पति -पत्नी का रिश्ता सिर्फ विवाह की डोर से नहीं बंधता, बल्कि भरोसे, समान अधिकार और सीमाओं का खयाल रखने से हरियाता है, मजबूती पाता है। अगर आप अपने साथी की खुशियों का खयाल रखते हैं, उसकी निजी बातों को लेकर सजग रहते हैं और उन बातों का ध्यान रखते हैं तो रिश्ता ताउम्र हरा-भरा रहेगा। चंद्र पर्व पर पत्नी का पति को जन्म-जन्मांतर तक साथी के रूप में पाने की कामना करना, उसकी तरफ से रिश्ते की मजबूती को दर्शाता है। इसी की वह पति से भी उम्मीद करती है। क्या आशाएं होती हैं जीवनसाथी की, जानिए-

इच्छाओं की समान अहमियत हो
एक बात अक्सर रिश्तों में देखी जाती है कि दोनों साथियों में से एक साथी सिर्फ अपनी पसंद का खयाल रखता है और वो चाहता है कि सामने वाला भी ठीक वैसा ही करे। उदाहरण के लिए, किसी को शांत रहना पसंद है तो कोई घूमने का शौक़ीन होता है। ऐसे में साथी से भी यही उम्मीद की जाती है कि वो भी उसकी पसंद को अपनी पसंद में शामिल करे। हालांकि ऐसा मुमकिन नहीं है लेकिन दिल रखने के लिए लोग काफ़ी हद तक ऐसा करते हैं। रिश्ते में उम्मीदें लगाना आम है, लेकिन दूसरे व्यक्ति की उम्मीदें जब आपके जीवन को ही मुश्किल बना दें तो खुशियां ज्यादा देर नहीं ठहर सकतीं। एक व्यक्ति की बात रखते- रखते हम कब अपनी प्राथमिकताएं खो बैठते हैं हम खुद ही समझ नहीं पाते। इसलिए जब भी लगे कि पति आपसे ही उम्मीदें लगाए बैठे हैं तो उनके सामने अपनी बात जरूर रखें। पति भी समझें कि आपकी भी अपनी कुछ इच्छाएं हैं। रिश्ता दोनों ओर से बराबरी का हो तो ही बेहतर है।
सुना जाना भी ज़रूरी है
यह संवाद का सामान्य नियम है कि जब दो लोग बात करें, तो दोनों का ही कहा और सुना जाना जरूरी होता है। मिसाल के तौर पर देखें तो जब भी पत्नी अपने अनुभव पति से साझा करने लगती है तो या तो वे उसकी बात पर खास गौर नहीं करते या सुनकर अनसुना कर देते हैं। ऐसे में अक्सर पलियां अपनी बात रखना छोड़ देती हैं। सुना जाना, स्वीकार किए जाने, परवाह करने की पहली सीढ़ी है, जो रिश्ते को मजबूती के शिखर पर ले जाने के लिए जरूरी है। अगर कोई बात सुनेगा ही नहीं, तो आपको जानेगा कैसे ? अनजाना, अजनबी बना रहना, रिश्ते में शामिल होना नहीं है।
हिचकिचाहट न रहे
हर रिश्ते में चुनौतियां आती ही हैं, लेकिन उनके बारे में बात करना जरूरी है, ताकि जो बात आपको परेशान कर रही है या असहज कर रही है आप उसे खुलकर कह सकें। कई दफ़ा पत्नी इस डर से पति से बात करने से घबराती है कि कहीं वो उसकी बात पर नाराज न हो जाएं या डांट न दें। रिश्ते में डर होना उसे कमजोर बनाता है। अगर आप खुलकर बात नहीं रख सकतीं तो मानिए कि उस रिश्ते में घुटन पैर पसारने लगी है। हर छोटी बात बताने या पूछने के लिए जब हजार बार सोचना पड़े तो यह सामने वाले से आपके कमजोर संबंध की ओर इशारा करता है। आजकल टॉक्सिक