भारत में सूर्योपासना का प्रचलन वैदिक काल से ही रहा है। यह पहले मंत्रों से होती थी। सूर्य पूजा एवं मंदिर निर्माण का महत्व भविष्य पुराण में ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी के मध्य एक संवाद में समझाया गया है।
अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है कि ऋषि दुर्वासा के श्राप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पाई थी। रामायण में भी इस बात का जिक्र है कि भगवान श्रीराम ने लंका के लिए सेतु निर्माण से पहले सूर्य देव की आराधना की थी।
सूर्य का महत्व वैदिक साहित्य के साथ-साथ ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों, आयुर्वेद में प्रतिपादित किया गया है। आज तो लोहार्गल सूर्य मंदिर सूर्य को बिजली उत्पादन करने के विशाल स्रोत के रूप में देखा जा रहा है।
समाज में जब मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो सूर्य की मूर्ति के रूप में पूजा प्रचलित हुई। इसी कारण भारत में सूर्य देव के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर पाए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिरों के बारे में यहां बता रहे हैं।
लोहार्गल सूर्य मंदिर Lohargal Surya Mandir
यहां मंदिर के सामने एक प्राचीनतम पवित्र सूर्य कुंड बना हुआ है, मान्यता है कि यहां स्नान के बाद ही पांडवों को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी।
लोहार्गल राजस्थान के झुन्झुनू जिले से 70 किलोमीटर दूर शेखावाटी इलाके में आड़ावल पर्वत की घाटी में बसे उदयपुरवाटी कस्बे के पास स्थित है। लोहार्गल का अर्थ होता है जहां लोहा भी गल जाए वह स्थान । लोहार्गल मंदिर Lohargal Surya Mandir का नाम इसी तथ्य पर आधारित है और पुराणों में भी लोहार्गल का जिक्र मिलता है। नवलगढ़ तहसील में स्थित स्थानीय अपभ्रंश भाषा में इस तीर्थ लोहार्गल जी को लुहागरजी भी कहा जाता है।

कोणार्क सूर्य मंदिर Surya Mandir Konark
भुवनेश्वर के समीप ओडिशा में कोणार्क का मंदिर न केवल अपनी वास्तुकलात्मक भव्यता के लिए , बल्कि शिल्पकला की बारीकी के लिए भी प्रसिद्ध है। कलिंग वास्तुकला का उच्चतम बिन्दू है यह जो भव्यता, उल्लास और जीवन के सभी पक्षों का अनोखा तालमेल प्रदर्शित करता है। कोणार्क मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है।
पूर्वी गंगा राजा नरसिंह देव प्रथम के कार्यकाल में इसका निर्माण 1250 ई. में किया गया था। मंदिर के दोनों ओर 12 पहियों की दो कतारें है। कुछ लोगों का इनके बारे में मत है कि 24 पहिए एक दिन में 24 घंटों के प्रतीक हैं, जबकि कुछ का कहना है कि 12 माह के प्रतीक हैं ये । यहां स्थित सात अश्व सप्ताह के सात दिन दर्शाते हैं।
एक समय इसे समुद्री यात्रा करने वाले लोग'ब्लैक पगोडा' कहते थे, क्योंकि माना जाता है कि यह जहाजों को किनारे की ओर आकर्षित करता था और जहाजों का नाश कर देता था।

झालरापाटन का सूर्य मंदिर Jhalrapatan Sun Temple
राजस्थान के प्राचीन मंदिरों में से एक है यह मंदिर अपनी प्राचीनता और स्थापत्य वैभव के कारण प्रसिद्ध है। झालरापाटन का सूर्य मंदिर Jhalrapatan Sun Temple कहा जाता है की झालरापाटन मंदिर का निर्माण नाग भट्ट द्वितीय ने विक्रम संवत 872 में करवाया था तदनुसार इसका निर्माण ईस्वी सन 815 में हुवा होगा । झालरापाटन मंदिर को पद्मनाभ मंदिर , बड़ा मंदिर, सात सहेलियों के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। झालरापाटन मंदिर को देख कर आपको कोणार्क के सूर्य मंदिर तथा खजुराहो के मंदिरों की याद आ सकती है। सूर्य के रथ की भाति झालरापाटन मंदिर का निर्माण हुवा है जिसमे सात घोड़े जुते हुवे होते है उसी तरह झालरापाटन मंदिर की आधारशिला भी सात घोड़े जुते हुवे जैसी मालुम होती है । चतुर्भुज विष्णु भगवान की मूर्ति है झालरापाटन मंदिर के गर्भ गृह में । कर्नल जेम्सटॉड ने भी इसे चतुर्भुज मंदिर का नाम ही दिया था ।राजस्थान में झालरापाटन Jhalrapatan का सूर्य मंदिर यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह मंदिर अपनी प्राचीनता और स्थापत्य वैभव के कारण कोणार्क के सूर्य मंदिर और ग्वालियर के विवस्वान मंदिर का स्मरण कराता है। शिल्प सौन्दर्य की दृष्टि से मंदिर की बाहरी व भीतरी मूर्तियां तथा वास्तुकला देखते ही बनती है।

