्तेमाल किया। यह काम बहुत ही अच्छा चल
रहा है और इस समय मैं फलों का सबसे बड़ा व्यापारी हूं। मैं कभी-कभी सोचता हूं कि यह सब कुछ नहीं हुआ होता, अगर भैंस न गुम हुई होती।"
शिष्य ने उससे पूछा, "यह काम तो आप पहले भी कर सकते थे।"
उस आदमी ने कहा, "हां, मैं कर सकता था लेकिन मेरी जिंदगी बिना मेहनत के ही चल रही थी। मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं इतना कुछ कर सकता हूं।"
शिक्षा : क्या आपके जीवन में भी तो कोई ऐसी भैंस नहीं है जो आपको बड़ा बनने से रोक रही है ? अगर ऐसा है तो उसे आज ही छोड़ दो।
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