Deepawali Pujan | पूजा करने के सही नियम : काष्ठ, पत्थर, सोना या अन्य धातु की मूर्तियों की प्रतिष्ठा घर या मंदिर में करनी चाहिए। घर में चल प्रतिष्ठा और मंदिर में अचल प्रतिष्ठा करनी चाहिए।
सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु- ये पंचदेव कहे गए हैं। इनकी पूजा सभी कार्यों में करनी चाहिए। कल्याण चाहने वाले गृहस्थ एक मूर्ति की ही पूजा न करें, अनेक देवमूर्ति की पूजा करें। इससे कामना पूरी होती है। किंतु घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य, तीन दुर्गा मूर्ति, दो गोमती चक्र और दो शालिग्राम की पूजा करने से गृहस्थ मनुष्य को अशांति होती है। शालिग्राम की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होती। बाणलिंग तीनों लोकों में विख्यात हैं, उनकी प्राण-प्रतिष्ठा संस्कार या आवाहन, कुछ भी नहीं होता। पत्थर, काष्ठ, सोना या अन्य धातु की मूर्तियों की प्रतिष्ठा घर या मंदिर में करनी चाहिए। घर में चल प्रतिष्ठा और मंदिर में अचल प्रतिष्ठा करनी चाहिए। यह कर्मज्ञानी मुनियों का मत है। गंगा जी, शालिग्राम शिला और शिवलिंग में सभी देवताओं का पूजन बिना आवाहन-विसर्जन किया जा सकता है।
तुलसीदल का चुनाव
तुलसी का एक-एक पत्ता न तोड़कर पत्तियों के साथ अग्रभाग को तोड़ना चाहिए। तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मंजरी तोड़ते समय उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक माना गया है। वैधृति और व्यतीपात योगों, मंगल, शुक्र और रविवार को, द्वादशी, अमावस्या एवं पूर्णिमा तिथियों तथा संक्राति, जननाशौच एवं मरणाशौच में तुलसीदल तोड़ना मना है। संक्राति, अमावस्या, द्वादशी, रात्रि और संध्याओं में भी तुलसीदल न तोड़ें। तुलसी के बिना भगवान की पूजा पूरी नहीं मानी जाती, इसलिए निषिद्ध समय में तुलसी वृक्ष से स्वयं गिरी हुई पत्तियों से पूजा करें। शालिग्राम की पूजा के लिए निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी तोड़ी जा सकती है। बिना स्नान के और जूता पहनकर तुलसी न तोड़ें।
बिल्वपत्र तोड़ने का निषिद्ध काल
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथियों को, संक्राति के समय और सोमवार को बिल्वपत्र न तोड़ें। बिल्वपत्र शिव जी को बहुत प्रिय है, इसलिए निषिद्ध समय में पहले दिन का रखा बिल्वपत्र चढ़ाना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि यदि नूतन बिल्वपत्र न मिल सके तो चढ़ाए हुए बिल्वपत्र को धोकर बार-बार चढ़ाया जा सकता है।
बासी जल, फूल का निषेध
जो फूल, पत्ते और जल बासी हो गए हों, उनको देवताओं पर न चढ़ाएं। तुलसी जल, गंगा जल, तीर्थों का जल बासी नहीं होता। वस्त्र, यज्ञोपवीत और आभूषण में भी निर्माल्य दोष नहीं आता। माली के घर रखे फूलों में बासी दोष नहीं आता। दौना तुलसी की ही तरह का पौधा होता है। भगवान विष्णु को यह प्रिय है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि दौना की माला भगवान को इतनी प्रिय है कि वे इसे सूख जाने पर भी स्वीकार लेते हैं। मणि, रत्न, सुवर्ण, वस्त्र आदि से बनाए गए फूल बासी नहीं होते। इनको प्रोक्षण कर चढ़ाना चाहिए।

कैसे रखें पूजा सामग्री?
पूजन की किस वस्तु को किधर रखना चाहिए, इस बात का भी शास्त्रों ने निर्देश दिया है। इसके अनुसार, वस्तुओं को यथास्थान सजा देना चाहिए।
■ बाई ओर : सुवासित जल से भरा उदकुंभ (जलपात्र), घंटा, धूपदानी, तेल का दीपक ।
■ दाहिनी ओर : घृतका दीपक, सुवासित जल से भरा शंख।
■ सामने : कुमकुम, केसर और कपूर के साथ घिसा गाढ़ा चंदन, पुष्प आदि हाथों में तथा चंदन ताम्रपात्र में न रखें।
■ भगवान के आगे : चौकोर जल का घेरा डालकर नैवेद्य की वस्तु रखें।
■ पुष्पादि चढ़ाने की विधि : फूल, फल और पत्ते जैसे उगते हैं, वैसे ही उनको चढ़ाना चाहिए। उत्पन्न होते समय उनका मुख ऊपर की ओर होता है, इसलिए चढ़ाते समय उनका मुख ऊपर की ओर ही रखना चाहिए। दूर्वा और तुलसीदल को अपनी ओर, बिल्वपत्र को नीचे मुखकर चढ़ाना चाहिए। दाहिने हाथ के करतल को उत्तान कर मध्यमा, अनामिका और अंगूठे की सहायता से फूल चढ़ाना चाहिए।
■ उतारने की विधि : चढ़े फूलों को अंगूठे और तर्जनी की सहायता से उतारना चाहिए।
श्री लक्ष्मी जी की आरती Laxmi Aarti
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ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु धाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
तुम पाताल-निवासिनी, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ।।
ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
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