रामेश्वरम एक प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक स्थल है। यह भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में स्थित एक खूबसूरत द्वीप है जो 12 ज्योतिर्लिंगों और चार धामों में से एक है। हम चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन से वातानुकूलित ट्रेन चंडीगढ़-मदुरै सुपरफास्ट एक्सप्रैस द्वारा मदुरै पहुंचे, जो चंडीगढ़ से लगभग 2900 किलोमीटर दूर है। मदुरै से ट्रेन या सड़क मार्ग से रामेश्वरम पहुंचना होता है जहां से यह लगभग 175 किलोमीटर दूर है।
रामेश्वरम (Rameswaram), जिसे तमिल लहजे में "इरोमेस्वरम" भी कहा जाता है, भारत के तमिल नाडु राज्य के रामनाथपुरम ज़िले में एक तीर्थ नगर है, जो हिन्दू धर्म के पवित्रतम चार धाम तीर्थस्थलों में से एक है। यह रामेश्वरम द्वीप (पाम्बन द्वीप) पर स्थित है, जो भारत की मुख्यभूमि से पाम्बन जलसन्धि द्वारा अलग है और श्रीलंका के मन्नार द्वीप से 40 किमी दूर है। भौगोलिक रूप से यह मन्नार की खाड़ी पर स्थित है। चेन्नई और मदुरई से रेल इसे पाम्बन पुल द्वारा मुख्यभूमि से जोड़ती है।
रामेश्वरम मंदिर का इतिहास क्या है? Rameshwaram Temple history hindi
तमिलनाडु में समुद्र तट पर स्थित इस मंदिर को रामायणकालीन माना जाता है. मान्यता है कि अयोध्या के राजा भगवान श्री राम ने लंकापति रावण से युद्ध करने से पहले विजय की कामना लिए हुए इसी स्थान पर रेत का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की साधना की थी. जिसके बाद भगवान शिव यहां ज्योति रूप में प्रकट हुए.
रामायण की घटनाओं में रामेश्वरम की बड़ी भूमिका है। यहाँ श्रीराम ने भारत से लंका तक का राम सेतु निर्माण करा था, ताकि सीता की सहायता के लिए रावण के विरुद्ध आक्रमण करा जा सके। यहाँ श्रीराम ने शिव की उपासना करी थी और आज नार के केन्द्र में खड़ा शिव मन्दिर उशी घटनाक्रम से समबन्धित है। नगर और मन्दिर दोनों शिव व विष्णु भक्तों के लिए श्रद्धा-केन्द्र हैं।
तीर्थ और मान्यता
यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण रामनाथ स्वामी (या रामेश्वर) मंदिर है जो एक शिव ज्योतिर्लिंग (प्रकाश का स्तंभ) भी है। कथाओं के अनुसार जब श्रीराम ने लंका के राजा रावण का वध कर सीता जी को मुक्त किया तो गंधमादन पर्वत पर स्थित ऋषियों ने श्रीराम पर ब्राहमण (रावण की) वध का आरोप लगाने लगे। उनकी सलाह के अनुसार इस पाप को धोने के लिए श्रीराम ने यहाँ पर शिव की पूजा करने का निर्णय लिया था। लेकिन रेत से लिंग कैसे बने इस दुविधा के लिए उन्होंने हनुमान को कैलाश पर्वत (हिमालय) से शिवलिंग लाने को कहा। जब हनुमान के लिंङग लाने में देर हुई तो सीता जी ने रेत का लिंग बना दिया और राम जी ने उसकी आराधना की। हनुमान जब वापस आए तो ग़ुस्सा हुए, समझाने के लिए श्रीराम ने पुराने लिंग के स्थान पर हनुमान द्वारा लाए लिंग को लगाने को कहा। हनुमान के लाख प्रयास करने के बाद भी लिंग न हिला। इसलिए श्रीराम ने ये विधि स्थापित की कि पहले इस (रेत के) लिंग की पूजा होगी तब जाकर कैलाश पर्वत वाले लिंग की। इसके बाद से ऐसा ही होता आ रहा माना जाता है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना कैसे हुई थी?
