शिवभक्त, शक्तिशाली, विद्वान , प्रतिभावान, अंहकारी (अपने समान किसी को न समझने वाला) विधि का लेखा बांचने वाले रावण | श्री लंका मे रामायण की कहानी मे रावण का महिमामंडन बताया जाता है, वहाँ पर रावण ( Ravana ) को खलनायक नहीं बल्कि एक विद्वान पंडित अजेय योद्धा, प्रतिभासंपन्न, वैभवशाली एवं समृद्धिवान व्यक्ति माना जाता है।

श्री लंका निवासी रावण ( Ravana ) के प्रति बहुत श्रद्धा भाव रखते हैं। उदाहरण के लिए एक कथा का प्रसंग देखिए …
श्रीराम चंद्र जी जब समुद्र में सेतुनिर्माण के बाद लंका विजय की कामना से विश्वेश्वर महादेव शिव के लिंग विग्रह स्थापना के अनुष्ठान हेतु वेदज्ञ ब्राह्मण और शैव रावण को आचार्य पद पर वरण करने का विचार किया। रावण Ravana की स्वीकृति के लिए जामवंत जी को रावण Ravana के पास भेजा।रावण ने उनका बहुत सम्मान (महिर्षि पुलस्त्य के सगे भाई वशिष्ठ के यजमान के निमंत्रण के कारण) किया तथा पूछा कि क्या राम लंका विजय हेतु यह अनुष्ठान करना चाहते हैं तो जामवंत ने कहा, बिल्कुल ठीक, उनकी महादेव शिव जी के प्रति बहुत आस्था है, उनकी इच्छा है कि आप आचार्य पद स्वीकार कर अनुष्ठान संपन्न कराएं।आपसे अधिक उपयुक्त महादेव भक्त विद्वान पंडित अन्य कोई नहीं।
तब रावण Ravana ने विचार किया कि जीवन मे पहली बार किसी ने उसे ब्राह्मण माना है और आचार्य योग्य जाना। वशिष्ठ जी के यजमान का आमंत्रण और अपने आराध्य देव के विग्रह की स्थापना को वह अस्वीकार नही करेगा। तब रावण ने जामवंत को स्वीकृति देते हुए कहा कि यजमान उचित अधिकारी हैं अतः अनुष्ठान के लिए आवश्यक सामग्री का प्रबंध करें ।
इसके बाद वनवासी राम के पास आवश्यक पूजा सामग्री का अभाव जानते हुए रावण Ravana ने अपने सेवकों को भी सामग्री के प्रबंध का निर्देश दिया और अशोक वाटिका पहुंच कर सीता जी सब समाचार देते हुए अनुष्ठान में साथ चलने को कहा, विदित हो बिना अर्धांगिनी के गृहस्थ का पूजा अनुष्ठान अपूर्ण रहता है और पूजा अनुष्ठान करवाने वाले आचार्य का भी दायित्व है कि यजमान का अनुष्ठान हर संभव पूर्ण कराए । इसलिए सीता जी को कहा की आप विमान आने पर बैठ जाना और स्मरण रहे वहाँ भी तुम मेरे अधीन रहोगी, पूजा संपन्न होने के बाद वापस लौटने के लिए विमान पर पुनः बैठ जाना। सीता जी ने स्वामी का कार्य समझ कर मौन रही और सीता जी ने स्वामी तथा स्वयं का आचार्य समझ कर हाथ जोड़ कर सिर झुका दिया, रावण ने भी सीता जी को सौभाग्यवती भव कह कर आशीर्वाद दिया।
रावण Ravana के सेतु पर पहुंचने पर राम ने स्वागत करते हुए प्रणाम किया , रावण ने आशीर्वाद देते हुए कहा "दीर्घायु भव, लंका विजयी भव"। इसपर वहाँ सुग्रीव, विभीषण आदि आश्चर्य चकित रह गए।
रावणाचार्य ने भूमि शोधन के उपरांत राम से कहा, यजमान ! अर्धांगिनी कहाँ है उन्हें यथा स्थान दें। श्री राम जी ने मना करते हुए कहा आचार्य कोई उपाय करें। रावण ने कहा यदि तुम अविवाहित, परित्यक्त या संन्यासी होते अकेले अनुष्ठान कर सकते थे, परंतु अभी ये संभव नहीं। एक उपाय यह है कि अनुष्ठान के बाद आचार्य सभी पूजा साधन - उपकरण अपने साथ वापस ले जाते हैं, यदि स्वीकार हो तो यजमान की पत्नी विराजमान है , विमान से बुला लो। श्री राम जी ने इस सर्वश्रेष्ठ युक्ति को स्वीकार करते हुए रावण आचार्य को प्रणाम किया। "अर्ध यजमान के पार्श्व मे बैठो अर्धयजमान" कह कर रावणाचार्य ने कलश स्थापित कर विधिपूर्वक अनुष्ठान कराया। बालू का लिंगविग्रह (हनुमानजी के कैलाश से लिंगविग्रह लाने में बिलंब होने के कारण) बनवा कर शुभ मूहूर्त मे ही स्थापना संपन्न हुई।