मंदिर का ऊर्ध्वमुखी कलात्मक अष्टदल कमल अत्यन्त सुन्दर, जीवंत और आकर्षक है। शिखरों के कलश और गुम्बद अत्यन्त मनमोहक हैं।
मोढेरा का सूर्य मंदिर Sun Temple Modhera
लगभग 102 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मोढेरा का सूर्य मंदिर अहमदाबाद में है। प्राचीनतम सूर्य मंदिरों में से इसे भारत के तीन प्रसिद्ध एक माना गया है। सबसे बड़ी खासियत है कि इस विश्वप्रसिद्ध मंदिर की पूरे मंदिर के निर्माण में चुनाई के लिए कहीं भी चूने का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

ईरानी शैली में निर्मित मोढेरा का सूर्य मंदिर को राजा भीमदेव ने तीन हिस्सों में बनवाया था। पहला हिस्सा गर्भगृह, दूसरा सभामंडप और तीसरा सूर्य कुंड है। यह मंदिर गुजरात के मोढेरा में स्थित है, जो मेहसाना से 25 किलोमीटर दूर है।
औंगारी सूर्य मंदिर
नालंदा का प्रसिद्ध सूर्य धाम औंगारी और बडगांव के सूर्य मंदिर देश भर में प्रसिद्ध हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां के सूर्य तालाब में स्नान कर मंदिर में पूजा करने से कुष्ठ रोग सहित कई असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। प्रचलित मान्यताओं के कारण यहां छठ व्रत त्यौहार करने बिहार के कोने-कोने से ही नहीं, बल्कि देश भर के श्रद्धालु आते हैं।
लोग यहां तम्बू लगा कर सूर्य उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ सम्पन्न करते हैं। कहते हैं कि भगवान कृष्ण का वंशज साम्ब कुष्ठ रोग से पीड़ित था, इसलिए उसने 12 जगहों पर भव्य सूर्य मंदिर बनवाए थे और भगवान सूर्य की आराधना की थी। ऐसा कहा जाता है तब साम्ब को कुष्ठ से मुक्ति मिली थी। उन्हीं 12 मंदिरों में औगारी एक है।

उन्नाव का सूर्य मंदिर
उन्नाव के सूर्य मंदिर का नाम बह्यन्य देव मन्दिर है। यह मध्य प्रदेश के उन्नाव में स्थित है। इस मंदिर में भगवान सूर्य की पत्थर की मूर्ति है, जो एक ईंटों से बने चबूतरे पर स्थित है, जिस पर काली धातु की परत चढ़ी हुई है। साथ ही 21 कलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सूर्य के 21 त्रिभुजाकार प्रतीक मंदिर पर अवलंबित है।

रणकपुर सूर्य मंदिर
राजस्थान के रणकपुर नामक स्थान में अवस्थित यह सूर्य मंदिर, नागर शैली मे सफेद संगमरमर से बना है। भारतीय वास्तुकला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता यह सूर्य मंदिर जैनियों के द्वारा बनवाया गया था जो उदयपुर से करीब 98 किलोमीटर दूर स्थित है।

मार्तंड सूर्य मंदिर Martand Sun Temple
मार्तंड सूर्य मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के अनंतनाग नगर में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। मार्तंड का यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। यहां पर सूर्य की पहली किरण के साथ ही मंदिर में पूजा-अर्चना का दौर शुरू हो जाता है। मंदिर की उत्तरी दिशा में संदर पर्वतमाला है। यह मंदिर विश्व के सुंदर - मंदिरों की श्रेणी में भी अपना स्थान बनाए हुए है।

कटारमल सूर्य मन्दिर
भारतवर्ष का प्राचीनतम सूर्य मन्दिर कटारमल सूर्य मन्दिर है। यह पूर्वाभिमुखी उत्तराखण्ड राज्य में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गॉंव में स्थित है। इसका निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक कटारमल के द्वारा छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ था।
Thankyou