पंडित मदन मोहन मालवीय ने जब कॉलेज की शिक्षा पूरी की तब उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। शिक्षक की नौकरी में वेतन बहुत कम था, फिर भी उन्हें वह नौकरी करनी पड़ी। कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह ने भी उनके विषय में बहुत कुछ सुन रखा था। उन्हें अपने समाचारपत्र के लिए सुयोग्य संपादक चाहिए था। उन्होंने मालवीय जी को बुलवाया और पूछा कि क्या वह उनके समाचारपत्र का संपादक बनना पसंद करेंगे। उन्होंने मालवीय जी के सामने 250 रुपए मासिक वेतन का प्रस्ताव रखा।

अध्यापन कार्य में मालवीय जी को कम वेतन मिलता था, इसलिए उन्होंने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया परंतु एक समस्या थी कि राजा शराब के आदी थे और मालवीय जी को शराब से चिढ़ थी। उन्होंने कहा, "मैं संपादन कार्य जरूर करूंगा परंतु मेरी शर्त यह है कि जब आप का नशे में हों तो कृपा मेरे पास न आएं।" राजा ने हामी भर दी।
इसके बाद मालवीय जी ने संपादन का कार्य लगन से शुरू कर दिया। एक दिन राजा साहब नशे में अपनी शर्त भूल गए और मालवीय जी के कार्यालय में जा पहुंचे। मालवीय जी ने तुरंत अपना त्यागपत्र दे दिया।
जब राजा साहब का नशा उतरा तो उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने मालवीय जी से क्षमा याचना की, परंतु मालवीय जी बोले, "मैं क्षमा करने से अधिक अपने आदर्श को मानता हूं अतः मैं अब आपके यहां कार्य नहीं कर सकता।"
मालवीय जी के फैसले और व्यक्तित्व का राजा साहब पर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने उसी दिन से शराब त्याग दी। इतना ही नहीं मालवीय जी को इस फैसले से किसी तरह का आर्थिक नुकसान न हो राजा साहब यह सुनिश्चित करने के लिए वेतन के बराबर राशि उन्हें छात्रवृत्ति के रूप वकालत पढ़ने के लिए में देने लगे।
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