ज्वालामुखी पृथ्वी के भू-पटल पर स्थित वह स्थान है, जहां से गर्म गैसें, पिघली चट्टानें भू-पटल से ऊपर उठती हैं। वॉल्केनोज यानी "ज्वालामुखियों का नामकरण रोमन अग्नि देवता 'वल्कन' के नाम पर किया गया है। रोमवासियों का मानना था कि 'वल्कन' भूमध्य सागर में स्थित 'वल्केनो' में एक द्वीप के नीचे रहते हैं। उस समय मान्यता थी कि वे जब देवताओं के लिए हथियार बनाते हैं तब धरती कांपती हैं और द्वीप बनते हैं। प्रस्तुत है ज्वालामुखी के बारे में रोचक जानकारी।
पृथ्वी के नीचे की ऊर्जा, यानी जियो थर्मल एनर्जी की वजह से वहां मौजूद पत्थर पिघलते हैं। जब जमीन के नीचे से ऊपर की ओर दबाव बढ़ता है, तो पहाड़ ऊपर से फटता है और ज्वालामुखी कहलाता है। ज्वालामुखी के नीचे पिघले हुए पत्थरों और गैसों को मैग्मा कहते हैं। ज्वालामुखी के फटने के बाद जब यह बाहर निकलता है तो लावा कहलाता है।
पर्वतों के शिखर से लावा
किसी भी ज्वालामुखी का विवरण अक्सर पर्वतों के शिखर से उगलती हुई आग से होता है, कोई भी ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह के नीचे से गर्म, राख , तरल चट्टानों और गैसों के रूप में धरती की ऊपरी सतह से अचानक नहीं निकलता, ये पदार्थ पर्वतों या पर्वत समान दरारों से काफी समय बीतने पर निकलते हैं।
ज्वालामुखी के शीर्ष पर एक गड्ढा पाया जाता है, क्रेटर कहलाने वाले इस गड्ढे का आकार कटोरीनुमा होता है। प्रत्येक ज्वालामुखी के विस्फोट का एक विशिष्ट इतिहास होता है, फिर भी अधिकतर ज्वालामुखियों को उनकी विस्फोट की शैली और उनके निर्माण के आधार पर तीन समूहों में रखा गया है।
सक्रिय ज्वालामुखी
जिस ज्वालामुखी से नियमित रूप से लावा निकलता रहता है या उसके संकेत (गड़गड़ाहट, थरथराहट) मिलते रहते हैं, उसे सक्रिय ज्वालामुखी कहा जाता है। एक ज्वालामुखी तब तक सक्रिय रहता है, जब तक उसमें मैग्मा का भंडार होता है।
प्रसुप्त ज्वालामुखी
ऐसे ज्वालामुखी, जिनमें इतिहास में लावा निकलता रहा है लेकिन वर्तमान में सक्रिय नहीं हैं, हल्के भूकम्प और गर्म सोते या झरने द्वारा अपनी गतिविधियों का संकेत दे सकते हैं। प्रसुप्त ज्वालामुखी में मैग्मा तो होता है, लेकिन उसमें कोई हलचल नहीं होती ।
बुझा हुआ ज्वालामुखी
ऐसे ज्वालामुखी, जिनसे लंबे समय से लावा बाहर नहीं निकला हो, वैज्ञानिकों द्वारा जिनसे फिर कभी लावा निकलने को असंभव माना जाता है। कोई भी ज्वालामुखी बुझा हुआ तब कहलाता है, जब पूरा मैग्मा बाहर निकल जाए या ठंडा होकर चट्टानों में बदल जाए।
अन्य ग्रहों पर भी ज्वालामुखी
पृथ्वी के अलावा अंतरिक्ष में जीवन को तलाशने के दौरान इस बात का पता चला कि पृथ्वी के समान अन्य ग्रहों पर भी ज्वालामुखी हो सकते हैं। चांद पर देखे गए अंधकारमय भू-खंड मारिया पर क्षुद्र चंद्र घाटियों और गुंबदी ज्वालामुखियों की उपस्थिति की संभावना व्यक्त की गई है।
माना जाता है कि शुक्र ग्रह की सतह के आकार निर्धारण में ज्वालामुखी सक्रियता की भूमिका है। नासा के मेजैलेन अंतरिक्ष यान (1990-1994) द्वारा लिए गए शुक्र ग्रह की सतह के चित्रों के विश्लेषण से पता लगता है कि इसकी अधिकतर सतह ज्वालामुखी पदार्थों से बनी है। इसके अलावा मंगल, बृहस्पति, वरुण और शनि ग्रह पर भी ज्वालामुखी के संकेत मिले हैं।
वायुमंडल का निर्माण
पृथ्वी की सतह का 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा ज्वालामुखियों के फटने का नतीजा है। माना जाता है कि ज्वालामुखी से निकली गैसों से वायुमंडल की रचना हुई। दुनिया भर में अभी 500 से ज्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हैं, इनमें से आधे से ज्यादा 'रिंग ऑफ फायर' का हिस्सा हैं। यह प्रशांत महासागर के चारों ओर हार जैसा है, इसलिए इसे 'रिंग ऑफ फायर' कहते हैं।
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