धरती अपनी धुरी पर करीब 1000 मील प्रति घंटे की रफ्तार से घूमती है। धरती को एक चक्कर पूरा करने में 23 घंटे 56 मिनट और 4.1 सैकेंड लगते हैं। यही वजह है कि धरती के एक भाग पर दिन और दूसरे पर रात होती है।
धरती अपनी धूरी पर घूमती रहती है, लेकिन हमें इसका एहसास नहीं होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हम भी इसके साथ घूमते हैं। क्या आपने सोचा है कि कभी धरती घूमना बंद कर दे तो क्या होगा ?

धरती घूमना बंद कर दे तो ग्रह पर दिन- रात नहीं होंगे तथा प्रलय जैसे हालात उत्पन्न हो जाएंगे। इससे धरती के आधे हिस्से में अधिक गर्मी हो जाएगी और आधे भाग पर सर्दी । इससे जीव-जन्तु प्रभावित होंगे और परिणाम भयानक होंगे। अगर यह घटना घटती है, तो संभावना है कि हर किसी की मौत हो जाए।
धरती की आंतरिक कोर ने घूमना बंद कर दिया है
धरती के नीचे होने वाली हलचल को तब तक महसूस नहीं किया जा सकता, जब तक भूकम्प या किसी ज्वालामुखी विस्फोट से कम्पन न महसूस हो। एक अध्ययन में पता चला है कि धरती की आंतरिक कोर ने साल 2009 में घूमना बंद कर दिया था और सम्भावना है कि अब यह अपने घूमने की दिशा को बदलने जा रही है। अध्ययन में बताया गया है कि दिन की लंबाई में बदलाव से कोर का घूमना प्रभावित होता है। धरती अपने अक्ष पर घूमने में जितना समय लेती है, उसमें थोड़ा बदलाव हो सकता है।
शोधकर्त्ताओं का कहना है कि धूमने का चक्र करीब सात दशक का होता है इसका मतलब यह है कि करीब हर 35 साल में यह अपनी दिशा बदल लेता है। इससे पहले 1970 के देशक की शुरुआत में धरती के कोर के घूमने की दिशा में बदलाव हुआ था और अब साल 2040 के मध्य में इसकी दिशा में बदलाव हो सकता है।
धूमने का समय हुआ कम
वहीं एक अन्य रिपोर्ट चौंकाने वाली है कि धरती अब थोड़ा तेज घूम रही है। अब इसे अपना चक्कर पूरा करने में 0.5 मिली सैकेंड कम लग रहा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार 24 घंटे में 86,4600 सैकेंड होते हैं। इतने समय तक धरती अपना एक चक्कर पूरा करती है लेकिन जून 2022 में देखा गया कि इसमें 0.5 मिली सैकेंड की कमी आई है।
8 जनवरी को 'अर्थ रोटेशन डे' 8 January Earth Rotation Day
हर वर्ष 8 जनवरी को 'अर्थ रोटेशन डे' मनाया जाता है। दरअसल, 8 जनवरी को फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी लियोन फौकॉल्ट के उस प्रदर्शन को याद किया जाता है, जो उन्होंने साल 1851 में दिखाया था। लियोन ने 1851 में मॉडल के जरिए सबसे पहले दर्शाया था कि आखिर धरती अपनी धुरी पर कैसे घूमती है।

दार्शनिकों और वैज्ञानिकों को यह पता लगाने में कई साल लग गए कि धरती सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। 470 ईसा पूर्व के आसपास कुछ यूनानी खगोलविदों ने यह जरूर खोज लिया था कि धरती अपने आप से चलती है और इसे सिद्ध करने के लिए खगोलविदों ने कई प्रयोग भी किए लेकिन तब यूनानी खगोलविदों को यह नहीं पता था कि धरती सूर्य के भी चक्कर लगाती है।
तमाम खोजों और निष्कर्षों के बाद 8 जनवरी, 1851 को लियोन ने सबसे पहली बार एक पैंडुलम के साथ यह प्रदर्शन करके बताया कि आखिर धरती अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य के चारों ओर चक्कर किस तरह से लगाती है। बाद में लियोन द्वारा बनाया गया पैंडुलम काफी प्रसिद्ध हो गया और धरती के परिभ्रमण को दिखाने के लिए उसी मॉडल का उपयोग किया जाने लगा। आज भी दुनियाभर के खगोल विज्ञान से संबंधित कई संग्रहालयों में इसे दिखाया जाता है। भारत की नई संसद में भी इसे प्रदर्शित किया गया है।
'अर्थ रोटेशन डे' का महत्व इसलिए भी है क्योंकि भौतिक विज्ञानी लियोन फौकाल्ट के उस मॉडल को बच्चों के बीच ज्यादा पसंद किया जाता है। बच्चे भी इस मॉडल को देखकर खगोल विज्ञान के प्रति आकर्षित होते हैं। पैरिस ने जन्मे लियोन की ज्यादातर शिक्षा घर पर हुई थी। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने मैडीसिन विषय को चुना लेकिन खून देखकर डर लगने के कारण उन्होंने बाद में फिजिक्स को चुना।
मौसम का पूर्वानुमान कैसे लगाया जाता है ?
अमूमन खबर आती है कि कहीं बारिश से हाल बेहाल होने वाला है तो कहीं शीतलहर का प्रकोप आने वाला है, तो सबके मन में सवाल जरूर कौंधता होगा कि आखिर मौसम विभाग अनुमान लगाता कैसे है ?
दरअसल देश में वर्तमान समय में मौसम का पूर्वानुमान उपग्रह डाटा और कम्प्यूटर मॉडल के जरिए लगाया जाता है। इसके लिए इंडियन मैटेओरॉलॉजिकल डिपार्टमैंट (आई.एम.डी.) इनसैट सीरीज के सुपर कम्प्यूटर का इस्तेमाल करता है।

