फिल्म 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी', 'ये साली जिंदगी', 'देसी ब्वॉयज' जैसी फिल्मों से पहचान बनाने वाली चित्रांगदा सिंह ने बतौर प्रोड्यूसर फिल्म 'सूरमा' बनाई थी, जो हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह की बायोपिक थी। वह लेखिका भी बन चुकी है। चित्रांगदा ने एक शॉर्ट फिल्म की पटकथा लिखी है। इतना ही नहीं, चित्रांगदा ने हाल ही में वैब सीरीज 'खाकी : द बंगाल चैप्टर' से ओ.टी.टी. पर डेब्यू किया।
जोधपुर में जन्मी और बरेली व मेरठ में पली-बढ़ी चित्रांगदा इन दिनों चुनिंदा फिल्में करना ही पसंद कर रही है। कम फिल्में करने के बारे में उससे पूछने पर एक इंटरव्यू में उसका कहना था, "मैं इस बात से सहमत हूं कि रुपहले पर्दे पर अब मैं कम नजर आ रही हूं। यह बात मुझे भी महसूस होती है लेकिन इसके कई कारण हैं। हालांकि, सबसे बड़ा कारण है कि मैंने बीच में थोड़ा ब्रेक लिया था, उससे भी अंतर पड़ा। दूसरी बात यह है कि मुझे जिस तरह के रोल करने के लिए प्रस्ताव मिलते हैं, मुझे उनमें से ही चयन करना पड़ता है। मुझे जिस तरह के रोल ऑफर हुए, वे उतने एक्साइटिंग नहीं थे, इसलिए कुछ बात नहीं बन सकी। ऐसा भी नहीं है कि मैं बहुत ज्यादा चूजी हूं, पर काम को लेकर काफी सतर्क रहती हूं।""मैं मानती हूं कि अभी तक का मेरा काम इतना ज्यादा नहीं है, लेकिन फिर भी दर्शकों ने मुझे याद रखा है। वे अभी तक मुझे भूले नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि मैं काम करना नहीं चाहती या ऐसा सोचकर चलती हूं कि कम काम करना है, मगर अच्छा काम या जो काम मैं करना चाहती हूं, वह मिलता नहीं और जो नहीं करना चाहती, वैसा ही काम आता है। वह होता है न कि जो आप नहीं करना चाहते, वही ज्यादा आता है। लेकिन अभी मेरी दो और फिल्में ('हाऊसफुल 5' और 'रात अकेली है 2') आएंगी, तो प्लीज उन फिल्मों को देखिए और मुझे सपोर्ट कीजिए क्योंकि थोड़ा अभी काम आ रहा है तो अब आप मुझे ज्यादा देखेंगे। शुरुआत 'खाकीः द बंगाल चैप्टर' से हुई है, जो मेरी डेब्यू वैब सीरीज है। मेरा बड़ा मन था कि मैं नीरज पांडे के साथ काम करूं, तो साल की शुरुआत में वह हुआ है। अभी दो और फिल्में आनी हैं, तो मैं बहुत उत्साहित हूं।""
"अब तो मैं मुम्बई में ही हूं काम भी कर रही हूं लगातार। बस मैं बहुत घूमती-फिरती नहीं हूं। वह क्या कहते हैं, 'स्पॉट' नहीं की जाती हूं तो लोगों को लगता है कि मैं यहां नहीं हूं। मैं सिर्फ काम में यकीन रखती हूं। अभिनय से फुर्सत मिलती है तो लिखती हूं। कुछ नया रचने की कोशिश करती हूं।"
फिल्म निर्माण पर बोली चित्रांगदा सिंह
"हम अभी एक और बायॉपिक पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा, एक वैब सीरीज भी प्रोड्यूस कर रही हूं, जो मैंने लिखी भी है, तो उसे लेकर भी मैं बहुत एक्साइटेड हूं। इनमें से एक प्रोजैक्ट में मैं हूं, जबकि दूसरे में मैं फिट नहीं होती हूं।"
करना चाहती है रिमेक क्या वह किसी राजनीतिक किरदार को निभाना चाहेगी पर उसका कहना था, "रियल लाइफ नेता तो नहीं, मगर सुचित्रा सेन की जो फिल्म है 'आंधी', अगर उसका रीमेक हो, तो वह जरूर करना चाहूंगी। उन्होंने इतनी खूबसूरती से वह किरदार निभाया है, वह इतनी कमाल की अभिनेत्री हैं और यह सिर्फ राजनीतिक किरदार निभाने की बात नहीं है, उसकी निजी जिंदगी में भी जो चीजें होती हैं, मतलब वह मर्दों की दुनिया में एक औरत की जंग वाली बात है। ऐसा अगर कुछ किरदार हो तो जरूर करना चाहूंगी।"
कैसा रहा अब तक का करियर
"मेरा बड़े पर्दे पर डेब्यू करना इस सफर का सबसे हाईलाइट प्वाइंट रहा है। फिल्म 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी' की गीता की चमक अब भी कहीं न कहीं दिख ही जाती है। लोग मुझे उस किरदार से आज भी पहचानते हैं। उसके बाद की भी तमाम फिल्में हैं, जिनके किरदारों के नामों से लोग मुझे पुकारते रहे हैं लेकिन डेब्यू फिल्म का किरदार तो अलग ही मायने रखता है।"
करियर के सबसे बड़े उतार-चढ़ाव