भगवान शिव की साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें विजयश्री का आशीर्वाद दिया था। आशीर्वाद के साथ ही श्रीराम ने शिवजी से अनुरोध किया कि जनकल्याण कि लिए वे सदैव ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां निवास करें। उनकी इस प्रार्थना को भोलबाबा ने सहर्ष स्वीकार किया और तब से रामेश्वरम में इस शिवलिंग की पूजा हो रही है।
हम शाम साढ़े पांच बजे मदुरै स्टेशन पर थे क्योंकि 6 बजे रामेश्वरम के लिए लोकल ट्रेन चलती है। जैसे-जैसे ट्रेन रामेश्वरम द्वीप की ओर बढ़ रही थी, समुद्र तट का सुंदर दृश्य सामने आ रहा था। अंधेरा घिरने पर ऐसा लगा कि प्रकृति ने सुबह तक के लिए इन सुंदर दृश्यों को अपनी गोद में छुपा लिया हो। ट्रेन जब रात में पम्बन ब्रिज के ऊपर से गुजरी तो शानदार रोशनी में यह बहुत ही खूबसूरत नजर आ रहा था।
रामेश्वरम तक पहुंचने के लिए खतरनाक रेलवे पुल' पम्बन ब्रिज' को पार करना पड़ता है, जो समुद्र के ऊपर लगभग दो किलोमीटर लम्बा है। यह पुल दुनिया के सबसे खतरनाक पुलों में से एक है। ट्रेन बहुत धीमी गति से इस पर से गुजरती है। इसके समानांतर सड़क पुल भी है।
इस ब्रिज का निर्माण ब्रिटिश शासन के दौरान अगस्त 1911 में शुरू हुआ और 3 साल की अवधि के बाद 1914 में पूरा हुआ था। ट्रेन से यात्रा करने के अलावा, यहां पहुंचने वाले यात्री सड़क पुल के एक तरफ खड़े होकर भी इसे देखते हैं।
1988 में सड़क पुल के निर्माण से पहले पम्बन पुल देश के साथ रामेश्वरम द्वीप को जोड़ने का एकमात्र माध्यम था।
रामेश्वरम मंदिर Rameshwaram Temple
अगले दिन सुबह हम रामेश्वरम मंदिर में नतमस्तक हुए और पूजा की। भारत के विभिन्न भागों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। दर्शनों के लिए कतारों में खड़ा होना पड़ता है। यह हिन्दू धर्म का एक पवित्र स्थान है। यहां सुंदर मूर्तिकला देखते ही बनती है। मंदिर की विशाल सुनहरे रंग की इमारत बहुत ही सुंदर है। मंदिर बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। हर साल चार धाम यात्रा के तहत भी लाखों भक्त यहां दर्शन करने आते हैं।
रामेश्वरम
उत्तर भारत में काशी (वाराणसी या बनारस) की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है। धार्मिक हिंदुओं के लिए वहां की यात्रा उतना की महत्व रखती है, जितना कि काशी की। रामेश्वरम चेन्नई से कोई ६०० किमी दक्षिण में है। रामेश्वरम एक सुन्दर टापू है। हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी इसको चारों ओर से घेरे हुए हैं। यहाँ पर रामायण से संबंधित अन्य धार्मिक स्थल भी हैं। यह तमिल नाडु के रामनाथपुरम ज़िले का तीसरा सबसे बड़ा शहर है जिसकी देखरेख १९९४ में स्थापित नगरपालिका करती है। पौराणिक कथाओं के अतिरिक्त यहाँ पर श्रीलंका के जाफ़ना के राजा, चोल और अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर की भी उपस्थिति रही है। श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान विस्थापित तमिलों, ईसाई मिशनरियों और रामसेतु को तोड़कर नौवहन का रास्ता तैयार करने के लिए भी यह शहर चर्चा में रहा है। जिला मुख्यालय, रामनाथपुरम से यह कोई ५० किलोमीटर पूर्व की दिशा में पड़ता है। पर्यटन तथा मत्स्यव्यापार यहाँ के वासियों की मुख्य आजीविका है।
शाम का सुंदर दृश्य Rameshwaram Temple
पर्यटक शाम के समय समुद्र तट का नजारा देख सकते हैं। वे समुद्र में गोते लगाते हैं और अठखेलियां करते हैं। समुद्र की लहरों के साथ घुलने-मिलने से आत्मा को शांति मिलती है।
