काले पत्थरों से बना त्रयम्बकेश्वर मंदिर Trimbakeshwar Temple ( त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर Trimbakeshwar shiva temple ) महाराष्ट्र-प्रांत के नासिक जिले में त्रयंबक गांव में हैं। यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है।
त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर Trimbakeshwar Temple


भगवान शंकर के बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल महाराष्ट्र के नासिक जिले का त्रयम्बके श्वर मंदिर Shri Tryambkeshwar Jyotirling Mandir, Nashik,Maharashtra हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र स्थलों में से एक है।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर Trimbakeshwar Temple नासिक एयरपोर्ट से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित त्रयम्बक नामक गांव में है। यहीं पर गोदावरी के रूप में गंगा के धरती पर आने की कहानी भी कही जाती रही है। यहां भगवान को 'त्रय' यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अवतार कहा जाता है।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर का इतिहास History of Trimbakeshwar Temple
मुगलों के हमले के बाद त्रयम्बकेश्वर मंदिर Trimbakeshwar Temple के जीर्णोद्धार का श्रेय पेशवाओं को दिया जाता है। तीसरे पेशवा के तौर पर विख्यात बालाजी यांनी श्रीमंत नानासाहेब पेशवा ने इसे 1755 से 1786 के बीच बनवाया था।
पौराणिक तौर पर यह भी कहा जाता है कि सोने और कीमती रत्नों से बने लिंग के ऊपर मुकुट महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था।
अनुमान है कि 17वीं शताब्दी में जब त्रयम्बकेश्वर मंदिर Trimbakeshwar Temple का जीर्णोद्धार किया जा रहा था, तब इस कार्य में 16 लाख रुपए खर्च हुए थे। त्रयम्बक को गौतम ऋषि की तपोभूमि के तौर पर भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, गौतम ऋषि और गोदावरी के आह्वान पर भगवान शिव ने इसी स्थान पर निवास किया था।
अद्भुत स्थापत्य कला
त्रयम्बकेश्वर मंदिर Trimbakeshwar Temple पूरा मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है। इन पत्थरों पर नक्काशी और अपनी भव्यता के लिए त्रयम्बकेश्वर मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है। चौकोर मंडप और बड़े दरवाजे मंदिर की शान प्रतीत होते हैं।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर Trimbakeshwar Temple के अंदर स्वर्ण कलश है और शिवलिंग के पास हीरों और अन्य कीमती रत्नों से जड़े मुकुट रखे हैं। ये सभी पौराणिक महत्व के हैं।
औरंगजेब ने किया था मंदिर पर हमला
मुगलकाल में जिन तीर्थस्थलों को ध्वस्त किया गया था, उनमें एक त्रयम्बकेश्वर मंदिर भी था। इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब' में इसका जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है, "सन् 1690 में मुगल शासक औरंगजेब की सेना ने नासिक के त्रयम्बकेश्वर मंदिर के अंदर शिवलिंग को तोड़ दिया था और मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई थी। इसके ऊपर मस्जिद का गुंबद बना दिया था। यहां तक कि औरंगजेब ने नासिक का नाम भी बदल दिया था लेकिन 1751 में मराठों का फिर से नासिक पर आधिपत्य हो गया। तब इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया।"
मंदिर नासिक की तीन पहाड़ियों- ब्रह्मगिरि, नीलगिरि और कालगिरि के आधार पर हरी-भरी हरियाली के बीच स्थित है। मंदिर की खासियत है कि इसमें स्थापित ज्योतिर्लिंग तीनमुखी है, जो भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक है। ये 'त्रिदेव लिंगम' सोने के मुखौटे पर रखे गए आभूषणों से ढंका है।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर Trimbakeshwar Temple की चारों दिशाओं में द्वार हैं। पूर्व द्वार 'शुरुआत' को दर्शाता है, पश्चिम द्वार 'परिपक्वता' का प्रतीक है, उत्तर द्वार 'रहस्योद्घाटन' का प्रतिनिधित्व करता है और दक्षिण द्वार 'पूर्णता' का प्रतीक माना जाता है।
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