"मेरा सबसे बड़ा चढ़ाव मेरी पहली फिल्म थी। यह एक सच है कि आज भी लोग इसे देखने आते हैं और इसकी बहुत सराहना करते हैं। मैं छुट्टियों में न्यूयॉर्क में थी। मैं एक लिफ्ट में गई जहां दो छात्र पहले से थे। उनमें से एक भारतीय-अमेरिकी था, वे मेरे पास आए और मुझे बताया कि उन्होंने फिल्म पाठ्यक्रम में 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी' देखी थी। सबसे बड़ा उतार वह था जब मुझे वह काम नहीं मिल रहा था जो मैं चाहती थी, लेकिन अच्छी बात यह थी कि मैंने 2018 में फिल्म 'सूरमा' का निर्माण किया। मैं सौभाग्य से उस व्यक्ति से मिली और उसके जीवन के बारे में एक कहानी लिखनी शुरू की और यह दिलजीत दोसांझ के साथ इसे बनाने में बदल गया, जो तापसी के साथ मुख्य भूमिका निभाने के लिए एक बेहतरीन अभिनेता थे। तो वह मेरा सबसे कमजोर समय था, लेकिन उससे भी कुछ बढ़िया निकला।"
मजबूत और स्वतंत्र महिलाओं वाले किरदार चित्रांगदा द्वारा निभाए गए अधिकतर किरदार
मजबूत और स्वतंत्र महिलाओं के रहे हैं। क्या सशक्त महिलाओं की भूमिकाएं निभाना हमेशा से उसका सोचा-समझा निर्णय रहा है, पर वह कहती है, "हां, कभी-कभी आप ऐसे किरदारों की तलाश करती हैं और कभी-कभी वे किरदार आपको खुद ढूंढ लेते हैं उन लोगों के माध्यम से जिन्होंने किरदार लिखा है या उन निर्देशकों के माध्यम से, जो किसी कलाकार को किसी खास बारीकियों के कारण अपनी फिल्म के किरदार के रूप में देखते हैं। मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि वे शक्तिशाली
महिलाएं हैं जो बहुत कमजोर भी हैं। दिलचस्प बात यह है कि मैंने जितने भी किरदार निभाए हैं, वे सभी प्रामाणिक हैं और मुझे उन्हें निभाने में हमेशा मज़ा आया है।"
फिल्म चयन का तरीका
वह फिल्मों की स्क्रिप्ट कैसे चुनती है के बारे में उसका कहना था, "यह ऐसी चीज है, जो किसी एक चीज पर निर्भर नहीं होती। यह लेखन, पात्रों, कहानी और कथा की गुणवत्ता है, लेकिन उससे भी अधिक यह सिर्फ निर्देशक की दृष्टि और उसमें मेरा किरदार क्या कर रहा है, इस पर निर्भर करता है। मेरे किरदार की प्रभावशीलता मुझे मेरी स्क्रिप्ट चुनने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन अगर आप सिनेमा के व्यवसाय को देखें, तो यह इस बात पर भी निर्भर करता' है कि फिल्म का निर्माण कौन कर रहा है और इसे कैसे रिलीज किया जाएगा।"
नहीं सीखी एक्टिंग
पहली फिल्म कैसे मिली, इसे याद करते हुए चित्रांगदा ने बताया, "मैंने अभिनय की पढ़ाई नहीं की है, न कभी थिएटर किया। मुझे लगता है कि यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा संयोग था कि मैं इस फील्ड में आ गई।"
उसने बताया, "मैं दिल्ली में मॉडलिंग कर रही थी। निर्देशक सुधीर मिश्रा 'गीता राव' ('हजारों ख्वाहिशें ऐसी' में उसका किरदार) नामक लड़की की तलाश कर रहे थे, लेकिन उन्हें कोई नहीं मिली। गीतकार स्वानंद किरकिरे, जो उस समय सुधीर के सहायक थे, ऑडिशन ले रहे थे। मेरे साथ काम करने और मुझे एक अच्छा ऑडिशन देने के लिए तैयार करने के लिए मैं उनकी बहुत शुक्रगुजार हूं।"
असहज हो जाती थी
उसने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि वह बहुत खोई हुई महसूस करती थी क्योंकि के. के. मेनन जैसे उसके को-एक्टर्स भावनाओं और किरदार के बारे में बात करते थे। कई बार वह असहज भी फील करती थी क्योंकि वह इस फील्ड से नहीं थी।
उसने कहा, "मैंने एक दिन सुधीर से कहा- मुझे नहीं पता कि क्या करना है और उन्होंने कहा- यह सबसे अच्छी बात है क्योंकि तुम्हें सीन में सिर्फ रिएक्ट करना है, एक्ट नहीं करना। मैं बस उस एक बात पर कायम रही और ऐसा लगा कि मेरे अंदर कोई कमी नहीं है।"
शबाना आजमी ने दी टिप
"मुझे बाद में शबाना आजमी के साथ एक फिल्म में काम करने का मौका मिला और मैं उनके साथ इस पर बात कर रही थी। हम चर्चा कर रहे थे कि मैं एक्टिंग स्कूल नहीं गई हूं या मैंने एक्टिंग की पढ़ाई नहीं की है। इस पर उन्होंने कहा, "एक्टिंग की पढ़ाई करने में समस्या यह है कि पहले आप सीखते हैं और फिर आपको भूलना पड़ता है। तुम तो सबसे अच्छी स्थिति में हो क्योंकि तुमने सीखा नहीं है, तो तुम्हें भूलना भी नहीं पड़ेगा।" मुझे लगता है कि हर कलाकार का अपना तरीका होता है।
source : social media
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