गणतंत्र दिवस Republic Day , भारत में सबसे अद्भुत और गर्वान्वित महोत्सवों में से एक है। इस दिन, भारतीय समाज अपने स्वतंत्रता और सामंजस्यपूर्णता की महक लेता है। गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को मनाया जाता है तथा यह एक सार्वजनिक अवकाश है, जो भारतीयों को इस महत्वपूर्ण दिन को ध्यान में रखने का अवसर प्रदान करता है। इस निबंध में, हम भारतीय गणतंत्र दिवस के महत्व, इतिहास, और आयोजन की बात करेंगे।
भारतीय गणतंत्र दिवस Republic Day of India का इतिहास:
गणतंत्र दिवस का आयोजन 26 जनवरी 1950 को हुआ था, जब भारत ने अपना संविधान लागू किया और सशक्त गणराज्य की स्थापना की गई थी। इस दिन को भारतीय गणतंत्र दिवस के रूप में चुना गया, और यह दिन भारतीय गणराज्य के गठन की शपथ ग्रहण करने के लिए चयन किया गया। इस समय, भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की थी, और स्वतंत्रता के बाद गणराज्य की स्थापना के लिए काम कर रहा था।
गणतंत्र दिवस Republic Day के उत्सव:
भारतीय गणतंत्र दिवस Republic Day of India का आयोजन बहुत सारे उत्सवों और आयोजनों के साथ होता है, जो देशभर में सभी लोगों को एक साथ लाते हैं। सुबह की शुरुआत परेड के साथ होती है, जिसमें भारतीय सेना, नौसेना, और वायुसेना के सैनिकों का समर्थन किया जाता है। इसके बाद, राष्ट्रपति ने दिल्ली के इंडिया गेट के पास रखे विशेष शृंगार द्वारा संविधान की रक्षा की शपथ ली जाती है। इसके पश्चात्तुरंगा झंडा और राष्ट्रगान के साथ समारोह का समापन होता है।
गणतंत्र दिवस Republic Day का महत्व:
गणतंत्र दिवस का महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि यह दिन भारतीय गणराज्य के गठन का स्मरण है। इस दिन लोग देशभर से एक साथ आकर्षित होते हैं और अपने राष्ट्रीय भावनाओं को उजागर करते हैं। समाज में इस दिन को खास उत्साह के साथ गुजारा जाता है, और लोग देश के उन मूल्यों को स्वीकार करते हैं जिनपर यह गणराज्य आधारित है।
गणतंत्र दिवस Republic Day का संदेश:
गणतंत्र दिवस भारतीय समाज को यह सिखाता है कि स्वतंत्रता का अर्थ नहीं सिर्फ स्वतंत्रता है, बल्कि इसमें एक सशक्त, समृद्ध, और सामंजस्यपूर्ण गणराज्य की रचना शामिल है। गणतंत्र दिवस का संदेश है कि सभी नागरिकों को अपने देश के उच्चतम आदर्शों का समर्थन करना चाहिए और समृद्धि और समाज में सामंजस्य की बढ़ती आवश्यकता है।
'संविधान निर्माण´ में महिलाओं का अहम योगदान
देश की आजादी में ही नहीं, बल्कि देश का संविधान बनाने में भी महिलाओं का अहम योगदान रहा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि 15 महिलाएं भारत की संविधान सभा की सदस्य थीं। तो आएं इस बार 26 जनवरी को इन महान महिलाओं एवं उनके योगदान को याद करते हैं। सरोजिनी नायडू सरोजिनी नायडू पहली भारतीय महिला थीं, जिन्हें भारतीय नैशनल कांग्रेस की अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ। भारत की नाइटिंगेल के नाम से लोकप्रिय सरोजनी नायडू एक प्रगतिशील महिला थीं। उन्होंने लंदन के किंग्स कॉलेज से पढ़ाई की थी तथा महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थीं और उनके कई आंदोलनों से जुड़ी भी रही थीं। विजय लक्ष्मी पंडित वह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। साल 1932 से 1933, फिर 1940 और साल 1942 से 1943 तक अंग्रेजों ने उन्हें जेल में बंद किया था। साल 1936 में वह संयुक्त प्रांत की असेंबली के लिए चुनी गईं और 1937 में स्थानीय सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री बनीं। इस पद पर कार्य करने वाली वह पहली महिला थीं। राजकुमारी अमृत कौर राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी, 1889 में उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ में हुआ था। स्वतंत्रता की लड़ाई में इनका अहम योगदान रहा। आजादी के बाद यह प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट में देश