चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से शक्ति साधना पर्व वासन्तिक नवरात्र प्रारम्भ होते हैं। आश्विन मास के इन नवरात्रों को 'चैत्र नवरात्र' कहा जाता है। यह पर्व ऋतु परिवर्तन के प्रतीक भी माने जाते हैं। इन दिनों में मां भगवती दुर्गा के निमित्त व्रतानुष्ठान किया जाता है। जगत पालनकर्त्ता भगवान विष्णु के अन्तःकरण की शक्ति सर्व-स्वरूपा योगमाया आदि शक्ति महामाया हैं। वह साक्षात आदि शक्ति महामाया ही शिवा स्वरूप शिव अर्धांगिनी पार्वती एवं सती हैं।
Chaitra Navratri : सर्व-सुख, सौभाग्य, आरोग्य और मंगल प्रदान करने वाला पर्व 'नवरात्र'
जब-जब पृथ्वी राक्षसों से पीड़ित हुई, तब- तब मां आदि शक्ति ने अवतरित होकर शत्रुओं का नाश किया। महिषासुर मर्दिनी, चण्ड-मुण्ड विनाशिनी, शुम्भ-निशुम्भ का संहार करने वाली, रक्त बीज का वध करने वाली मां भगवती आराधना करने पर मनुष्य को भोग, स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करती है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक समय त्रिपुरासुर का वध करते समय भगवान शिव को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में भगवान विष्णु ने भगवान शिव को इस विकट परिस्थिति में देख कर ब्रह्मा जी को एक स्तोत्र के बारे में बताया था।
इसके बाद ब्रह्मा जी ने युद्ध भूमि में भगवान शिव को इस स्तोत्र और इसकी महिमा के बारे में बताया। तब भगवान शिव जी ने इस स्तोत्र का पाठ किया और त्रिपुरासुर का वध किया। इसी कारण इसे शिव कृत दुर्गास्तोत्र कहा जाता है।
नवरात्रि में मां के भक्त मां भगवती जगतजननी मां जगदंबा के नौ रूपों की पूजा करते हैं।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
मां भगवती के उपरोक्त नामों का स्मरण करने से मां के भक्तों को दुख, शोक तथा भय नहीं होता। शक्तिभूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्व सुखमयी मां नारायणी शरण में आए हुए शरणागतों, दीन-दुखियों की रक्षा में तत्पर, सम्पूर्ण पीड़ाओं को हरने वाली हैं।
शिवपुराण की उमा संहिता में भगवती उमा के कालिका, महालक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा,शताक्षी, शाकम्भरी, भ्रामरी आदि लीलावतारों का वर्णन तथा उनके द्वारा महिषासुर, मधु, कैटभ, शुम्भ निशुम्भ, रक्तबीज आदि भयंकर एवं महापराक्रमी दैत्यों के संहार की कथाओं का वर्णन प्राप्त होता है। मां भगवती के माहात्म्य व कथाओं इत्यादि को सुनकर मनुष्य निर्भय हो जाता है तथा कल्याण की प्राप्ति होती है।
मां भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय - नवरात्र होता है। नवरात्र में मां जगदम्बा की आराधना करने पर सत्व गुण की अभिवृद्धि होती है तथा नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। सत्व गुण के बढ़ने पर इस देह में तथा अन्तः करण और इन्द्रियों में चेतनता और विवेक शक्ति उत्पन्न होती है।
इस प्रकार नवरात्र पर्व पर मां भगवती दुर्गा श्रद्धापूर्वक की गई उपासना तथा स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिंतन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। शरण में आए हुए दीनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी! आपको नमस्कार है।
आत्मशुद्धि के लिए नवरात्र पर्व में मां भगवती आदि शक्ति की पूजा अत्यन्त कल्याणकारी है। वास्तव में नवरात्र पर्व सर्व-सुख सौभाग्य, आरोग्य और मंगल प्रदान करने वाला है।
नवरात्र पर्व में की गई भक्ति तथा तप अंतःकरण को निर्मलता प्रदान करने वाला, तेज, धैर्य तथा शारीरिक तथा मानसिक शुद्धता प्रदान करने वाला है, जिससे मनुष्य के भीतर दैवीय सद्गुणों का प्रादुर्भाव तथा नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य सुंदरमणी,
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