राम राम का सही अर्थ क्या है? यह सिर्फ एक अभिवादन नहीं, बल्कि भगवान राम के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। राम नाम की महिमा अनंत है, जो हमारे मन को शांति और सच्चाई की ओर ले जाती है। मर्यादा पुरुषोत्तम का क्या अर्थ है? इसका तात्पर्य है – वह पुरुष जो मर्यादा का पालन करते हुए श्रेष्ठता की चरम सीमा पर पहुंचा हो, और यह उपाधि केवल भगवान श्रीराम को ही शोभा देती है। जब हम कहते हैं "जय श्री राम", तो यह केवल एक नारा नहीं बल्कि धर्म, साहस और सच्चाई की विजय का उद्घोष है। लोग इसे "जय श्री राम इन हिंदी" या "Jai Shree Ram" के रूप में उच्चारित करते हैं, जो देश-विदेश में रामभक्तों के दिलों में जोश भर देता है। Ram Ram कहना भारतीय संस्कृति में शिष्टाचार का प्रतीक है, वहीं "Ram Ram Jai Raja Ram Ram Ram Jai Sita Ram" जैसे मंत्रों में भक्ति, प्रेम और राम-सीता के आदर्शों की झलक मिलती है। यदि आप इंटरनेट पर Jai Shree Ram Photo खोजते हैं, तो आपको श्रीराम की अद्भुत छवियाँ मिलेंगी, जो आपके मन को अध्यात्म से भर देंगी।
जय श्री राम Jai Shree Ram / Jay Shri Ram भारतीय भाषाओं में एक अभिव्यक्ति है, जिसका अनुवाद "भगवान राम की महिमा" या "भगवान राम की जीत" के रूप में किया जाता है। उद्घोषणा का उपयोग हिंदुओं द्वारा अनौपचारिक अभिवादन के रूप में, हिंदू आस्था के पालन के प्रतीक के रूप में, या विभिन्न आस्था-केंद्रित भावनाओं के प्रक्षेपण के लिए किया गया है।

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मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम Shree Ram के पावन चरित्र ने संसार के सर्वाधिक लोगों को प्रभावित किया है। उनके अनूठे उदात्त चरित्र से प्रत्येक देश व उसके पंथ-सम्प्रदाय के लोग प्रेरणा प्राप्त करते हैं इसीलिए श्री रामचरित मानस का संसार की सर्वाधिक भाषाओं में अनुवाद हुआ और वह घर-घर तक पहुंचा।
मर्यादा पुरुषोत्तम का क्या अर्थ है?
मर्यादा पुरुषोत्तम का अर्थ है – वह पुरुष जो हर स्थिति में धर्म और मर्यादा का पालन करते हुए सर्वोच्च आदर्श स्थापित करता है। यह उपाधि केवल और केवल भगवान श्रीराम को दी गई है, जिन्होंने अपने जीवन के हर मोड़ पर सत्य, निष्ठा, और कर्तव्य का पालन किया। उन्होंने एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति और आदर्श राजा का उदाहरण प्रस्तुत किया। यही कारण है कि वे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहलाते हैं।
बनवास जाने से पहले दान
श्री राम Shree Ram अयोध्या-पति महाराज दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे। परम्परानुसार राजा दशरथ ने उनके राज्याभिषेक का निर्णय लिया। मंथरा के कुसंग से भ्रमित कैकेयी अपने पति राजा दशरथ को वचन जाल में फंसाकर श्री राम Shree Ram को राज्याभिषेक की जगह वन भेजे जाने के लिए लाचार करने में सफल हो गई। यदि राजकुमार श्रीराम Shree Ram परम्परा व अधिकार का सहारा लेते तो वह न्याय व परम्परा का उदाहरण देकर पिताश्री को राज्याभिषेक के लिए विवश कर सकते थे, किन्तु वह धर्मशास्त्रों के मातृ-पितृ भक्त के महत्व को जीवन में मूर्तरूप देने वाली विभूति थे। उन्होंने न्याय-अधिकार की अपेक्षा पिता के आदेश का पालन करने में अपने पुत्र धर्म को महत्व दिया तथा प्रसन्नतापूर्वक वनवास के लिए तत्पर हो उठे। वनवास से पूर्व भी वह ऋषियों-मुनियों को सताने वाले, यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों में बाधा डालने वाले राक्षसों के समूल उन्मूलन के लिए गुरु विश्वामित्र के निर्देश पर वनगमन हेतु पिता का आदेश मिलते ही तत्पर हो गए थे। इस बार विशाल साम्राज्य के राजा बनने की जगह श्री राम Shree Ram को चौदह वर्ष के वनवास का आदेश मिला तो उसे भी श्री राम Shree Ram ने पितृ आज्ञा मानकर सहर्ष स्वीकारने में एक क्षण का भी विलम्ब नहीं किया। पत्नी सीता व भ्राता लक्ष्मण के साथ जाने के आग्रह को स्वीकार कर वह वल्कल धारण कर वनगमन कर गए। क्या संसार के किसी अन्य देश में ऐसे अनूठे त्याग का दूसरा उदाहरण मिल सकता है ?
