'उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए' का पूरी दुनिया को संदेश देकर अपने लक्ष्य के प्रति जुटने का जनता को आह्वान करने वाले महान देशभक्त संन्यासी एवं युवा संत विवेकानंद जी को करोड़ों युवा आज भी अपना आदर्श मानते हैं। युवाओं के प्रेरणास्रोत 'स्वामी विवेकानंद' स्वामी विवेकानंद वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। 21वीं सदी में भी उनके विचारों का युवाओं और आम जन पर खासा प्रभाव है। उनके विचार लोगों की सोच और व्यक्तित्व को बदलने वाले हैं।

इनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को सबह 6.33 पर कलकत्ता में एक कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था । इनका घर का नाम वीरेश्वर रखा गया, किन्तु इनका औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध स्थापित वकील थे। इनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की गृहणी थीं । घर पर धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखाई देने लगी थी। 1884 में इन्होंने कला स्नातक की डिग्री ली।
1881 में रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर नरेंद्र उनके पास तर्क करने के विचार से गए, किंतु उन्होंने देखते ही पहचान लिया कि यह तो वही शिष्य है जिसका उन्हें कब से इंतजार है। उनकी कृपा से इनको आत्म- साक्षात्कार हुआ फलस्वरूप नरेंद्र उनके शिष्यों में प्रमुख हो गए। यह 25 वर्ष की युवा अवस्था में परिवार छोड़ गेरुआ वस्त्र धारण कर साधु बन गए। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ। रामकृष्ण जी की मृत्यु के बाद विवेकानन्द ने पैदल ही पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की। विवेकानंद ने 31 मई, 1893 को अपनी विदेश यात्रा शुरू की और जापान के कई शहरों (नागासाकी, कोबे, योकोहामा, ओसाका, क्योटो और टोक्यो) का भ्रमण कर चीन और कनाडा होते हुए अमरीका के शिकागो पहुंचे, जहां उन दिनों विश्व धर्म महासभा आयोजित होने वाली थी।
11 सितम्बर, 1893 को विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व इन्होंने किया। अपने सुप्रसिद्ध शिकागो भाषण की शुरुआत, 'मेरे अमेरिकी भाइयो एवं बहनों' के साथ की थी। इनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने दुनिया का दिल जीत लिया और हाल में बैठे लोग 2 मिनट लगातार तालियां बजाते रहे।
विश्व धर्म महासभा में उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए। फिर तो अमरीका में उनका अत्यधिक स्वागत हुआ। वहां उनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय बन गया। अमरीका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएं स्थापित कीं। अनेक अमरीकी विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। तीन वर्ष वे अमरीका में रहे और वहां के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की। उनकी वक्तवय शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहां के मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया।
वह सदा अपने को 'गरीबों का सेवक' कहते थे। वह कहते थे कि जो तुम सोचते हो वह हो जाओगे। यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे, अगर खुद को ताकतवर सोचते हो, तुम ताकतवर हो जाओगे। शिक्षा का लक्ष्य अथवा उद्देश्य तो मनुष्य का विकास ही है। उठो जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।'
39 वर्ष 5 माह और 23 दिन की आयु में जीवन के अन्तिम दिन 4 जुलाई, 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और रात्रि 9.10 बजे ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गई।
इनके शिष्यों और अनुयायियों ने इनकी स्मृति में वहां एक मन्दिर बनवाया। 1984 में भारत सरकार ने इनके जन्मदिन 12 जनवरी को 'राष्ट्रीय युवा दिवस' National Youth Day घोषित किया था।
National Youth Day / National Youth Day Swami Vivekananda / 12 January National Youth Day
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