पटना साहिब Patna Sahib का सिख इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश स्थान (जन्म स्थान) है। गुरु जी ने पौष शुक्ल पक्ष सप्तमी, संवत् 1723 को इसी शहर में जन्म लिया था और बचपन के प्रारंभिक छः वर्ष यहीं पर बिताए। यह सिखों के लिए अत्यंत पवित्र भूमि है। पांच तख्त साहिबान में से एक तख्त साहिब भी है।
गंगा के दाहिने किनारे पर स्थित 2500 वर्ष पुराने इस नगर को श्री गुरु नानक देव जी, श्री गुरु तेग बहादर साहिब और श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के धन्य चरणों से पवित्र होने का गौरव प्राप्त हुआ है। यहां आना और ऐतिहासिक गुरुधामों के दर्शन करना प्रत्येक नानक नामलेवा की हार्दिक अभिलाषा रहती है। यही कारण है कि यहां वर्ष भर संपूर्ण भारत और विदेशों से श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
ऐतिहासिक नगर पटना साहिब Gurudwara Patna Sahib
पटना साहिब गंगा नदी के तट पर स्थित बिहार राज्य की राजधानी है। महात्मा बुद्ध के समय इसे 'पाटलिग्राम' के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में इसका नाम 'पाटलिपुत्र' प्रचलन में आया। बुद्ध के समकालीन महाराजा अजातशत्रु ने इस शहर का भरपूर विकास किया और उसके उत्तराधिकारियों ने इसे अपनी राजधानी बनाया। मौर्य वंश के शासनकाल के दौरान यह नगर और भी प्रसिद्ध हो गया। तब यह 14 किलोमीटर लंबा था।

यह लम्बाई में गंगा के तट पर स्थित था और इसकी चौड़ाई अढ़ाई किलोमीटर से अधिक नहीं थी। आज भी इसका आकार कुछ-कुछ वैसा ही है। यह शहर सम्राट अशोक की राजधानी भी रहा। मौर्य वंश के अंत के बाद पटना शहर का महत्व घट गया। बाद में मुगलों और अंग्रेजों ने नगर के विकास की ओर ध्यान दिया। अब यह नगर बिहार का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण नगर है।
तख्त श्री हरिमंदिर साहिब Ggurudwara Takht Shri Harimandir Sahib
यह पटना साहिब का मुख्य गुरुधाम है। दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म (प्रकाश) यहीं पर हुआ था। पहले यह सालस राय जौहरी का आवास था। श्री गुरु नानक देव जी उदासियों के समय यहां तीन महीने तक रहे थे। बाद में सालस राय ने अपने आवास का नाम 'संगत' कर दिया। कालान्तर में इसे 'छोटी संगत' के नाम से जाना जाने लगा। 1666 ई. में नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर साहिब यहां आए।
सबसे पहले इसकी इमारत का निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था। बाद में समय-समय पर इसके भवन का विस्तार किया गया। 1887 ई. में पटियाला, जींद और फरीदकोट रियासतों के राजाओं ने इसका और अधिक निर्माण कराया। 1934 में बिहार में आए भीषण भूकम्प से इस इमारत को भारी क्षति पहुंची थी। वर्तमान नई इमारत का निर्माण संत निश्छल सिंह और संत करतार सिंह की देखरेख में किया गया जो 1957 ई. में पूरा हुआ।

1930 ई. तक इस गुरुधाम का प्रबंधन महंतों के पास था। इसके बाद पांच लोगों की एक कमेटी बनाकर इसका प्रबंधन उसे सौंप दिया गया। इसका संरक्षक जिला सत्र न्यायाधीश को बनाया गया। 1956 ई. में 15 सदस्यीय समिति का गठन किया गया और गुरुधाम का प्रबंधन उसे सौंप दिया गया। उस समिति में लगभग सभी सिख पंथों/कमेटियों का प्रतिनिधित्व था।
गुरुद्वारा कंगन घाट साहिब Gurudwara Shri Kangan Ghaat Sahib, Patna
यह गुरुधाम तख्त श्री हरिमंदिर साहिब जी के बिल्कुल करीब है। पहले गंगा इसी घाट के पास से बहती थी। दशमेश पिता यहीं पर जलक्रीड़ा किया करते थे और नाव पर सवार होकर गंगा नदी पर सैर करने जाया करते थे। गुरु साहिब के बचपन की कई साखियां इस स्थान के साथ जुड़ी हुई हैं।

