जब बच्चा किसी भी प्रकार की शिकायतें करता है या आप कुछ नोटिस करते हैं तो डाक्टरी सलाह आवश्यक है। बच्चे की आंखों की सुरक्षा कैसे करें? | How to protect baby's eyes? स्वस्थ आंखें आपके बच्चे के व्यक्तित्व को चार चांद लगाती हैं। बच्चों की आंखों के लिए माता-पिता को प्रारंभ से ही सावधान रहना चाहिए ताकि कोई बड़ी समस्या न खड़ी हो जाए।
नवजात शिशु की आंखों में कई बार पानी आता है या कुछ सफेद जैली जैसी आंखों के कोनों पर जम - जाती है। साफ पानी में साफ रूई के छोटे-छोटे टुकड़े डालें। उन रूई के टुकड़ों को हल्का निचोड़ कर बच्चे की आंख को नर्म हाथों से साफ करें। ऐसा करने से पहले अपने हाथ साबुन से धोकर साफ तौलिए से पोंछ लें। ऐसा तभी होता है जब बैक्टीरिया बच्चों की पलकों पर हमला कर देते हैं। दो-तीन दिन में ठीक न हो तो डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
कई बार मां को गर्भावस्था में वायरल इंफैक्शन हो जाता है। दवाइयां लेने पर नवजात की आंखों में जन्म से मोतियाबिंद के लक्षण दिखाई देते हैं। जन्म के बाद बच्चे की आंखों की जांच करवाएं, ताकि कोई समस्या हो तो प्रारंभ से उसका इलाज कर समस्या का समाधान किया जा सके।
कुछ बच्चों की आंखें काफी झपकती हैं, विशेषकर रोशनी के समय। ऐसे बच्चों को आंखों के भीतर मैलेनिन पिगमेंट नहीं होता। इसके उपचार हेतु बच्चों को रोशनी में सन ग्लासेस पहनने के लिए कहा जाता है। कई बार छह महीने की आयु से बच्चों की आंखों से पानी गिरना प्रारंभ हो जाता है। आंख और नाक के बीच एक नली होती है। यदि वह बंद हो तो यह समस्या जन्म लेती है। ऐसे में डाक्टर सलाह देते हैं कि मालिश करते समय आंख और नाक के बीच के हिस्से को हल्की उंगलियों से दवाना चाहिए, इससे अधिकतर बच्चों का आंखों से पानी आना ठीक हो जाता है। यदि समस्या वैसी ही बनी रहे तो सर्जरी से इसका निदान हो सकता है।
कई बार बच्चे सो कर उठते हैं तो उनकी पलकें सिकुड़ी हुई होती हैं। यह समस्या पलकों की तैलीय ग्रंथियों में सूजन के कारण होती है। ऐसी पलकों हेतु प्रैस से किसी साफ रूमाल को थोड़ा गर्म कर आंखों पर हल्की सिकाई करें। न ठीक होने पर डाक्टर से सलाह लें।
कभी-कभी बच्चों की एक आंख की नजर कम होती है और दूसरी आंख की सही, पर एक आंख की नजर ठीक होने के कारण पता ही नहीं चल पाता जिससे ठीक नजर वाली आंख भी धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है। ऐसा महसूस होते ही या एक आंख से धुंधला दिखने की शिकायत पर डाक्टर से उसकी आंखें चैक करवाएं और आवश्यकता पड़ने पर उचित नम्बर का चश्मा लगवाएं।
बच्चों को डाक्टर के परामर्शानुसार उचित खुराक दें ताकि विटामिन 'ए' की कमी को पूरा किया जा सके। आवश्यकता पड़ने पर दवा भी दे सकते हैं।
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