की पहली महिला कैबिनेट मिनिस्टर बनीं। उन्हें हैल्थ मिनिस्टर बनाया गया था। वह संविधान सभा की सलाहकार समिति एवं मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं। दुर्गाबाई देशमुख दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई, 1909 को आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में हुआ था। उन्होंने न केवल देश को आजाद कराने में, बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति बदलने के लिए भी लड़ाई लड़ी। भारत के दक्षिणी इलाकों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इन्होंने बालिका हिन्दी पाठशाला भी शुरू की। दुर्गाबाई 12 साल की छोटी-सी उम्र में असहयोग आंदोलन का हिस्सा बनीं । वकील होने के नाते उन्होंने संविधान के कानूनी पहलुओं में योगदान दिया। हंसा मेहता हंसा मेहता समाज सेविका एवं स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ कवयित्री ' एवं लेखिका भी थीं। वह संविधान सभा की मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं। उन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा में 'ऑल मैन आर बोर्न फ्री एंड इक्वल' को बदल कर 'ऑल ह्यूमन बीइंग आर बोर्न फ्री एंड इक्वल' करवाने के अभियान के लिए भी जाना जाता है। बेगम ऐजाज रसूल 1908 में पंजाब के संगरूर जिले में जन्मी बेगम ऐजाज अपने पति नवाब रसूल के साथ अल्पसंख्यक समुदाय की महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञ बन कर उभरीं एवं मुस्लिम लीग की सदस्य थीं। वह संविधान सभा की अकेली मुस्लिम महिला सदस्य थीं। वह सभा की मौलिक अधिकारों की सलाहकार समिति एवं अल्पसंख्यक उपसमिति की सदस्य थीं। अम्मू स्वामीनाथन अम्मू स्वामीनाथन एक सामाजिक कार्यकर्त्ता, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थीं। संविधान सभा में यह मद्रास की प्रतिनिधि थीं। वह महात्मा गांधी के नक्शे कदम पर चलना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लिया। दक्श्यानी वेलायुद्धन वह एक दलित समुदाय से आई और विज्ञान में स्नातक करने वाली भारत की पहली दलित महिला थीं। वह संविधान सभा की अकेली दलित महिला सदस्य थीं। संविधान के निर्माण के दौरान दक्श्यानी ने दलितों से जुड़ी कई समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया था। कमला चौधरी उन्होंने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया। वह एक प्रसिद्ध कथा लेखिका भी थीं और उनकी कहानियां आमतौर पर महिलाओं के अधिकारों पर ही आधारित होती थीं। ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के 54वें सैशन में वह उपाध्यक्ष बनीं और 1970 के आखिरी दशकों में वह लोकसभा तक भी पहुंचीं। लीला रॉय लीला रॉय ने शुरू से ही महिला अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की। वह सुभाषचंद्र बोस की महिला सब-कमेटी की सदस्य भी रहीं। संविधान निर्माण में उन्होंने महिला के अधिकारों की बात जम कर उठाई। मालती चौधरी गरीबों की मसीहा कही जाने वाली मालती चौधरी सत्याग्रह सहित कई आंदोलनों से जुड़ी रहीं। 1934 में वह गांधी जी की पदयात्रा में उनके साथ जुड़ीं। कमजोर समुदायों के विकास के लिए उन्होंने आवाज बुलंद की। एनी मासकारेन, सुचेता कृपलानी, पूर्णिमा बनर्जी और रेणुका रे संविधान सभा की अन्य सदस्य थीं।समापन:
गणतंत्र दिवस भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो देश के संविधानिक गणराज्य की महत्वपूर्ण ऊंचाइयों को दिखाता है। यह एक ऐसा अवसर है जिसमें भारतीय समाज अपने देश के प्रति अपने विशेष भावनाओं को व्यक्त करता है और समृद्धि, सामंजस्यपूर्णता, और स्वतंत्रता के आदर्शों की ओर अग्रसर होता है। गणतंत्र दिवस का यह महत्वपूर्ण संदेश हमें यहाँ से लेकर दुनिया के हर कोने में गुमान कराता है कि भारत एक सशक्त और समृद्ध गणराज्य के रूप में उभरा है और इसकी उज्जवल भविष्य धारावाहिक है।
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