
* प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठना और भगवान का स्मरण करना चाहिए।
* शौच, स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान की उपासना, संध्या तर्पण आदि करें।
* समय पर सात्विक भोजन करें।
* प्रतिदिन प्रातःकाल माता-पिता, गुरु आदि बड़ों को प्रणाम करें।
* इंद्रियों के वश न होकर उनको वश में करके उनसे यथायोग्य काम लें।
* धन कमाने में छल, कपट, चोरी, असत्य और बेईमानी का त्याग कर अपनी कमाई के धन में यथा योग्य सभी का अधिकार समझना चाहिए।
* माता-पिता, भाई-भाभी, बहन-बुआ, सभी का परिवार में आदर करें।
* अतिथि का सच्चे मन से सत्कार करें।
* अपनी शक्ति अनुसार दान और पड़ोसियों तथा ग्रामवासियों की सत्कारपूर्वक सेवा करें।
* अपने सभी कर्म बड़ी सुंदरता, सफाई और नेक नीयती से करें।
* किसी का अपमान, तिरस्कार और अहित कभी नहीं करना चाहिए।
* अपने मन, वचन और शरीर से पवित्र, विनयशील एवं परोपकारी बनें।
* विलासिता से बचकर रहें, अपने लिए खर्च कम करना चाहिए।
* स्वावलम्बी बनकर रहें। अपने जीवन का भार दूसरे पर न डालें।
* अकर्मण्य कभी नहीं रहना चाहिए।
* अन्याय का पैसा, दूसरे के हक का पैसा, घर में न आने पाए, इसका पूरा ध्यान रखें।
* सब कर्मों को भगवान की सेवा के भाव से, निष्काम भाव से करने की चेष्टा करें।
* जीवन का लक्ष्य भगवत्प्राप्ति है, भोग नहीं। इस निश्चय से कभी न डिगें और सब काम इसी लक्ष्य की साधना के लिए करें।
* किसी के घर में जिधर स्त्रियां रहती हों (जनाने में) नहीं जाना चाहिए। अपने घर में भी स्त्रियों को किसी प्रकार से सूचना देकर जाना चाहिए।
* भूल से अपना पैर या धक्का किसी को लग जाए तो उससे क्षमा मांगें।
* रास्ता भूले व्यक्ति को ठीक रास्ते पर डाल देना चाहिए, चाहे ऐसा करने में स्वयं को कष्ट क्यों न हो।
* दूसरों की सेवा ईनाम की लालसा से नहीं, निष्काम भाव से करने से ही किसी भी व्यक्ति को सच्ची शांति प्राप्त हो सकती है।
* भगवत प्रार्थना के समय आंखें बंद रख कर मन को स्थिर रखने की चेष्टा करें और उस समय 'भगवान के चरणों में बैठा हूं 'ऐसी भावना अवश्य होनी चाहिए।
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