गुरुद्वारा गुरु नानक धाम रामेश्वरम में स्थित गुरुद्वारा गुरु नानक धाम सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी का चरण छोह तीर्थस्थल है, जो बहुत सुंदर है। मुख्य सड़क से बाईं ओर गुरु नानक देव जी से जुड़ा यह तीर्थ है। मान्यता है कि श्रीलंका से वापसी पर 1511 ईस्वी में गुरु नानक देव जी के पवित्र चरण यहां पड़े थे और वह यहां कुछ दिनों तक रुके थे।
गुरु-घर की खुली और विशाल इमारत तथा स्वच्छ वातावरण आत्मा को सुकून प्रदान करता है। तीर्थयात्रियों के रहने के लिए कमरे, स्नान-गृह, लंगर- हॉल आदि की अच्छी सुविधा प्रशंसनीय है। पेड़-पौधों से घिरी गुरु घर की खुली योजना वाली इमारत और शांतिपूर्ण वातावरण में समय गुजार कर लगता है जैसे दुनिया भर की चिताएं पंख लगा कर उड़ गई हों। गुरु घर का प्रबंधन चेन्नई गुरुद्वारा समिति द्वारा किया जा रहा है। फलों से लदे नारियल और आंगन में नीम के पेड़ भी सुंदर दिखते हैं। यहां प्रतिदिन नितनेम के बाद प्रार्थना होती है।
धनुषकोडी समुद्र तट Dhanushkodi beach Rameshwaram Temple
अगले दिन धनुषकोडी नामक समुद्र तट पर पहुंचे, जो भारत के सुदूर छोर पर श्रीलंका की सीमा के पास स्थित है। रामेश्वरम ( Beach Rameshwaram Temple ) से 18 किलोमीटर सीधी सड़क समुद्र तट पर जाकर समाप्त होती है। यह सड़क दो ओर से समुद्र से घिरी है। यह खूबसूरत जगह 1964 में तूफान की चपेट में आ गई थी। आज भी उस आपदा के निशान यहां साफ देखे जा सकते हैं।
समुद्र तट पर मछुआरों की कुछ झोंपड़ियां हैं। उड़ती सूखी रेत छोटे-छोटे तेज थपेड़ों की तरह महसूस होती है। भारत के इस अंतिम छोर पर पर्यटकों की भीड़ रहती है। यहां पहुंचने के लिए रामेश्वरम से टैक्सी और ऑटो उपलब्ध हैं।
रास्ते में लौटते समय उस स्थान पर मौजूद एक सुंदर मंदिर के दर्शन हुए, जहां श्रीराम ने विभीषण का राज्याभिषेक किया था।
द्वीप
इस हरे-भरे टापू की शकल शंख जैसी है। कहते हैं, पुराने जमाने में यह टापू भारत के साथ जुड़ा हुआ था, परन्तु बाद में सागर की लहरों ने इस मिलाने वाली कड़ी को काट डाला, जिससे वह चारों और पानी से घिरकर टापू बन गया। जिस स्थान पर वह जुडा हुआ था, वहां इससमस ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी है। शुरू में इस खाड़ी को नावों से पार किया जाता था। बाद में आज से लगभग चार सौ बरस पहले कृष्णप्पा नायकन नाम के एक छोटे से राजा ने उसे पर पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया।
अंग्रेजो के आने के बाद उसपुल की जगह पर रेल का पुल बनाने का विचार हुआ। उस समय तक पुराना पत्थर का पुल लहरों की टक्कर से हिलकर टूट चूका था। एक जर्मन इंजीनियर की मदद से उस टूटे पुल का रेल का एक सुंदर पुल बनवाया गया। इस समय यही पुल रामेश्वरम् को भारत से जोड़ता है। इस स्थान पर दक्षिण से उत्तर की और हिंद महासागर का पानी बहता दिखाई देता है। समुद्र में लहरे बहुत कम होती है। शांत बहाव को देखकर यात्रियों को ऐसा लगता है, मानो वह किसी बड़ी नदी को पार कर रहे हों।
रामेश्वरम् शहर और रामनाथजी का मशहूर मंदिर इस टापू के उत्तर के छोर पर है। टापू के दक्षिणी कोने में धनुषकोटि नामक तीर्थ है, जहां हिंद महासागर से बंगाल की खाड़ी मिलती है। इसी स्थान को सेतुबंध कहते है। लोगों का विश्वास है कि श्रीराम ने लंका पर चढाई करने के लिए समुद्र पर जो पुल या सेतु बांधा था, वह इसी स्थान से आरंभ हुआ - जहाँ उन्होंने धनुष से इशारा किया था। इस कारण धनुष-कोटि का धार्मिक महत्व बहुत है। यहीं से कोलंबो को जहाज जाते थे। १९६४ (संभवतः) में आए भीषण तूफानके बाद अब यह स्थान बहकर समाप्त हो गया है।
