बच्चों के बारे में यह कहा जाता है कि वे गीली मिट्टी की तरह होते हैं, उन्हें किस आकार व प्रकार में ढालना है, यह उनके माता-पिता पर निर्भर करता है। बच्चे अपने बड़ों को देखकर स्वयं भी उसी तरह चलने का प्रयास करते हैं। ऐसे में माता-पिता की जिम्मेदारो होती है कि बच्चों को सही से समझाया जाए, ताकि वे जिदगी में गलत राह पर न चल पड़ें।

दूसरों की बातें सुनना:
कमोबेश हर घर में आजकल यह देखा जा सकता है कि बच्चों को पड़ोसियों या घर- परिवार के लोगों की जासूसी करने को कहा जाता है। आपके ऐसा सिखाने से बच्चों के दिमाग पर नकारात्मकता हावी होने लगती है। इसलिए जरूरी है कि बड़ों की बातों में बच्चों को न घसीटें ।
किसी भी तरह जीतना :
सभी पेरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे सबसे आगे रहें, लेकिन जीतने की स्किल्स के अलावा बच्चों को मोरल वैल्यू भी जरूर सिखाएं। बच्चों को सिखाएं कि हैल्दी कॉम्पिटीशन क्या होता है। बच्चों को जीतने के सही तरीके तो जरूर बताएं, गलत नहीं।
जिम्मेदारियों को लेकर डर :
बच्चों के साभने कभी भी पैसों और बीमारी की बात न करें। ऐसा करके माता-पिता अपने डर को बच्चों में ट्रांसफर करते हैं। कई बार इससे बच्चों पर बोझ पड़ता है क्योंकि बच्चे भी फिर इसे लेकर काफी टेंशन लेने लगते हैं, जिसे हैंडल करना उनके बस की बात नहीं होती।
किसी को कम समझना :
बच्चों में कभी भी किसी बच्चे या अन्य व्यक्ति को लेकर जहर न भरें। उन्हें किसी भी तरह का भेदभाव न सिखाएं। ऐसा करने से बच्चे दूसरों को अपने से कम समझने लग जाते हैं।
दूसरों की बुराई :
कई बार लोग गुस्से में आकर बच्चों के सामने ही किसी की भी या अपने पार्टनर या फैमिली मैम्बर की बुराई करते समय यह भूल जाते हैं कि बच्चा जितना आपके साथ रहता है, उतना ही बाकी लोगों के साथ भी समय गुजारता है।
ऐसे में आपकी बातों से वह खुद को दो अलग- अलग हिस्सों में बंटा हुआ महसूस करने लगता है। कई बार इससे बच्चे उन लोगों से नफरत करने लगते हैं जिनकी आप उनसे बुराई करते हैं।
आगे पढ़िए . . . क्यों आपको अपने बच्चों के सामने नहीं लड़ना चाहिए ?
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