राक्षसराज रावण का पुत्रों सहित वध करने के पश्चात भगवान श्रीराम स्वर्णमयी लंका पर पूरा अधिकार कर सकते थे। किन्तु त्याग, तपस्या व विरक्तता की प्रतिमूर्ति श्री राम Shree Ram ने लंका की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखा। उसे रावण के सदाचारी भाई विभीषण को सहर्ष सौंपने की घोषणा कर दी और लक्ष्मण जी को आदेश दिया कि अपनी उपस्थिति में लंका पहुंचकर विभीषण का राजतिलक सम्पन्न कराओ। लक्ष्मण भ्राता श्री राम Shree Ram का आदेश मिलते ही लंका पहुंचे। भव्यतम स्वर्णनगरी लंका की अनूठी शोभा, अपार सम्पदा को देखकर एक बार तो वह मोहित हो उठे। विधि-विधान से वैदिक मंत्रोच्चार के बीच ब्राह्मणों से उन्होंने विभीषण का राज्याभिषेक कराया। वह लौटकर जब शिविर में पहुंचे तो श्रीराम से बोले, "भ्राता श्री, लंका तो अत्यंत दिव्य, अनूठी व सुंदर नगरी है। मन चाहता है कि कुछ समय के लिए इस स्वर्णनगरी में निवास किया जाए।' श्री राम Shree Ram समझ गए कि लक्ष्मण को स्वर्णनगरी ने मोह लिया है। बोले 'लक्ष्मण यह सत्य है कि लंका वास्तव में स्वर्गपुरी के समान अनूठी है, किन्तु यह ध्यान रखना कि अपनी मातृभूमि अयोध्या तीनों लोकों से कहीं अधिक सुंदर है। जहां मानव जन्म लेता है वहां की मिट्टी की सुगंध की किसी से तुलना नहीं की जा सकती।' श्री राम Shree Ram के ये शब्द मातृभूमि के प्रति अनन्य प्रेम निष्ठा के परिचायक हैं।
श्रीराम Shree Ram ने वनगमन से पूर्व अपने कोष से अपने प्रत्येक सेवक को इतना धन दान सारूप प्रदान किया कि चौदह वर्ष तक वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। कोष का बहुत-सा धन वृद्धों व दीन-दुखियों को दान कर दिया। अयोध्या निवासी गरीब ब्राह्मण त्रिजट की तमाम गऊएं वृद्धावस्था के कारण मर गई थीं। श्रीराम उस गरीब की समय-समय पर सहायता करते रहते थे। त्रिजट की पत्नी को पता चला कि श्री राम Shree Ram वनगमन से पूर्व गरीबों को दान दे रहे हैं। उसने आग्रह करके अपने पति को श्री राम Shree Ram के पास भेजा। त्रिजट ने देखा कि महल में वन यात्रा दान महोत्सव जारी है। त्रिजट को श्रीराम के सामने ले जाया गया। श्री राम Shree Ram उसे देखते ही समझ गए कि उसके पास खाद्यान्न व दूध आदि का भी सर्वथा अभाव है। उन्होंने कहा, "विप्र देव, आप अपने हाथ का डंडा जितनी दूर भी फेंक सकेंगे वहां तक की भूमि व गऊएं आपकी हो जाएंगी। त्रिजट ने डंडा फेंका, वह डंडा जहां गिरा उसके बीच की सारी भूमि व गऊएं त्रिजट को प्रदान कर दी गईं। गरीब-दरिद्रों के प्रति ऐसे दयावान थे युवराज श्रीराम ।
अपने वनवास काल में श्री राम Shree Ram ने दर्शनों के लिए प्रतीक्षारत, साधनारत निश्छल हृदय भक्त शबरी के आश्रम में पहुंचकर उसके जूठे बेरों का रसास्वादन कर अपनी अनूठी उदारता व करुणा का परिचय दिया। रावण द्वारा सीता का अपहरण कर ले जाते समय उससे जूझते हुए प्राणोत्सर्ग करने को तत्पर घायल जटायु पर किस प्रकार गोद में लेकर प्रेम उंडेला, उसकी मृत्यु के बाद स्वयं अपने हाथों से अन्त्येष्टि की, यह श्री राम Shree Ram की दयालुता व विशाल हृदय का ज्वलंत उदाहरण है। वन में श्री राम Shree Ram ने निषाद, कोल, भील-सभी से प्रेम व समानता का व्यवहार व आदर्श उपस्थित किया। श्रीराम ने दुष्ट प्रवृत्ति के भ्राता बाली से त्रस्त सुग्रीव को उसके आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए उसका वध किया। पम्पापुर का राज्य तुरंत सुग्रीव को सौंपकर एक अनूठा आदर्श उपस्थित किया।
