हमारी संस्कृति कहती है कि बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए, सेवा करनी चाहिए लेकिन वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या बताती है कि जीवन संध्या में उन्हें दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है। क्या हमें उनकी आत्मनिर्भरता के स बारे में नहीं सोचना चाहिए ?
वरिष्ठ नागरिक बोझ तो नहीं!
क्या भारत में वरिष्ठ नागरिक होना अपराध है? भारत में सत्तर वर्ष की आयु के बाद वरिष्ठ नागरिक चिकित्सा बीमा के लिए पात्र नहीं हैं, उन्हें ई.एम.आई. पर ऋण नहीं मिलता। ड्राइविंग लाइसैंस नहीं दिया जाता। उन्हें काम के लिए कोई नौकरी नहीं दी जाती, इसलिए वे दूसरों पर निर्भर रहने को मजबूर होते हैं। उन्होंने अपनी युवावस्था में सभी करों का भुगतान किया और वरिष्ठ नागरिक बनने के बाद भी सारे टैक्स चुकाते हैं।
भारत में वरिष्ठ नागरिकों के लिए कोई योजना नहीं है। रेलवे में 50 प्रतिशत की छूट भी बंद कर दी गई है। दुख तो इस बात का है कि राजनीति में जितने भी वरिष्ठ नागरिक हैं, फिर चाहे विधायक हों, सांसद या मंत्री, उन्हें सब कुछ मिलता है और पेंशन भी, लेकिन वरिष्ठ नागरिक पूरी जिंदगी सरकार को विभिन्न प्रकार के टैक्स देते हैं, फिर भी कुछ नहीं मिलता।
सोचिए, - यदि किसी - कारणवश संतान उन्हें न संभाल पाए तो बुढ़ापे में वे कहां जाएंगे ? वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल कौन करेगा ? यह एक भयानक और पीड़ादायक बात है।
यदि परिवार के वरिष्ठ सदस्य नाराज हो जाएं तो क्या इसका असर चुनाव पर पड़ेगा और सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा? क्या वरिष्ठों में सरकार बदलने की ताकत है?
उन्हें कमजोर समझकर नजरअंदाज न करें। वरिष्ठ नागरिकों के जीवन में आने वाली किसी भी तरह की परेशानी से बचने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। सरकार तमाम योजनाओं पर खूब पैसा खर्च करती है, लेकिन यह कभी नहीं महसूस करती कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी एक योजना आवश्यक है।
इसके विपरीत बैंकों में ब्याज दरें घटाकर वरिष्ठ नागरिकों की आय कम कर दी गई। ऐसे में वरिष्ठ नागरिक होना एक अपराध-सा होने लगा है?
बुजुर्गों के लिए इस अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे को एक जन आंदोलन के रूप में खड़ा करने की आवश्यकता है, ताकि केंद्र और सभी प्रदेशों की सरकारें इस. पर सार्थक पहल करें और वरिष्ठ नागरिकों को कुछ राहत मिल सके।
यह भी विडम्बना ही है कि सरकारी - पैंशन पर जीवनयापन करने वाले नेताओं-मंत्रियों ने आम वरिष्ठ नागरिकों - के साथ-साथ तीस से चालीस वर्ष सरकारी कार्यालयों में अपनी सेवाए देने वाले कर्मचारियों की भी पेंशन समाप्त कर उन्हें दर-दर भटकने को - मजबूर कर दिया है।
ई.पी.एफ. पेंशनभोगी, जो जिम्मेदार पदों से सेवानिवृत्त हुए, आज हजार, पन्द्रह सौ रुपए की पैंशन लेकर अपने भविष्य में अंधकार से प्रकाश की ओर आस लगाए हुए हैं कि कब सरकार - अपना दायित्व समझेगी।
ख्वाहिश नहीं, मुझे मशहूर होने की,
आप मुझे 'पहचानते' हो, बस इतना ही 'काफी' है।
Thankyou