क्या यह आधुनिक तकनीकों वाला युग नींव खोदे बिना एक गगनचुंबी इमारत के निर्माण की कल्पना कर सकता है ?
यह तमिलनाडु का बृहदेश्वर मंदिर Brihadeshwara Temple है, यह बिना नींव का मंदिर है । इसे इंटरलॉकिंग विधि का उपयोग करके बनाया गया है इसके निर्माण में पत्थरों के बीच कोई सीमेंट, प्लास्टर या किसी भी तरह के चिपकने वाले पदार्थों का प्रयोग नहीं किया गया है इसके बावजूद पिछले 1000 वर्षों में 6 बड़े भूकंपो को झेलकर भी आज अपने मूल स्वरूप में है ।
पूरी दुनिया में भारत की संस्कृति और आध्यात्मिकता की चर्चा हमेशा होती रही है। चूंकि मंदिरों से हमारी आस्था और भक्ति का सजीव प्रमाण मिलता है, हर धर्म के संगम की धरती भारत में एक से बढ़कर एक पुराने व भव्य कलात्मक मंदिर हैं, जिनकी सुंदरता ने हमेशा आकर्षित किया है।
बृहदेश्वर मंदिर कहां स्थित है ?
बृहदेश्वर मंदिर Brihadeshwara Temple तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है, जो 11वीं सदी के आरंभ में बनाया गया था। इसे पेरुवुटैयार कोविल भी कहते हैं। तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर Brihadeshwara Temple को राजराजा-प्रथम ने 1009 ईस्वी में भगवान शिव की पूजा के लिए बनवाया था। चोल शासकों ने इस मंदिर को राजराजेश्वर नाम दिया था परंतु तंजौर पर हमला करने वाले शासकों ने इस मंदिर का नाम बदलकर बृहदेश्वर Brihadeshwara कर दिया था।
बृहदेश्वर मंदिर मुख्य मंदिर और गोपुरम
11वीं सदी से बने हैं, लेकिन इसके बाद मंदिर की मुरम्मत हो चुकी है। चूंकि युद्ध और मुगल शासकों के आक्रमण और तोड़-फोड़ से मंदिर को कई बार बड़ी क्षति हुई थी, हिंदू राजाओं ने पुन: इस क्षेत्र को जीत लिया तो उन्होंने इस मंदिर को ठीक करवाया और कुछ अन्य निर्माण कार्य भी करवाए।
बाद के राजाओं ने दीवारों पर पुराने पड़ रहे चित्रों पर पुन: रंग करवा कर उसे संवारा और मंदिर की स्थिति को फिर से ठीक कराया। मंदिर में कार्तिकेय भगवान, जिन्हें मुरुगन स्वामी और मां पार्वती जिन्हें अम्मन कहते हैं और मंदिर व नंदी की मूर्ति का निर्माण 16-17वीं सदी में नायक राजाओं ने करवाया था। मंदिर में संस्कृत भाषा और तमिल भाषा के कई पुरालेख लिखे दिखते हैं।
बिना नींव के खड़ा है बृहदेश्वर मंदिर
1003 से 1010 से बीच बने इस मंदिर के रहस्य करीब 1,000 साल बीत जाने के बावजूद आज तक इंजीनियरों से लेकर वैज्ञानिक तक कोई नहीं सुलझा पाया है। कहते हैं कि राजराजा चोल-प्रथम श्रीलंका के दौरे पर थे, जब उन्हें सपने में इस मंदिर का निर्माण करने का आदेश मिला। इसके बाद उन्होंने मंदिर निर्माण शुरू किया। मंदिर करीब 13 मंजिल ऊंचा है, जिनकी ऊंचाई करीब 66 मीटर है। हर मंजिल एक आयताकार शेप में है, जिन्हें बीच में खोखला रखा गया है। देखने में यह मंदिर मिस्र के पिरामिड जैसे आकार का लगता है।
आप यह जानकर शायद हैरान रह जाएंगे कि इतनी विशाल और भव्य इमारत बिना किसी नींव के तैयार की गई थी। करीब 1,000 साल बीत जाने के बावजूद बिना नींव का यह मंदिर आज भी बिना किसी नुक्सान के खड़ा हुआ है।
216 फीट ऊंचा यह मंदिर उस समय दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर था। इसके निर्माण के कई वर्षों बाद बनी पीसा की मीनार खराब इंजीनियरिंग की वजह से समय के साथ झुक रही है लेकिन बृहदेश्वर मंदिर Brihadeshwara Temple पीसा की मीनार से भी प्राचीन होने के बाद भी अपने अक्ष पर एक भी अंश का झुकाव नहीं रखता ।
इस मंदिर के निर्माण के लिए 1.3 लाख टन ग्रेनाइट का उपयोग किया गया था जिसे 60 किलोमीटर दूर से 3000 हाथियों द्वारा ले जाया गया था। बृहदीश्वर मंदिर Brihadeshwara Temple का निर्माण पृथ्वी को खोदे बिना किया गया था यानी यह मंदिर बिना नींव का मंदिर है ।
मंदिर टॉवर के शीर्ष पर स्थित शिखर का वजन 88 टन है आज के समय में इतनी ऊंचाई पर 88 टन वजनी पत्थर को उठाने के लिए आधुनिक मशीनें फेल हो जाएंगी ।
बृहदीश्वर मंदिर Brihadeshwara Temple के निर्माण के लिए प्रयोग किए गए इंजीनियरिंग के स्तर को दुनिया के सात आश्चर्यों में से किसी भी आश्चर्य के निर्माण की तकनीक मुकाबला नहीं कर सकती और आज की तकनीकों को देखकर भविष्य में भी कई सदियों तक ऐसा निर्माण सम्भव नहीं दिखता है ।
बृहदेश्वर मंदिर की नहीं बनती गुंबद की परछाई
