भारत में मनाए जाने वाले त्यौहारों व व्रत- पर्वो का एक विशेष महत्व होता है। इससे परिवार में खुशियां बनी रहती हैं व वह एक सूत्र में बंधा रहता है। इनमें रक्षा बंधन, करवा चौथ, कंजक पूजन जैसे कई पर्व आते हैं। इनमें अहोई अष्टमी का भी विशेष स्थान है।
करवाचौथ व्रत के चौथे दिन मनाए जाने वाले इस व्रत को माताएं अपने बच्चों की सलामती के लिए रखती हैं। माताएं सारा दिन निर्जल रहती हैं व सायंकाल सारा परिवार मिल कर अहोई माता का पूजन करता है।
वर्षों पहले परिवार की महिलाएं मिलकर घर के अंदर दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाती थीं। चावलों को पानी में भिगोकर उन्हें पीस कर दूध बनाया जाता था तथा इस दूध में अलग-अलग रंग मिलाकर दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता था।
माता की पूजा के लिए घर में ही तरह- तरह के पकवान एवं मिठाई बनाई जाती थी लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। अब घर की दीवार पर कोई अहोई का चित्र नहीं बनाता। बाजार में अहोई माता के कैलेंडर मिलते हैं। पकवान भी बाजार में मिलने लगे हैं। अहोई माता का कैलेंडर लेकर उस पर बच्चों सहित परिवार के सदस्यों के नाम लिखें घर बनाने वालों के नाम भी लिखे जाते थे ताकि हमारा उनसे लगाव बना रहे।
सायंकाल पूजा में प्रत्येक बच्चे का एक मिट्टी का करवा रखा जाता है, जिसमें मिष्ठान भर दिया जाता है। यह करवा पूजा उपरांत माताएं अपने बच्चों को देती हैं व अहोई माता से बच्चों की सलामती के लिए प्रार्थना की जाती है। पूजा में एक गन्ना भी रखा जाता है, ताकि उनका बच्चा गन्ने जैसा हरा-भरा व मीठे स्वभाव का हो।
इसके बाद माताएं तारे को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं व अहोई माता से प्रार्थना की जाती है कि बच्चों की रक्षा करना, दीर्घ आयु व स्वस्थ रखना। इस व्रत को करवे का व्रत भी कहा जाता है, जिसे 'झक्करियां' कहा जाता है।
अहोई माता को मां पार्वती का रूप माना जाता है। इन्हें संतानों की रक्षा और उनकी लंबी उम्र प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। इनकी पूजा करने से महिलाओं की कुंडली में ऐसे योग बन जाते हैं, जिससे बंध्या योग, गर्भपात से मुक्ति, संतान की असमय मृत्यु होना एवं दुष्ट संतान योग आदि सभी कुयोग समाप्त हो जाते हैं।
एक धार्मिक कथा के अनुसार, अहोई माता का चित्रण एक अहोई (साही या नेवला) के रूप में किया जाता है, जिसे एक पौराणिक घटना के प्रतीक रूप में देखा जाता है।
अहोई अष्टमी व्रत कथा ahoi ashtami vrat katha in hindi कहा जाता है कि प्राचीन समय में एक महिला, जो पुत्रों की मां थी, जंगल में मिट्टी खोदते समय गलती से एक साही के बच्चों को मार देती है। इस घटना के बाद महिला को पछतावा होता है और वह तपस्या कर देवी से क्षमा याचना करती है। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी उसे आशीर्वाद देती हैं कि उसकी संतान सुरक्षित रहेगी। तब से यह परंपरा चली आ रही है कि माताएं अहोई माता की पूजा कर अपनी संतानों की दीर्घायु और कल्याण की कामना करती हैं।

अहोई अष्टमी के दिन क्या करें
卐 सुबह उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
卐 अहोई माता की मूर्ति या तस्वीर की पूजा कर सकती हैं।
卐 पूजा में रोली, चंदन, फूल, दीपक, धूप आदि चढ़ाएं।
卐 अहोई अष्टमी की पूजा के समय व्रत कथा अवश्य सुनें।
卐 अपने बच्चों को आशीर्वाद दें और अगर संभव हो तो जरूरतमंदों को दान करें।
अहोई अष्टमी के दिन क्या न करें
卐 इस दिन सूई और धागा चलाना वर्जित माना जाता है, इसलिए ऐसा न करें
卐 इस दिन कैंची या चाकू का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए।
卐 इस दिन किसी से झगड़ा नहीं करना चाहिए।
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