हनुमान जी किसके भक्त हैं? hanumaan jee kisake bhakt hain एक दिन की बात है कि श्रीरामचंद्रजी और सीताजी बैठे हुए थे, आपस में बाते हो रही थी। हनुमानजी की चर्चा छिड़ी तो श्रीरामजी ने कहा - हनुमान मेरा बड़ा भक्त है
हनुमान जी किसके भक्त हैं?hanumaan jee kisake bhakt hain ?

हनुमानजी की चर्चा छिड़ी तो श्रीरामजी ने कहा - हनुमान मेरा बड़ा भक्त है।
सीताजी बोली- अरे वाह ! आपने यह कैसे जाना ?
“वह तो मेरा भक्त है…
श्रीरामजी कहा – तुम्हे अभी क्या मालूम, मुझसे बढ़कर वह किसी को नही मानता…
सीताजी मुस्काई और बोली – आप धोखे में है, वह जितना मुझे मानता है उतना किसी को नही…
श्रीरामजी बोले – तो इसमें झगड़ने की कौन सी बात है ? उसी से पूछ लिया जाये.
सीताजी ने कहा- आज जब वे आयेंगे तब मैं एक चीज माँगूँगी, उसी समय आप भी कोई चीज माँग मांगियेगा । जिसकी चीज पहले आ जाये उसकी ही जीत हो जायेगा।
श्रीरामजी ने कहा- पक्की रही…
कुछ समय पश्चात हनुमानजी भी वहाँ पहुँच गये, श्रीरामजी और माता जानकी ने प्रसन्न्ता से उनका स्वागत किया।
हनुमानजी एक हाथ से श्रीरामजी और दूसरे से सीताजी के पैर दबाने लगे, सीताजी श्रीरामजी की और देखकर इशारा किया।
भगवान बोले- हनुमान ! तुम ,मेरे भक्त हो न ?
हनुमानजी पहले तो घबरा गये किन्तु विचार किया कि आज दाल में कुछ काला है ! वे बहुत ही बुद्धिमान जो ठहरे , सोचकर बोले – क्या पूछा प्रभु? आपका भक्त यानि राम का भक्त ? नही मैं राम का भक्त नही हूँ ।
इधर सीताजी ने समझा कि मेरी विजय हो गयी, हनुमान मेरा भक्त है। उन्होंने हँसते हुए श्रीरामजी की और देखा।
श्रीरामजी झेंपकर अपना पैर हटा लेते है, हनुमानजी ने उनका पैर छोड़ दिया…
तब सीताजी ने पूछा – तब तो तुम तो मेरे भक्त हो हनुमान..?
हनुमान जी ने कहा – आपका भक्त ? ऊँ – हूँ…मैं सीता का भी भक्त नही हूँ…माते
अब झेंपने की बारी सीता माता की थी…सीताजी आश्चर्य में डूब गई और भगवान रामजी हँसने लगे….सीताजी ने भी अपना पैर हटा लिया, और हनुमानजी ने उनका भी पैर छोड़ दिया, और खड़े हो गए।
श्रीरामजी और सीताजी दोनों चकित हो गए कि – यह न तो श्रीराम भक्त हैं और न श्रीसीताजी का ही फिर किसका भक्त है ।
श्रीरामजी ने फिर पूछा – तो हनुमान तुम मेरे भक्त नही हो ?
हनुमानजी – ऊँ- हूँ …
सीताजी ने पूछा- मेरे भी भक्त नही हो ?
इस बार भी हनुमान जी ने ऊँ – हूँ कह दिया ।
श्रीरामजी ने फिर पूछा – तो फिर किस के भक्त हो हनुमान? हमारी इतनी सेवा किसलिए करते हो ? यदि तुम किसी ओर के भक्त हो तुम उस के साथ विश्वासघात कर रहे हो । उसकी सेवा न करके हमारी सेवा करते हो ? तुम ठीक ठीक बतला दो कि किसके भक्त हो?
हनुमान जी ने हँस कर कहा – न मैं श्रीराम और न ही माता सीता का ही भक्त हूँ बल्कि मैं तो सिर्फ सीताराम का ही भक्त हूँ ।
हनुमान के इस चतुर उत्तर को सुनकर दोनों ही अत्यंत प्रसन्न हुए ; फिर श्रीरामजी बोले- हनुमान तुममे जितना बल है, उतनी ही बुद्धि भी है, किन्तु आज बुद्धि नही चलेगी, हमे तो आज फैसला ही करना है।
अब माता सीता बोली- हनुमान ? प्यास लगी हैं जरा जल ले ले आओ।
हनुमानजी बोले- अभी लाया माता…
इतने में ही श्रीरामजी बोल उठे- हनुमान ! बड़ी गर्मी हो रखी है जल्दी पँखा झलो नही तो मैं होश खो बैठूंगा…
इतना सुनते ही हनुमानजी ठिठक गये और मन ही मन कहा- आज तो मेरी परीक्षा है- मैं किसकी आज्ञा का पालन करु?
उन्होंने कहा- प्रभु माता के लिए जल ले आउँ फिर आपके लिये पँखा लाकर हवा करूँगा.
भगवान कह रहे है बड़ा ही व्याकुल हूँ जल्दी हवा करो और उधर माता सीता के प्यास के मारे होंठ सूखे जारहे है । यह क्या लीला है ! आखिर वह सब लीला समझ समझ गये और मुस्कराने लगे ।
कुछ देर में वह बड़े जोर से बोले- श्री सीताराम की जय ! यह कहकर वहाँ खड़े खड़े ही अपनी दोनों भुजाएँ बढाने लगे । तुरन्त ही एक हाथ में जल का गिलास और दूसरे हाथ में पँखा आ गया, श्रीरामजी को पँखा झलने लगे दूसरा हाथ सीताजी की तरफ बढ़ दिया, जिसमे जल का भरा गिलास था । और सीता – राम जी बड़े प्रसन्न हुये । हनुमानजी की प्रेम देखकर दोनों मग्न हो गये ।
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यहां पढ़ें : श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित
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