बृहदीश्वर मंदिर Brihadeshwara Temple का सबसे बड़ा रहस्य इसका वास्तुशिल्प है। इस वास्तुशिल्प के पहले दो रहस्य यानी बिना नींव और बिना जोड़ के निर्माण के बारे में आप जान ही चुके हैं।
इसका तीसरा रहस्य है कि बृहदीश्वर मंदिर Brihadeshwara Temple के गुंबद की कोई परछाई नहीं बनती। गुंबद करीब 88 टन वजन का है, जिसके ऊपर करीब 12 फुट का स्वर्ण कलश रखा हुआ है।
खास बात यह है कि न तो सूरज की धूप में इस मंदिर के गुंबद का साया जमीन पर दिखाई देता है और न ही चांद की रोशनी में इसकी परछाई दिखती है। केवल बिना गुंबद के मंदिर की ही परछाई देखने को मिलती है। यह गुंबद एक ही पत्थर से बना हुआ है। ऐसे में इतने भारी पत्थर को इतनी ऊंचाई तक बिना क्रेन से पहुंचाना भी अपने आप में महान इंजीनियरिंग का सबूत है।
फुट ऊंचा शिवलिंग
बृहदीश्वर मंदिर Brihadeshwara Temple का शिवलिंग भी अद्भुत है, जिसके ऊपर छाया करने के लिए एक विशाल पंचमुखी नाग विराजमान है। बृहदीश्वर मंदिर Brihadeshwara Temple के दोनों तरफ 6-6 फुट की दूरी पर मोटी दीवारें हैं।
एक ही पत्थर से बने विशालकाय नंदी
गौपुरम में बने चौकोर मंडप के अंदर विशालकाय चबूतरे पर नंदी की 6 मीटर लंबी प्रतिमा है, जो एक ही पत्थर से तराश कर बनाई गई है। यह भारत की महज दूसरी ऐसी नंदी प्रतिमा है।
तंजौर के मंदिर का क्या रहस्य है जिसे अब तक कोई सुलझा नहीं पाया है?
तंजौर मंदिर की सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि यह विशालकाय मंदिर बगैर नींव के खड़ा है। पिरामिड का आभास देता मंदिर इस मंदिर को गौर से देखने पर लगता है कि यह मंदिर पिरामिड जैसी महाकाय संरचना है।
तंजौर मंदिर की छाया क्यों नहीं पड़ती?
इसके पीछे कोई जादू नहीं है, बल्कि इसका श्रेय उन प्रतिभाशाली इंजीनियरों को जाता है जिन्होंने इसे बनाया है। ऐसा कहा जाता है कि जिस तरह से पत्थरों को इस मंदिर की संरचना बनाने के लिए झरना बनाया गया है, उससे यह भ्रम पैदा होता है कि मंदिर की छाया कभी ज़मीन तक नहीं पहुँचती ।
तंजावुर मंदिर के पीछे का विज्ञान क्या है?
यह मंदिर प्राचीन इंजीनियरिंग कौशल का एक प्रदर्शन है। यह पूरी तरह से ग्रेनाइट से बना है, जिसमें इंटरलॉकिंग पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है और इसमें सीमेंट, मिट्टी या बाइंडिंग एजेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है। अनुमान है कि इसके निर्माण में 130,000 टन ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया गया था। इसमें भारत के सबसे बड़े शिव लिंगों में से एक है।
तंजावुर में क्या खास है?
इनमें सबसे प्रमुख, चोल सम्राट राजराजा प्रथम द्वारा निर्मित बृहदेश्वर मंदिर , शहर के केंद्र में स्थित है। इस मंदिर में भारत में सबसे बड़ी बैल प्रतिमा (जिसे नंदी कहा जाता है) है जिसे एक ही ग्रेनाइट चट्टान से उकेरा गया है। तंजावुर तंजौर पेंटिंग का भी घर है, जो इस क्षेत्र की अनूठी चित्रकला शैली है।
तंजौर मंदिर कितना पुराना है?
चोल सम्राट राजराजा प्रथम द्वारा तंजावुर में 1010 ई. में निर्मित यह मंदिर लोकप्रिय रूप से बड़े मंदिर के नाम से जाना जाता है। सितंबर 2010 में यह 1,000 साल पुराना हो गया। भव्य संरचना के 1000वें वर्ष का जश्न मनाने के लिए, राज्य सरकार और शहर ने कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए।
क्या तंजावुर मंदिर जाना अच्छा है?
इस मंदिर के लिए सिर्फ़ एक शब्द ही काफी है। जब आप तंजावुर में हों तो यह ज़रूर देखें और आप त्रिची से भी तंजावुर जा सकते हैं क्योंकि ड्राइव ज़्यादा लंबी नहीं है। प्रवेश द्वार से पहले मंदिर में प्रवेश करने के बाद बाईं ओर पर्यटक सूचना डेस्क पर गाइड उपलब्ध है।
बृहदेश्वर मंदिर में गणित का उपयोग कैसे किया जाता है?
बृहदेश्वर मंदिर पूर्ण समरूपता और सटीक अनुपात प्रदर्शित करता है, जो मौलिक गणितीय सिद्धांत हैं । - **स्वर्ण अनुपात**: मंदिर की वास्तुकला स्वर्ण अनुपात (लगभग 1.618) के सिद्धांतों के अनुरूप है, जो अपनी सौंदर्य अपील के लिए जाना जाता है।
बृहदेश्वर मंदिर इतना प्रसिद्ध क्यों है?
यह मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट निर्मित है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। यह अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प और केन्द्रीय गुम्बद से लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है।
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