रामगढ़ क्रेटर बारां राजस्थान ( Ramgarh Crater Baran Rajasthan ) में रामगढ़ क्रेटर 60 करोड़ वर्ष पुराना माना जाता है। यह उल्कापिंड से बना देश का तीसरा और राज्य का पहला क्रेटर है। इसके अलावा महाराष्ट्र में लोनार और मध्य प्रदेश में ढाला क्रेटर हैं।
जिला मुख्यालय से रामगढ़ 40 किलोमीटर दूर स्थित क्रेटर इलाके को विश्व में पहचान दिलाएगा क्योंकि रामगढ़ क्रेटर को भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के परामर्श पर आधिकारिक रूप से राज्य सरकार ने हाल ही में भारत की पहली जियो हैरिटेज साइट (अधिसूचित भू-विरासत स्थल) घोषित किया है। इससे वाइल्ड लाइफ टूरिज्म और इको टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा।

अब इस जगह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के प्रयासों में तेजी आएगी। अधिकारियों ने कहा कि योजना के लागू होने के बाद राजस्थान पर्यटन विभाग को हर साल 30 से 40 हजार पर्यटकों के आने की उम्मीद है। यहां मौजूद झील का सौंदर्याकरण, बुनियादी ढांचे के विकास और साइट के आसपास अन्य सजावटी कार्य किए जा रहे हैं।
पर्यटन विभाग यहां शानदार सड़क, एक सूचना केंद्र, एक नॉलेज केंद्र और एक कैफेटेरिया तैयार कर रहा है। इसके अलावा एक घाट का निर्माण, एक प्रवेश द्वार, गार्डन, ग्रीन एरिया और साइन बोर्ड के साथ ही DRIPP सिंचाई का काम प्रस्तावित है।
वन विभाग ने रामगढ़ क्षेत्र कोरिजर्व एरिया घोषित किया है
यह स्थल पुरातत्व, भू-विज्ञान, और इतिहास के प्रतीक के रूप में है। रामगढ़ क्षेत्र को वन विभाग द्वारा रिजर्व एरिया घोषित किया गया है। वन विभाग, पर्यटन और लोक निर्माण विभाग इस क्षेत्र के विकास के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।
1869 में खोजा गया था क्रेटर लेकिन पहचान मिलने में लगा वक्त
द सोसाइटी ऑफ अर्थ साइंटिस्ट्स के महासचिव सतीश त्रिपाठी ने बताया कि बारां जिले की मांगरोल तहसील से 12 किलोमीटर दूर यह क्रेटर साल 1869 में खोजा गया था। माना जाता है कि 60 करोड़ साल पहले 3.5 किलोमीटर व्यास वाले इस क्रेटर का निर्माण अंतरिक्ष से एक उल्कापिंड के गिरने के कारण हुआ था।
सबसे पहले 1972 में इस संरचना के उल्कापिंड प्रसूत होने की सम्भावना व्यक्त की गई थी। वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं होने से इस अवधारणा को विज्ञान जगत में स्वीकृति नहीं मिली। गत शताब्दी के अंत तक भू- वैज्ञानिक इसे गुंबद संरचना मानते रहे जिसकी उत्पत्ति पृथ्वी के भीतर हो रही टैक्टोनिक हलचल संबंधी आंतरिक दबाब या मैग्मा ऊपर बढ़ने से मानी गई।
जयपुर के भू-वैज्ञानिक और रिटायर्ड प्रोफैसर एम.के. पंडित ने 1999 में दक्षिण अफ्रीका के साइंटिस्ट शरद मास्टर के साथ रामगढ़ क्षेत्र का विस्तृत भू-वैज्ञानिक आकलन किया और चट्टानों के नमूने इकट्ठे किए। पाया गया कि पहाड़ी की ऊपरी ढलान निचले हिस्से की अपेक्षा ज्यादा खड़ी है।
लगभग 3 किलोमीटर व्यास की विशाल मैदानी क्षेत्र में यह गोलाकार पहाड़ी एकमात्र भू-आकारिकी संरचना कौतूहल बनी। इस शोध को भी अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली।
भू-विरासत के 200वें क्रेटर के रूप में इसे मान्यता मिली है
रामगढ़ क्रेटर को 3 साल पहले विश्व भू-विरासत के 200वें क्रेटर के रूप में मान्यता दी गई थी। इसे यह मान्यता विश्व के क्रेटरों को मान्यता देनी वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था 'अर्थ इम्पैक्ट डाटा बेस सोसाइटी ऑफ कनाडा' ने दी थी।
सतीश त्रिपाठी ने कहा कि वैज्ञानिक रूप से यहां एक उल्कापिंड गिरा था। क्रेटर में कांच से युक्त पत्थर पाया जाता है क्योंकि उल्कापिंड के प्रभाव से उत्पन्न ऊर्जा रेत को पिघला देती है, जो कांच बन जाती है।
क्रेटर में सामान्य से अधिक मात्रा में लोहा, निकल और कोबाल्ट मिला है। कई उल्कापिंडों में भी ये तत्व बड़ी मात्रा में हैं।
खजुराहो शैली का 10वीं शताब्दी का मंदिर इसी इलाके में है
खजुराहो शैली का 10वीं शताब्दी का शिव मंदिर रामगढ़ क्रेटर की परिधि में ही स्थित है। इसे भांड देवरा मंदिर कहते हैं लेकिन इसे 'मिनी खजुराहो' के नाम से भी जाना जाता है। क्रेटर की संरचना में दो झीलें हैं, जिनमें प्रवासी पक्षी आते रहते हैं।
इलाके में 950 साल पुराना एक देवी मंदिर भी है। एक पहाड़ी पर बने इस मंदिर तक जाने के लिए 500 से ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इसके साथ ही यहां कई अन्य प्राचीन मंदिर और केलपुरी समाधि स्थल भी है।
इलाके में चीतल, हिरण, जंगली सूअर सहित कई जानवर भी पाए जाते हैं।
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