श्री हनुमान जी की प्यारी लीलाएँ में के बारे में हनुमान जी की श्री सीता-राम निष्ठा के बारे में पढिये - Hanuman Ji hanuman ji ki katha in hindi बात है तव की है जब राज्याभिषेक के अवसर पर धर्मविग्रह श्री राम ने मुनियों एवं ब्राह्मणों को नाना प्रकार के दान से संतुष्ट कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने अपने मित्र सुग्रीव, युवराज अंगद, विभीषण, जाम्बवान, नल और नील आदि सभी वानरों, भालुओं आदि को बहुमूल्य अलंकार एवं श्रेष्ठ रत्न प्रदान किए।

उसी समय भगवान श्री राम ने महारानी सीता को अनेक सुंदर वस्त्राभूषण अर्पित किया तथा एक सुंदर मुक्ताहार भी दिया। यह हार पवन देवता ने अत्यंत आदरपूर्वक श्री राम को दिया था।
माता सीता ने देखा कि प्रभु श्री राम ने सबको बहुमूल्य उपहार दिया परन्तु पवन कुमार हनुमान को अब तक कुछ नहीं मिला। इस पर माता सीता ने प्रभु श्री राम के द्वारा प्राप्त दुर्लभ मुक्ताहार निकालकर हाथ में ले लिया। महारानी सीता की इच्छा का अनुमान कर प्रभु श्री राम ने कहा, “प्रिय ! तुम इसे जिसे चाहो, दे दो।" सीता माता ने वह बहुमूल्य मुक्ताहार श्री हनुमान shree hanuman ji के गले में डाल दिया।
चारों ओर हनुमान जी hanuman ji के भाग्य की प्रशंसा होने लगी परंतु हनुमान जी की मुखाकृति पर प्रसन्नता का कोई चिन्ह नहीं दिखाई पड़ रहा था। वह सोच रहे थे कि प्रभु मेरी अंजलि में अपने अनंत सुखदायक चरण कमल रख देंगे, परन्तु मिला मुक्ताहार ! हनुमान जी hanuman ji ने उस मुक्ताहार को गले से निकाल लिया और उसे उलट-पलट कर देखने लगे। उन्होंने सोचा शायद इसके भीतर मेरे अभीष्ट सीता-राम मिल जाएं। बस उन्होंने एक अनमोल रत्न को अपने वज्र तुल्य दांतों से फोड़ दिया, पर उसमें भी कुछ नहीं था। वह तो केवल चमकता हुआ पत्थर ही था। हनुमान जी hanuman ji ने उसे फेंक दिया।
यह दृश्य देख कर सबका ध्यान श्री हनुमान जी Shree hanuman ji की ओर आकृष्ट हो गया। भगवान श्री राम मन ही मन मुस्करा रहे थे तथा माता जानकी सहित समस्त सभासद आश्चर्यचकित हो रहे थे। हनुमान जी hanuman ji क्रमश: एक-एक रत्न को मुंह में डाल कर दांतों से तोड़ते, उसे देखते और फेंक देते।
सभासदों का धैर्य जाता रहा पर कोई कुछ बोल नहीं रहा था। विभीषण जी ने तो पूछ ही लिया, "हनुमान जी ! hanuman ji इस हार के एक-एक रत्न से विशाल साम्राज्य खरीदे जा सकते हैं, आप इन्हें इस तरह क्यों नष्ट कर रहे हैं ?"
एक रत्न को फोड़कर ध्यानपूर्वक देखते हुए हनुमान जी hanuman ji ने कहा, “लंकेश्वर ! क्या करूं? मैं देख रहा हूं कि इन रत्नों में मेरे प्रभु की भुवन मोहिनी छवि है कि नहीं, परन्तु अब तक एक में भी मुझे उनके दर्शन नहीं हुए। जिनमें मेरे स्वामी की पावन मूर्ति नहीं है वह तो तोड़ने और फैंकने योग्य ही है।"
विभीषण ने क्षुब्ध होकर पूछा, “यदि इन अनमोल रत्नों में प्रभु की मूर्ति नहीं है तो आपकी पहाड़ जैसी काया में है क्या ?"
" निश्चय ही है।" हनुमान जी hanuman ji ने दृढ़ विश्वास के साथ कहा और अपने तीक्ष्ण नखों से अपने हृदय को फाड़ दिया।
आश्चर्य! अत्यंत आश्चर्य! विभीषण ही नहीं समस्त सभासदों ने देखा कि हनुमान जी hanuman ji के हृदय में भगवान श्री सीता-राम की मनोहर मूर्ति विराज रही थी और उनके रोम-रोम से राम नाम की ध्वनि हो रही थी। लंकेश्वर उनके चरणों में गिर पड़े। भक्तराज हनुमान की जय hanuman ji ki jai से राजदरबार गूंज उठा।
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