गुरुद्वारा गऊघाट साहिब Gurudwara Sri Gau Ghat, Patna, Bihar
गुरुद्वारा गऊघाट साहिब आलमगंज इलाके में स्थित है। इस स्थान पर श्री गुरु नानक देव जी अपनी उदासी के दौरान भाई जैता नामक एक धर्मपरायण व्यक्ति के यहां रुके थे।
स्थानीय परम्परा के अनुसार इस स्थान से गुरु जी ने हीरे का मूल्य जानने के लिए भाई मरदाना को शहर में भेजा जिसके परिणामस्वरूप जौहरी सालस राय गुरु जी के सिख बन गए।

सालस राय ने गुरु जी को अपने घर आमंत्रित किया और वहां एक छोटी संगत की स्थापना की। इस गुरुधाम में माता गुजरी जी की चक्की और भाई मरदाना जी की रबाब सहेजी हुई है।
गुरुद्वारा हांडी साहिब Gurudwara Handi Sahib in Patna
यह गुरुद्वारा पटना शहर के उपनगर दानापुर में सुशोभित है। यह तख्त श्री हरिमंदिर जी से पश्चिम दिशा की ओर 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह वह पवित्र स्थान है, जहां जमना माई (या प्रधानी) ने नवम पातशाह के परिवार के लिए रात में मिट्टी की हांडी में खिचड़ी बनाई थी। माई जमना का यह घर बाद में हांडी वाली संगत' के नाम से मशहूर हो गया। अब यहां मौसमी नदी 'सोम' के तट पर सुंदर गुरुद्वारा बना हुआ है।

गुरुद्वारा बाल लीला साहिब Gurudwara Bal Leela
यह गुरुद्वारा तख्त श्री हरिमंदिर साहिब जी के बिल्कुल निकट वाली गली में है। यहां राजा फतेहचंद मैनी का घर हुआ करता था। राजा और उसकी धर्मपरायण पत्नी गुरुघर के प्रेमी थे। राजा का कोई पुत्र नहीं था। बाल गोबिद राय जी अपने बाल साथियों के साथ बाल लीलाएं करते हुए राजा फतेह चंद के घर पहुंच जाया करते थे।

यहां बाल गोबिंद राय की चरण पादुकाएं और जोड़ा संरक्षित है। साथ ही यहां वह गुलेल और पत्थर भी सहेज कर रखे गए हैं जिनसे बाल गोबिंद राय महिलाओं के पानी के घड़े फोड़ दिया करते थे। यहां गुरु साहिब के हस्ताक्षरों बाली एक पवित्र बीड़ भी संरक्षित है।
गुरुद्वारा साहिब गुरु का बाग
यह गुरुधाम तख्त श्री हरिमंदिर साहिब जी से मात्र एक कि.मी. दूर पुराने शहर के कोने में पूर्वी छोर पर है। यहीं पर नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर साहिब असम से लौटते समय नवाब रहीम बख्श और नवाब करीम बख्श के बगीचे में रुके थे। उस समय यह बगीचा सूखा था। जब गुरु साहिब ने बगीचे में कदम रखा तो बगीचे के पेड़ों में पत्ते और फूल उग आए।

नवाबों ने यह बगीचा गुरु जी को समर्पित कर दिया। जिस इमली के पेड़ के नीचे गुरु जी विराजमान हुए थे, वहां पहले एक छोटा-सा गुरुद्वारा बनाया गया था, जिसे 1971- 72 में एक विशाल सुंदर गुरुद्वारे के रूप में सुशोभित कर दिया गया। साढ़े छः एकड़ परिसर वाले इस गुरुद्वारे में अब भी फलों के पेड़ लगे हुए हैं। यहां बाग में पौधा रोपने की परम्परा है।
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