अनूठी विनयशीलता
सनकादि मुनि ऋषिवर अगस्त जी के आश्रम में पहुंचे। उनके दर्शन करने के बाद लौटते समय उनकी इच्छा हुई कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम Shree Ram तथा उनके परमभक्त हनुमान जी Hanuman ji के दर्शन हों। चारों सनकादि मुनिगण वन से गुजर रहे थे कि अचानक श्री राम Shree Ram हनुमान जी के साथ उपवन की ओर जाते दिखाई दिए। श्री राम Shree Ram की दृष्टि भी उन पर पड़ गई। श्री राम Shree Ram चारों मुनियों के चेहरे के अनूठे तेज व शांति को देखकर प्रभावित हो उठे। उन्हें लगा कि जैसे मुनि का रूप धारण कर चारों देव आए हों। मुनिगण उपवन में उनके समक्ष आ खड़े हुए। उन्हें अनुभूति हुई कि कुछ क्षण पहले वे श्री राम Shree Ram के दर्शन की इच्छा कर रहे थे, देव कृपा से अनायास ही वह पूरी हो गई है। श्री राम Shree Ram ने भूमि पर लेट कर मुनियों को दंडवत प्रणाम किया। अपना पीताम्बर उतारकर उनके बैठने के लिए भूमि पर बिछा दिया। श्री राम Shree Ram ने विनम्रता से कहा, 'आपके दर्शन पाकर मैं आज धन्य हो गया हूं। आपके दर्शनों 44 से मेरे तमाम पाप नष्ट हो गए हैं।" मुनिगण प्रभु श्री राम Shree Ram की विनम्रता तथा अहंकारशून्य व्यक्तित्व को देखकर गद्गद् हो उठे।
रावण ने भी की राम की प्रशंशा
रावण के पुत्र मेघनाद का लक्ष्मण के साथ हुए युद्ध में वध हो चुका था। मेघनाद का शव धरती पर रक्तरंजित पड़ा था। चारों ओर से श्री राम Shree Ram की सेना उसे घेरे हुए थी। मेघनाद की पत्नी सुलोचना रावण के पास पहुंची। बोली, "मेरे पतिदेव का शव मंगाने की व्यवस्था करें, जिससे कि उनकी विधिवत अन्त्येष्टि की जा सके।" रावण ने उत्तर दिया, "देवी तुम स्वतः ही राम दल में पहुंचकर अपने पति का शव प्राप्त करो। जिस समाज में बाल ब्रह्मचारी हनुमान, परम जितेंद्रिय लक्ष्मण तथा श्रीराम हैं, वहां तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं है।" रावण के शब्द सुनकर एक मंत्री ने कहा, "जिनकी पत्नी सीता जी को आपने बंदी बनाकर लंका में रखा हुआ है, क्या उनके बीच अपनी बहू का भेजा जाना उचित होगा ?" मंत्री के वचन सुनते ही रावण बोला, 'लगता है तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। अरे यह तो रावण का 44 काम है जो दूसरे की स्त्री का अपहरण कर उसे बंदी बनाकर रखे हुए है। श्रीराम तथा उनके भक्तजनों के प्रति तो ऐसी शंका की ही नहीं जा सकती।'
अयोध्या से लंका की तुलना नहीं
राक्षसराज रावण का पुत्रों सहित वध करने के पश्चात भगवान श्री राम Shree Ram स्वर्णमयी लंका पर पूरा अधिकार कर सकते थे। किन्तु त्याग, तपस्या व विरक्तता की प्रतिमूर्ति श्री राम Shree Ram ने लंका की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखा। उसे रावण के सदाचारी भाई विभीषण को सहर्ष सौंपने की घोषणा कर दी और लक्ष्मण जी को आदेश दिया कि अपनी उपस्थिति में लंका पहुंचकर विभीषण का राजतिलक सम्पन्न कराओ। लक्ष्मण भ्राता