यानी जहरीले रिश्तों या लोगों से दूर रहने की सलाहें दी जाती हैं। टॉक्सिक व्यक्ति यानी जिससे बात करना एक चुनौती की तरह लगता हो, कुछ कहने में हिचक होती हो या पूछने में भी उल्टी बात सुनने का डर लगता हो। अगर पत्नी की यह स्थिति है, तो पति एक सुलझे-संभले रिश्ते की उम्मीद नहीं कर सकता। खुद को एक पायदान ऊपर मानने से यह जहरीला व्यवहार घर करने लगता है। दांपत्य दो बराबर के इंसानों के बीच का रिश्ता है, यह समझिए।
मज़ाक हद में हो
ये बेहद सामान्य आदत है जो मन को गहरे तक भेदती है। हम अपने साथी से अपनी निजी कमजोरियों या नापसंदगी की बात करते ही हैं। ये बहुत सामान्य भी हो सकती हैं, लेकिन पति इन बातों को सार्वजनिक रूप से उजागर करके मजाक के तौर पर कहें तो मन को गहरी चोट लगती है। मानसी ने गौरव से कहा कि उसे भीड़-भाड़ पसंद नहीं है, वो शांत वातावरण पसंद करती है। एक दिन किसी फंक्शन में वह गौरव के साथ गई और सबसे मिलकर एक जगह आकर बैठी थी। एक दोस्त ने अकेले बैठने का कारण पूछा, तो मानसी बस मुस्करा दी, लेकिन गौरव ने मजाकिया लहजे में तपाक से कह दिया, 'मानसी को तो भीड़भाड़ से सख्त आपत्ति है। उसे तो अकेला रहना सुहाता है।' लोगों ने फौरन राय बना ली कि मानसी एकाकी लड़की है। वह अपने पति की हरकत से दंग थी। उस वक्त लगा कि ये बात इन्हें बताई ही क्यों? ऐसे इंसान पर अपनी निजी राय को लेकर विश्वास करना संभव लगेगा फिर ? बाद में जो मानसी ने किया, वही सही क़दम है। उसने गौरव से साफ कहा कि 'अगर आप चाहते हैं कि मैं बिना किसी संदेह और शंका के पूरे विश्वास से आपसे अपनी पसंद-नापसंद या निजी राय पर बात कर सकूं, तो आपको उसको गंभीरता से लेना होगा। उसका मजाक उड़ाया जाना मुझे क़तई नहीं भाएगा।' आपके मान की परवाह कोई और अगर न करे, तो आपको उसे इसका स्मरण कराना ही होगा। भरोसा बना रहना रिश्ते की प्राथमिकता है।
सीमाओं का ख़याल रहे
शुरू से ही एक-दूसरे की सीमाओं को जानना, स्वीकार करना और उनका सम्मान करना आवश्यक है। आपको दोषी महसूस किए बिना 'ना' कहने में सक्षम होना चाहिए। रिश्ते बचाने के लिए लोग अक्सर अपनी सीमाओं से आगे बढ़ जाते हैं। जैसे आपने तय किया है कि आप अपने साझे बचत खाते में से किसी को उधार नहीं देंगी, लेकिन पति बार-बार अपने दोस्तों-परिचितों के लिए इस तय सीमा का उल्लंघन करते रहते हैं। कितनी ही बार पैसे वापस ही नहीं आते और आपको अपनी खुशियों से समझौता करना पड़ता है। सीमाओं का उल्लंघन एकाध बार ठीक है, लेकिन बार-बार ऐसा होता हो, तो साफ बात करके सारे सिरे मजबूती से बांध लेना जरूरी है। अपनी सीमाओं, नियमों का सम्मान आप ख़ुद नहीं करेंगी, तो दूसरे भी नहीं करेंगे। बार-बार पत्नी से ही समझौते की उम्मीद करना रिश्ते में असंतुलन लाना है।
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