वाल्मीकी रामायण में माता सीता द्वारा पिंडदान देकर राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है। वनवास के दौरान भगवान श्री राम, लक्ष्मण और सीता जी पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए 'गया तीर्थ धाम' पहुंचे। वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु श्री राम जी और श्री लक्ष्मण जी नगर की ओर चल दिए। दोपहर हो गई थी। पिंडदान का निश्चित समय निकलता जा रहा था और माता सीता जी की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। तभी स्वर्गीय राजा दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी।

उधर दोपहर व पिंडदान का समय निकलता जा रहा था और माता सीता जी की व्यग्रता और अधिक बढ़ती जा रही थी। तभी 'महाराज दशरथ जी' की आत्मा ने पुनः पिंडदान की मांग कर दी। गया जी के आगे फल्गू नदी पर अकेली सीता जी असमंजस में पड़ गईं। अब क्या करें ? आखिरकार उन्होंने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू (रेत) का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया। थोड़ी देर में भगवान श्री राम और लक्ष्मण लौटे तो सीता जी ने कहा, "समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया।"
बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है... इसके लिए श्रीराम जी ने सीता जी से प्रमाण मांगा। तब सीता जी ने कहा, "यह फल्गू नदी की रेत, केतकी के फूल, गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं।" लेकिन फल्गू नदी, गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से मुकर गए। केवल वटवृक्ष ने सही बात कही। तब सीता जी ने महाराज दशरथ जी का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की।
तब स्वर्गीय राजा दशरथ जी ने माता सीता जी की प्रार्थना स्वीकार कर आकाशवाणी द्वारा गवाही की घोषणा की। मेरी पुत्रवधू सीता ने बहुत प्रतीक्षा करने के बाद मुझे विधिवत पिंडदान दिया। अब मेरी आत्मा तृप्त हो गई है। इस पर श्री राम आश्वस्त हुए।
लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने उन तीनों को क्रोधित होकर श्राप दिया कि फल्गू नदी - जा ! तू केवल नाम की नदी रहेगी- तुझमें पानी नहीं रहेगा ! इस कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी रहती है।
गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी इधर-उधर घूम कर लोगों का जूठा खाएगी और केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढ़ाया जाएगा।
वटवृक्ष को सीता जी का आशीर्वाद मिला कि तुम्हें लंबी आयु प्राप्त होगी और दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी। यही कारण है कि गाय माता को पूज्य होकर भी भटकना पड़ता है। केतकी के फूल को पूजा-पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी केवल बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है।
हमें भी बड़ों के निमित्त श्राद्ध कर्म जरूर करना चाहिए, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और हमारे घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। बड़ों का आशीर्वाद भी मिलता है।
श्राद्ध पक्ष कब से कब तक है ?इस बार पितृपक्ष 17 सितंबर, 2024 भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू हो गया है. इस दिन श्राद्ध पूर्णिमा भी है. 2 अक्टूबर, 2024 को सर्व पितृ अमावस्या यानी आश्विन अमावस्या (Ashwin Amavasya) के दिन इसका समापन होगा.
पितरों को श्रद्धासुमन अर्पित करने का पर्व
पितृपक्ष में क्या करना चाहिए? Pitru paksha 2024 me kya karna chahiye
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श्राद्ध में शुभ काम, नया कारोबार, मुंडन, शादी. नए घर में प्रवेश, नई गाड़ी, मशीनरी खरीदना निषेध है। पंडित सुंदरमणि शास्त्री बताते हैं कि शास्त्रों में पितरों का श्राद्ध करने के दौरान कुछ वस्तुओं को वर्जित बताया गया है. पितरों का श्राद्ध करने से पूर्व दान करने से दोष लगता है. पितरों के श्राद्ध के दिन ब्राह्मण, गाय या देवहती को लोहे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए. श्राद्ध पक्षों में लोहे को वर्जित बताया गया है.
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