श्री राम Shree Ram का आदेश मिलते ही लंका पहुंचे। भव्यतम स्वर्णनगरी लंका की अनूठी शोभा, अपार सम्पदा को देखकर एक बार तो वह मोहित हो उठे। विधि-विधान से वैदिक मंत्रोच्चार के बीच ब्राह्मणों से उन्होंने विभीषण का राज्याभिषेक कराया। वह लौटकर जब शिविर में पहुंचे तो श्री राम Shree Ram से बोले, "भ्राता श्री, लंका तो अत्यंत दिव्य, अनूठी व सुंदर नगरी है। मन चाहता है कि कुछ समय के लिए इस स्वर्णनगरी में निवास किया जाए।' श्री राम Shree Ram समझ गए कि लक्ष्मण को स्वर्णनगरी ने मोह लिया है। बोले 'लक्ष्मण यह सत्य है कि लंका वास्तव में स्वर्गपुरी के समान अनूठी है, किन्तु यह ध्यान रखना कि अपनी मातृभूमि अयोध्या तीनों लोकों से कहीं अधिक सुंदर है। जहां मानव जन्म लेता है वहां की मिट्टी की सुगंध की किसी से तुलना नहीं की जा सकती।' श्री राम Shree Ram के ये शब्द मातृभूमि के प्रति अनन्य प्रेम निष्ठा के परिचायक हैं।
मंथरा से भी ममता
श्री राम Shree Ram चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे। माता कैकेयी को वरगलाकर श्रीराम को वनवास दिलाकर भरत जी को अयोध्या का राजा बनवाने के आरोप में दासी मंथरा को पूरे अवध का कोपभाजन बनना पड़ा था। मंथरा राजमहल से निकाल दी गई। वह एक छोटी-सी झोंपड़ी में रह कर दिन काट रही थी। श्रीराम एक दिन मंथरा के पास जा पहुंचे। वह आशंका से चितित थी कि श्री राम Shree Ram तथा महाराजा दशरथ को मुसीबतों में धकेलने के आरोप में उसे दंडित किया जा सकता है। श्री राम Shree Ram ने उसेक पास जाकर विनम्रता से कहा, 'मंथरा, हम तो तुम्हारी गोदी में खेले हैं। यहां अकेली क्यों रहती हो। मेरे साथ राजमहल चलो।' मंथरा यह शब्द सुनते ही हक्की-बक्की रह गई। वह सोचने लगी कि मैंने माता कैकेयी को वरगलाकर जिन्हें राजा की गद्दी पर नहीं बैठने दिया, वह मुझसे उदारता का व्यवहार कैसे कर रहे हैं। उसकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली। अपने को गोद में खिलाने वाली अपराधिन दासी के प्रति भी ममता का यह आचरण श्रीराम Shree Ramके मर्यादा पालन का ही अनूठा उदाहरण है। यही आचरण उन्हें एक पराक्रमी राजा से कहीं अधिक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम Shree Ram के रूप में यशस्वी बनाता है।
हर तरह से कल्याण करता है राम का नाम
कर्त्तव्य और पौरुष के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम Shree Ram विष्णु जी के सातवें अवतार के रूप में अवतरित हुए। उनके आदर्शों के वर्णन से एक महान ग्रंथ को रचना हुई रामायण के नाम से विख्यात है और उसकी दिव्यता सर्वत्र है। रामायण हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और सामाजिक मर्यादाओं को अनुपम धरोहर है। यह केवल हिंदू धर्म में ही नहीं, राम तो हर धर्म में समाए हुए हैं। भारतीय जनमानस पर रामायण का प्रभाव बड़ा ही व्यापक एवं गहन है।
