Raja Bali राजा बलि का घमंड चूर करने के लिए दो पग में धरती और स्वर्ग नापने वाले 'भगवान वामन' : एक समय की बात है- युद्ध में इन्द्र से हारकर दैत्यराज बलि गुरु शुक्राचार्य की शरण में गए। कुछ समय बाद गुरु कृपा से Raja Bali राजा बलि ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।

Raja Bali राजा बलि
भगवान ने प्रकट होकर व्रत के अंतिम दिन अदिति से कहा, "देवि ! चिन्ता मत करो। मैं तुम्हारे पुत्र रूप में जन्म लूंगा। इन्द्र का छोटा भाई बनकर उनका कल्याण करूंगा।" यह कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए। आखिर वह शुभ घड़ी आ ही गई। अदिति के गर्भ से भगवान ने वामन के रूप में अवतार लिया। भगवान को पुत्र रूप में पाकर अदिति की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। भगवान को वामन ब्रह्मचारी के रूप में देखकर देवताओं और महर्षियों को बड़ा आनंद हुआ। उन लोगों ने कश्यप को आगे करके भगवान का उपनयन आदि संस्कार करवाया।
उसी समय भगवान ने सुना कि Raja Bali राजा बलि भृगुकच्छ नामक स्थान पर अश्वमेध यज्ञ कर रहे हैं। उन्होंने वहां के लिए यात्रा की। भगवान वामन कमर में मूंजकी मेखला और यज्ञोपवीत धारण किए हुए थे। बगल में मृगचर्म था। सिर पर जटा थी। इसी प्रकार बौने ब्राह्मण के वेष में अपनी माया से ब्रह्मचारी बने हुए भगवान ने बलि के यज्ञ मंडल में प्रवेश किया। उन्हें देखकर बलि का हृदय गद्गद हो गया। उन्होंने भगवान को एक उत्तम आसन दिया। बलि ने नाना प्रकार से भगवान वामन की पूजा की।
उसके बाद Raja Bali राजा बलि ने प्रभु से कुछ मांगने का अनुरोध किया। उन्होंने तीन पग भूमि मांगी। शुक्राचार्य प्रभु की लीला समझ रहे थे। उन्होंने दान देने से बलि को मना किया। बलि नहीं माना। उसने संकल्प लेने के लिए जल पात्र उठाया।
शुक्राचार्य अपने शिष्य का हित सोचकर पात्र में प्रवेश कर गए। जल गिरने का स्तर रुक गया। भगवान ने एक कुश उठाकर पात्र के छेद में डाल दिया। उनकी एक आंख फूट गई। बलि का संकल्प पूरा होते ही भगवान वामन ने एक पग में पृथ्वी और दूसरे में स्वर्ग नाप लिया। तीसरे पग में Raja Bali राजा बलि ने अपने आपको ही सौंप दिया।
बलि के इस समर्पण भाव से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक (पाताल का एक हिस्सा) का राज्य दे दिया। इन्द्र को स्वर्ग का स्वामी बना दिया।
कहा जाता है कि भगवान वामन द्वारपाल के रूप में Raja Bali राजा बलि को और उपेंद्र के रूप में इन्द्र को नित्य दर्शन देते हैं।
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