रामेश्वरम् शहर से करीब डेढ़ मील उत्तर-पूरब में गंधमादन पर्वत नाम की एक छोटी-सी पहाड़ी है। कहते हैं, हनुमानजी ने इसी पर्वत से समुद्र को लांघने के लिए छलांग मारी थी। बाद में राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए यहीं पर विशाल सेना संगठित की थी। इस पर्वत पर एक सुंदर मंदिर बना हुआ है।
कच्चे ताजे नारियल
चारों ओर देखने पर घरों, इमारतों और खाली जगहों पर नारियल के पेड़ सुंदर दृश्य पेश करते हैं। अस्पतालों, धार्मिक स्थानों और कार्यालयों के प्रांगण में नारियल से लदे पेड आकर्षक लगते हैं। सड़कों किनारे बिकने वाले कच्चे नारियल स्वादिष्ट और गर्मी में ठंडक प्रदान करते हैं।
मिसाइलमैन डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्मस्थान मिसाइलमैन के नाम से मशहूर दिवंगत राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी ने अपने बचपन के दिन इसी धरती पर बिताए थे। हमने यहां उनके उस पैतृक घर को नमन किया, जहां वह काफी समय रहे थे।
डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम मैमोरियल रामेश्वरम में डा. कलाम जी का स्मारक भी है, जो उनकी जीवन भर की सफलताओं का गवाह है। यह स्मारक बहुत प्रभावशाली है, जहां उनकी सभी उपलब्धियों को बहुत ही अच्छी तरह से प्रदर्शित किया गया है जो इस महान व्यक्तित्व की स्मृति को जीवित रखे हुए हैं।
उत्तर भारतीय व्यंजन
पारम्परिक दक्षिण भारतीय व्यंजनों का आनंद तो लिया जा ही सकता है, इसके अलावा रामेश्वरम में तीन-चार पंजाबी ढाबे हैं, जहां उत्तर भारतीय व्यंजन उपलब्ध हैं। उत्तर भारतीय यात्री इन ढाबों पर अपना पसंदीदा भोजन प्राप्त कर सकते हैं।
समुद्र से घिरे रामेश्वरम द्वीप के सुंदर दृश्यों के बारे में केवल वही लोग समझ सकते हैं जो इसे करीब से देखते हैं। यह यात्रियों के लिए विरासत से भरपूर एक सुंदर और दर्शनीय स्थान है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे
आप चेन्नई के कोयम्बेडु बस टर्मिनस से बस पकड़ सकते हैं, जो रामेश्वरम से लगभग 570 किलोमीटर दूर है। ट्रैफ़िक की स्थिति के आधार पर यात्रा में लगभग 10-12 घंटे लगते हैं।
रामेश्वरम मंदिर का रहस्य
रामेश्वरम मंदिर से जुड़े कुछ रहस्य:
- रामेश्वरम मंदिर को रामायणकालीन माना जाता है.
- ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले इसी जगह पर शिवलिंग बनाकर पूजा की थी.
- मान्यता है कि भगवान राम ने लंका पर विजय के बाद ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की थी.
- रामेश्वरम मंदिर में दो शिवलिंग हैं:
- माता सीता ने समुद्र के किनारे रेत से बनाया था, जिसे रामलिंग कहते हैं.
- हनुमान जी ने कैलाश से लाया था, जिसे हनुमदीश्वर कहते हैं.
- रामेश्वरम मंदिर के तीसरे प्राकार का गलियारा दुनिया का सबसे लंबा गलियारा है.
- रामेश्वरम में मीठे पानी के 24 कुएं हैं.
- रामेश्वरम में 64 तीर्थस्थल हैं.
- रामेश्वरम में अग्नि तीर्थम है, जहां स्नान करने से सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं.
- रामेश्वरम में समुद्र शांत रहता है, क्योंकि यहां हवाओं का विशेष प्रवाह नहीं होता.
Thankyou