
ध्यान मंत्र : ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
क्या है पसंद : विष्णु जी को सभी रंगों के फूल अर्पित किए जाते हैं, लेकिन पीतांबर प्रिय होने के कारण पीले रंग के फूल से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। विष्णु जी की चार परिक्रमा करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
आरती 'ओम जय जगदीश हरे' के रचयिता पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी
फिल्लौर शहर का नाम आते ही पं. श्रद्धा राम फिल्लौरी Pandit Shraddha Ram Phillauri के चरणों में मन नतमस्तक हो जाता है जिन्होंने न केवल एक महान 'आरती' का सृजन किया, अपितु स्वतंत्रता संग्राम के उन दिनों में अंग्रेजी हुकूमत को भी मुंह तोड़ जवाब दिया।

पंजाब उन दिनों महाराजा रणजीत सिंह के शासन अधीन था तथा उल्लेवाल मिसल के अंतर्गत आते फिल्लौर नामक कस्बे में 30 सितम्बर, 1837 ई. को माता विष्णु देवी तथा पिता जय दयालु के यहां उनका जन्म हुआ। माता-पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे तथा पिता प्रकांड ज्योतिषी थे, जिनकी प्रसिद्धि उस समय काफी थी।
पं. श्रद्धा राम जी Pandit Shraddha Ram Phillauri ने 10 वर्ष की अल्पायु में ही अनेक धार्मिक पुस्तकों का गहन अध्ययन कर लिया तथा पिता की तरह ही ज्योतिष तथा धार्मिक लेखन में महारत हासिल की। उन दिनों गुलामी के कारण भारतीयों की दुर्दशा थी, जिससे पं. जी का मन अत्यंत विचलित रहता था तथा अंग्रेजों के द्वारा शोषण के कारण जनमानस की हालत दयनीय थी।
पं. श्रद्धा राम Pandit Shraddha Ram Phillauri ने इसके विरुद्ध अपने लेखन में आवाज उठाई तथा वह श्रद्धा राम फिल्लौरी ही थे जिन्होंने डटकर अंग्रेजों के दमनचक्र का व्यापक विरोध किया और उन्हें फिरंगी कहकर संबोधित किया, जिससे अंग्रेजी हुकूमत उनके विरुद्ध हो गई तथा उन्हें गांव से निकाले जाने का फरमान जारी कर दिया। उन्हें गांव छोड़ना पड़ा तथा लाहौर व अमृतसर आदि स्थानों पर रहने लगे और उनकी बढ़ती लोकप्रियता ने उन्हें अंग्रेजों का शत्रु बना दिया। पं. श्रद्धा राम Pandit Shraddha Ram Phillauri ने सनातन धर्म का प्रचार जारी रखा तथा अपनी रचनाओं से खूब यश कमाया। अपनी अति विलक्षण प्रतिभा तथा ओजस्वी भाषा के द्वारा पंजाब में नवीन सामाजिक चेतना तथा धार्मिक उत्साह पैदा किया। संस्कृत, हिंदी, उर्दू तथा पंजाबी में अनेक रचनाएं रचीं और हिंदी का प्रथम उपन्यास 'भाग्यवती' लिखने का सौभाग्य भी उनको ही प्राप्त हुआ, जिसमें एक नारी के जीवन-यापन तथा समाज में उसकी दशा को उजागर किया गया। उर्दू में ' असूल एक मजाहिब' भी इनकी प्रसिद्ध रचना थी। पंजाबी इतिहास को अपनी प्रसिद्ध रचना 'सिखां दे राज दी विथिया' में लिखा।
संस्कृत में 'नित्यप्रार्थना', 'भृगु संहिता' तथा 'कृष्ण स्तुति' रचनाएं लिखीं तथा हिंदी में 'तत्वदीपक', 'सत्योपदेश', 'सत्य धर्म मुक्तावली' जैसी रचनाएं रचीं। समय-समय पर इनको पटियाला, कपूरथला, जम्मू तथा कांगड़ा रियासतों से सम्मान प्राप्त हुए। 1870 ई. में आरती 'ओम जय जगदीश हरे' ने इनको जनमानस में ला खड़ा किया तथा इतिहास में इस कालजयी रचना से अमर हो गए, जिसे इन्होंने स्वयं कई स्थानों पर जाकर लोगों को गाकर सुनाया।
हिंदू धर्म तथा सनातन परम्परा का अभिन्न अंग यह 'आरती' बन गई, जिसे आज भी सर्वत्र बड़ी श्रद्धा के साथ गाया जाता है। पंडित जी जीवनपर्यन्त साहित्य साधना में लगे रहे तथा धर्म और समाज, के बीच प्रमुख कड़ी के रूप में कार्य किया।
महान समाज सुधारक साहित्यकार तथा बहुमुखी प्रतिभा के धनी पं. श्रद्धा राम फिल्लौरी Pandit Shraddha Ram Phillauri का निधन 44 वर्ष की अल्पायु में 24 जून, 1881 ई. को लाहौर में हुआ पर उनकी रचनाओं तथा महान साहित्य, समाज में उनके अतुलनीय योगदान के कारण वह आज भी सबके मन में बसते हैं और उनका जन्मोत्सव प्रत्येक वर्ष श्रद्धा भाव से मनाया जाता है तथा विशेष तौर पर उनकी रची आरती का सब गान करते हैं।
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य सुंदरमणी,
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