भारत में संस्कृतियों का जो विचार समन्वय हुआ है, उसके मूल में भी इसको कम महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रही है। रामायण बहुआयामी एवं कालजयी रचना है। जनमानस के सांस्कृतिक जीवन में गहराई से व्याप्त रामायण का अपना लौकिक महत्व भी है पर इसके साथ भारतीय संस्कृति के सम्पूर्ण क्षेत्रों में रामायण का अपरिमित प्रभाव भी रहा है। रामायण एक विशाल सागर है, जिसकी गहराई में उतर कर जो कोई भी वापस सतह पर आता है, उसके पास होता है। राम नाम का अनमोल रतन वह राम रस में भीगा हुआ होता है और राम नाम Ram Ram से मुग्ध होता है परन्तु दुख इस बात का है कि हम इस सागर की गहराई में उतरने की बजाय उसके तट पर भी खड़ा होना नहीं चाहते, बल्कि अनासक्ति अपनात हुए दूरस्थ मार्ग पर चल पड़े हैं और फंस चुके है में, दलदल जो साम्प्रदायिकता व अराजकता का है, दलदल जो संकीर्णता व स्वार्थपरता का है। दलदल जो घृणा हो भावना से भरा हुआ है। दलदल जो पाश्चात्य सभ्यता तथा संस्कृति को ज्ञान ने आधुनिक युवा पीढ़ी को अपने मोहपाश में इस तरह जकड़ लिया है कि वह नैतिकता, जीवन मूल्य आदशों और नम्रता से कोसों दूर हो गया है। आज नहीं तो कल जब हम इससे निकलने का निर्णय करेंगे तो हमें शरण लेनी पड़ेगी राम नाम की। प्रभु श्री राम Shree Ram का जोवन मर्यादा निर्वाह के आदर्श चरित्र के रूप में मानवीय इतिहास का एक जाज्वल्यमान प्रकाश पूंज है। मनुष्य समाज एवं संस्कृति के पतन की इस गंभीर स्थिति में रामनवमी का पर्व इस दुर्दशा से उबरने के लिए संकल्पित होने का अवसर है। श्री रामनवमी पर्व हर वर्ष चैत्रमास में शुक्लपक्ष को नवमी तिथि को मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री राम Shree Ram जो अयोध्या के राजमहल ( Ram Mandir Ayodhya ) में महाराज दशरथ और महारानी कौशल्या जी के पुत्र रत्न के रूप में प्रकट हुए थे। के मानस पटल में यह त्यौहार अद्भुत प्रेम और उमंग का सवार कर देता है। प्रभु श्री राम के आदर्श चरित्र चितन एवं उनकी परम पावन लीलाओं का स्मरण करते हुए यह सहज संभव हैं। कुछ भी हो, राम एक विभूति हैं जिनकी सहज याद से हो श्रद्धा और आदर से मनुष्य नतमस्तक हो जाता है। भारत का कण-कण राम की अजर अमर स्मृति से ओत प्रोत है।
आज मनुष्य समाज आचिन्तय चितन, अनुपयुक्त आचरण अदुरदर्शिता और अनास्था के मायाजाल में जकड़ा हुआ है। ऐसे समय में मानव का जीने की राह केवल राम नाम का सिमरन व रामायण ही दिखा सकती है। वस्तुतः राम नाम का सिमरन रामायण का पाठ कामनापूर्ति के लिए कामधेनु है। कल्पनाओं को साकार करने वाला चितामणि है। इससे सभी तरह का होता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम Shree Ram हर रूप में आदर्श हैं. स्तुत्य है, पूज्य है और अभिनंदनीय हैं।
जय श्री राम Jai Shree Ram
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राम राम जय राजा राम राम जय सीता राम
राम राम जय राजा राम राम जय सीता राम।।
राम राम जय राजा राम राम जय सीता राम
राम राम जय राजा राम राम जय सीता राम।।
राम राम जय राजा राम राम जय सीता राम
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राम राम जय राजा राम राम जय सीता राम
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राम राम जय राजा राम राम जय सीता राम
राम राम जय राजा राम राम जय सीता राम।।
राम राम जय जय श्री राम राम राम जय जय श्री राम
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Ram Ram Jai Raja Ram Ram Ram Jai Sita Ram in English
FAQs.
