हिन्दी में एक प्रसिद्ध मुहावरा है' संतोषी नर सदा सुखी' अर्थात जो संतुष्ट है वह मुखी है। संतुष्टता मानव जीवन का श्रृंगार है, इसीलिए कहते हैं कि 'जो चेहरे से चमके वह संतुष्टता है'। किन्तु दुर्भाग्यवश संसार में कुछ ही लोग ऐसे हैं, जिन्होंने संतुष्टि से उत्पन्न मीठे फल का स्वाद चखा हो। क्यों ? क्योंकि हम मनुष्य अपना सारा जीवन 'और अधिक-और अधिक' करते-करते गुजार देते हैं और अंततः असंतुष्ट होकर ही मृत्यु को प्राप्त करते हैं।

मजे की बात यह है कि नया जन्म प्राप्त करते ही हम फिर से वही 'और अधिक-और अधिक' की दौड़ शुरू कर देते हैं। यह सिलसिला जन्म-जन्मांतर चलता ही रहता है, जब तक कि हम संतोष और संतुष्टता का गुण धारण नहीं करते। इसीलिए कहा जाता है कि 'जो सदा संतुष्ट, वह सदा प्रसन्न'।
अधिकांश लोगों के मन में संतुष्टता की अवधारणा के बारे में बहुत भ्रम की स्थिति होती है। हो श्रीगों न क्योंकि जब तक इसे यथार्थ विधि से समझा न जाए, तब तक यह एक भ्रम के समान ही महसूस होती है। तो क्या है वह सरल विधि, जिससे संतुष्टता को समझा जा सकता है? वह विधि है इसके विपरीत पहलू को समझना, यानी कि 'असंतुष्टता' को जानना ।
विशेषज्ञों के अध्ययन अनुसार, मनुष्य के असंतोष के कई कारण होते हैं, जो उसके जीवन में मानसिक व्यग्रता लाकर उसके बौद्धिक संतुलन को विक्षुब्ध कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वह निराशा, उदासीनता, तनाव, द्वेष और मानसिक पीड़ा के साथ ऐसा दब जाता है कि कोई भी कार्य करने की अपनी क्षमता खो देता है।
संतुष्टता तीन प्रकार की होती है, एक- ईश्वर से संतुष्ट, अर्थात जितना, जैसा और जब भी ईश्वर ने दिया, उसमें संतुष्ट रहना, दूसरी- अपने आप से संतुष्ट अर्थात अपने आपको अपने गुणों-अवगुणों के साथ स्वीकार करना और तीसरी- सर्व संबंध और संपर्क से संतुष्ट अर्थात हर आत्मा को उनके गुणों-अवगुणों के साथ स्वीकार करते हुए हर एक के अंदर कोई न कोई सकारात्मकता खोजना । संतुष्टता की निशानी प्रत्यक्ष रूप में प्रसन्नता दिखाई देगी और इसी प्रसन्नता के आधार पर प्रत्यक्ष फल यह होगा कि ऐसी आत्मा की सदा स्वतः ही सर्व द्वारा प्रशंसा होगी। तो संतुष्टता एक ऐसा अद्वितीय सद्गुण है, जिसकी निशानी प्रसन्नता है और फिर उसका प्रत्यक्ष फल प्रशंसा।
अब इस हिसाब से हमें खुद को देखना है कि क्या हम सदा स्वयं संतुष्ट व प्रसन्न रहते हैं? यदि हां, तो फिर ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा अवश्य सभी लोग करेंगे ही करेंगे।
असंतुष्ट लोगों के अंदर हवा में महल बनाने की एक ठेठ आदत होती है, जबकि हकीकत में ऐसे लोग जीवन में कभी भी कुछ कर ही नहीं पाते क्योंकि वे पूरी तरह से इस बात को समझ ही नहीं पाते कि जीवन में दोनों सिरों को मिलाने के लिए कड़ी मेहनत और मशक्कत अनिवार्य है।
अतः यह कहना उचित ही होगा कि केवल सही समझ के साथ ही सही मंजिल तक पहुंचा जा सकता है क्योंकि हवा में बनाए हुए महल पल भर में अदृश्य हो जाते हैं।
इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि जिस प्रकार भोजन शरीर को पोषण देता है, उसी प्रकार मन भी प्रसन्नता से पोषण पाता है।
इसीलिए कहते हैं कि 'खुशी जैसी कोई उत्तम खुराक नहीं' और 'जो संतुष्ट है, वही सदा खुश है'। जैसे अल्फ्रेड नोबेल ने कहा है कि 'संतोष ही असली धन है', वैसे हमें भी संतुष्टता रूपी धन को छोड़ अन्य प्रकार के धन को हासिल करने के पीछे अपना अमूल्य समय रूपी धन बर्बाद नहीं करना क्योंकि संतुष्टि के बराबर कोई खुशी नहीं है।
'संतुष्टि' के बराबर कोई खुशी नहीं Satisfaction is The Greatest Happiness
Thankyou