कम्प्यूटर में डाटा जुटाने के लिए सबसे पहले बादलों की गति, उनका तापमान और उनके घनत्व का अध्ययन किया जाता है, जिसके बाद सुपर कम्प्यूटर के जरिए इसकी गणना होती है कि कब, कैसे और कहां किस प्रकार का मौसम होगा ?
भारत में किन सुपर कम्प्यूटर के जरिए लगाया जा रहा अनुमान ?
भारत में मौसम की गणना फिलहाल 2018 में शुरू किए गए 'प्रत्युष' और 'मिहिर' नामक सुपर कम्प्यूटरों के जरिए की जा रही है। वहीं मौसम के अनुमान में सटीकता लाने के लिए भारत को ज्यादा से ज्यादा 'पेटाफ्लाप' सुपर कम्प्यूटरों की जरूरत है।
फिलहाल सरकार की ओर से इस पर काम जारी है। सरकार ने गत दिनों इन सुपर कम्प्यूटरों के लिए 900 करोड़ रुपए का बजट पास किया था ।
ग्रह 'गोल' ही क्यों होते हैं ?
एक्सपर्ट मानते हैं कि ग्रहों की आकृति या आकार के पीछे दो चीजें काम करती हैं। पहली है घूर्णन और दूसरा है गुरुत्वाकर्षण। दरअसल, इस यूनिवर्स में मौजूद हर चीज में एक भार होता है और जिस भी चीज में भार होता है उसे गुरुत्व का अनुभव जरूर होता है। इसे ऐसे समझिए कि अगर किसी भार वाली चीज में गुरुत्व है तो वह अपने आसपास मौजूद सभी चीजों को अपने भीतर खींचना चाहती है। हालांकि, यह खिचाव केवल आंखों से दिख रही चीजों का ही नहीं होता, बल्कि परमाणु स्तर तक का होता है ।

'डब्ल्यूएएसपी-107बी पर होती रेत की बारिश
नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के जेम्स वैब स्पेस टैलीस्कोप द्वारा एकत्र किए गए डाटा की मदद से यूरोपीय खगोलविदों की एक टीम ने पाया है कि 'डब्ल्यूएएसपी-107बी' नामक एक एक्सोप्लैनेट पर रेत की बारिश होती है ! 'डब्ल्यूएएसपी- 107बी' का द्रव्यमान पृथ्वी से लगभग 30 गुना अधिक है।
यह ग्रह वर्ष 2017 में खोजा गया था जो पृथ्वी से लगभग 200 प्रकाश वर्ष दूर 'विरगो' नामक तारामंडल में है।
हालांकि, 'डब्ल्यूएएसपी- 107बी' का आकार लगभग बृहस्पति के समान है, लेकिन इसका द्रव्यमान बृहस्पति की तुलना में बहुत कम है और खगोलविद इसकी संरचना को लेकर उत्सुक हैं। जेम्स वैब टैलीस्कोप द्वारा एकत्र किए गए डेटा का उपयोग ग्रह की वायुमंडलीय संरचना का विश्लेषण करने के लिए किया गया था और यह पाया गया कि इसके बादल सल्फर डाइऑक्साइड, पानी और रेत से बने हैं।

पृथ्वी के जल चक्र की तरह, ग्रह के वायुमंडल में सिलिकेट वाष्प रेत के बादल बनाता है, जो अंततः भारी हो जाता है और रेत की बारिश का कारण बनता है।
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