Q. राम का चरित्र क्या है? Ram Charitra kya hai
Ans. तुलसीदास जी ने श्री राम को एक आदर्श पुरुष के रूप में चित्रित किया है, जिनमें सभी प्रकार के गुणों का समावेश है। वे करुणा, दया, क्षमा, सत्य, न्याय, सदाचार, साहस, धैर्य, और नेतृत्व जैसे गुणों के धनी हैं। वे एक आदर्श पुत्र, भाई, पति, राजा, और मित्र हैं।
Q. राम की कहानी क्या थी?
Ans. भगवान विष्णु ने राम बनकर असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर जन्म लिया। भगवान श्री राम ने मातृ−पितृ भक्ति के चलते अपने पिता राजा दशरथ के एक आदेश पर 14 वर्ष तक वनवास काटा। नैतिकता, वीरता, कर्तव्यपरायणता के जो उदाहरण भगवान राम ने प्रस्तुत किए वह बाद में मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक बन गए।
Q. भगवान राम के बारे में क्या खास है?
Ans. भगवान राम को 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहा गया है अर्थात पुरुषों में सबसे श्रेष्ठ उत्तम पुरुष। अपने वनवास के दौरान उन्होंने देश के सभी आदिवासी और दलितों को संगठित करने का कार्य किया और उनको जीवन जीने की शिक्षा दी। इस दौरान उन्होंने सादगीभरा जीवन जिया। उन्होंने देश के सभी संतों के आश्रमों को बर्बर लोगों के आतंक से बचाया।Q. भगवान राम का इतिहास क्या है? Bhagwan ram ka itihaas
Ans. राम का जन्म त्रेता युग में अर्थात द्वापर युग से पहले हुआ था। चूंकि कलियुग का अभी प्रारंभ ही हुआ है (लगभग 5,500 वर्ष ही बीते हैं) और श्रीराम का जन्म त्रेता के अंत में हुआ तथा अवतार लेकर धरती पर उनके वर्तमान रहने का समय परंपरागत रूप से 11,000 वर्ष माना गया है।Q. राम की तीन विशेषताएं क्या हैं? Ram ki visheshtayen bataiye
Ans. उन्होंने मर्यादा, करुणा, दया, सत्य, सदाचार और धर्म के मार्ग पर चलते हुए राज किया. इस कारण उन्हें आदर्श पुरुष और मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है. भगवान राम में अनेक गुण हैं, जोकि हर व्यक्ति में जरूर होना चाहिए. भगवान श्रीराम में सहनशीलता और धैर्य की परकाष्ठा का विशेष गुण है.Q. राम कितने वर्ष जीवित रहे? Ram Kitne varsh jivit rahe
Ans. वाल्मीकि जी के रामायण के अनुसार भगवान राम जब वनवास जा रहे थे, उस समय उनकी उम्र 27 वर्ष थी. वहीं, रावण से युद्ध के समय उनकी उम्र लगभग 38 से 40 के बीच मानी जाती है. भगवान राम लगभग 41 वर्ष की उम्र में अयोध्या लौटे थे और 11000 सालों तक जीवित रहकर राज्य किया था.Q. राम में कितने गुण हैं?