पूजा अनुष्ठान के बाद रावण ने अपनी दक्षिणा की मांग की तो सभी उपस्थित लोग चौकें,रावण के शब्दों में "घबरायें नही यजमान, स्वर्ण पुरी के स्वामी की दक्षिणा सम्पत्ति तो नही हो सकती" आचार्य जानते हैं कि यजमान की स्थिति वर्तमान में बनवासी की है। श्री राम ने फिर भी आचार्य की दक्षिणा पूर्ण करने की प्रतिज्ञा की। रावण ने कहा "मृत्यु के समय आप आचार्य के समक्ष हो यजमान"
श्री राम जी ने प्रतिज्ञा पूर्ण करते हुए शिवभक्त, शक्तिशाली, विद्वान , प्रतिभावान, अंहकारी ( अपने समान किसी को न समझने वाला ) विधि का लेखा बांचने वाले रावण के मृत्यु शैय्या ग्रहण करने पर सामने उपस्थित रहे।
रावण के अच्छे गुण
एक दुष्ट और अभिमानी राजा होने के साथ-साथ रावण महाज्ञानी और एक महान पंडित भी था. तमाम विद्याओं का जानकार रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला में पारंगत था. उसे तमाम तरह की तंत्र विद्याएं आती थीं. वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन आदि का अच्छा जानकार था.
- रावण एक प्रकांड पंडित और महादेव का बहुत बड़ा भक्त था.
- रावण एक कुशल व्यापारी, कुशल राजनीतिज्ञ, महायोद्धा, चित्रकार, और संगीतज्ञ था.
- रावण ने ही शिव तांडव स्त्रोत की रचना की थी.
- रावण ने प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, रावणीयम नाड़ी परीक्षा जैसे कई ग्रंथों की रचना की.
- रावण एक विद्वान राजा था. उसके राज्य में अस्पताल, गुरुकुल, और बहुत सी सुविधाएं निःशुल्क थीं.
- रावण एक बलशाली योद्धा था और चारों वेदों का ज्ञाता था.
- रावण धर्म कर्म में निपुण था.
- रावण सुशिक्षित था और अत्यंत बुद्धिमान माना जाता था.
- रावण को छह शास्त्रों और चार वेदों का ज्ञान था.
रामायण के प्रमुख पात्रों में से एक लंकापति रावण के बारे में कुछ खास बातेंः
- रावण को कई नामों से जाना जाता है, जैसे कि दशानन, लंकेश, दसकंठी:
- रावण के दस सिर होने के कारण उसे दशानन कहा जाता था.
- रावण छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था, इसलिए उसे दसकंठी भी कहा जाता था.
- सोने की लंका के स्वामी होने के कारण उसे लंकेश या लंकापति भी कहा जाता था.
रावण के बारे में कुछ और खास बातेंः
- रावण, ऋषि विश्रवा और कैकसी का पुत्र था.
- रावण के पिता ऋषि विश्रवा थे और दादा ऋषि पुलस्त्य, ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में से एक थे.
- रावण एक परम शिव भक्त था और मंदिरों में अक्सर शिव के साथ उसकी मूर्तियां देखी जाती हैं.
- रावण ने राम की पत्नी सीता का अपहरण किया था और उसे अपने राज्य लंका ले गया था.
- रावण का विवाह मंदोदरी से हुआ था.
- रावण के तीन भाई थे - कुंभकर्ण, विभीषण, और अहिरावण.
- रावण की दो बहनें थीं - सूर्पनखा और कुंभ्भिनी.
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