Ans. इसमें महर्षि वाल्मीकि नारद से पूछते हैं कि इस संसार में क्या कोई ऐसा इंसान है जो हमेशा सच बोलने वाला, धर्म को जानने और उस पर चलने वाला, वीर्यवान और हर तरह के गुणों से संपन्न हो। इस पर नारद जी, महर्षि वाल्मीकि को श्रीराम के बारे में बताते हैं। नारद जी कहते हैं कि इक्ष्वाकु वंश में पैदा हुए राम के 45 गुण बताए हैं।Q. राम के चरित्र से हमें क्या शिक्षा मिलती है? ram ke charitra se hamen kya shiksha milati hai / shri ram ke charitra se hamen kya shiksha milati hai / ram ke charitra se hamen kya shiksha milati hai
Ans. अध्यात्मिक वक्ता राकेश मिश्रा ने कहा कि धर्म, सत्य, शौर्य, शील, संयम, विनम्रता आदि गुणों के प्रतीक भगवान राम का चरित्र युगों युगों तक मानव को सदाचरण के मार्ग पर चलना सिखाता रहेगा। राम ने अपने जीवन में क्षात्र-धर्म, पुत्र-धर्म, भ्रातृ-धर्म, पति-धर्म, मित्र-धर्म का पालन कर एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है।Q. भगवान राम का उद्देश्य क्या था?
Ans. राम के जीवन का उद्देश्य एक आदर्श राजा और एक आदर्श इंसान बनना था. वह एक दयालु, करुणावान और न्यायप्रिय व्यक्ति थे. उन्होंने अपने जीवन में हमेशा सत्य और धर्म का पालन किया. उन्होंने अपने लोगों की रक्षा की और उन्हें खुशहाल जीवन जीने में मदद की.Q. भगवान राम की कथा क्या है? Ram Ji Ki Katha
Ans. ऐसा कहा जाता है कि उनका जन्म देवताओं की आज्ञा से हुआ था। अग्नि द्वारा बुलाए जाने के बाद विष्णु ने राजा दशरथ को अमृत का घड़ा दिया। अमृत का घड़ा रानी कौशल्या को पिलाया जाता है, जो फिर राम को जन्म देती हैं। राम का उद्देश्य लंका (आधुनिक श्रीलंका) के राजा राक्षस रावण को हराना है।Q. असली राम कैसे दिखते थे? राम जी की असली फोटो / Asli Ram kaise dikhte the / Ram ji asli mein kaise dikhte the
Ans. महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में बताया है कि, भगवान श्री राम का चेहरा एकदम चंद्रमा की तरह चमकीला, सौम्य, कोमल और सुंदर था। उनकी आंखे कमल की भांति खबसूरत और बड़ी थी। उनकी नाक उनके चेहरे की तरह ही लंबी और सुडौल थी। उनके होठों का रंग सूर्य के रंग की तरह लाल था और उनके दोनों होठ समान थे।Q. श्री राम का अर्थ क्या होता है? Shri Ram ka arth kya hota hai / Shri Ram Naam ka arth kya hota hai
Q. राम राम का सही अर्थ क्या है ? Ram Ram ka arth kya hota hai
Ans. राम शब्द संस्कृत के रम् और घम से मिलकर बना है. रम् का अर्थ है रमना या समा जाना और घम का अर्थ है ब्रह्मांड का खाली स्थान. इस तरह राम का अर्थ है सकल ब्रह्मांड में निहित या रमा हुआ तत्व यानी चराचर में विराजमान स्वयं ब्रह्म.
Q. मर्यादा पुरुषोत्तम का क्या अर्थ है? Maryada Purushottam ka kya arth hai
Ans. भगवान राम भगवान विष्णु के 7वें अवतार हैं और उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, जिसका अर्थ है पूर्ण पुरुष । क्योंकि राम सत्य के अवतार हैं, वे आदर्श पुत्र, आदर्श पति और सबसे महत्वपूर्ण आदर्श राजा हैं।
Thankyou