हिन्दू धर्म में करवा चौथ का त्यौहार बेहद अहम है, जिसे कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर मनाया जाता है। इस व्रत में चौथ मैया की पूजा भी की जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
चौथ माता को माता पार्वती का ही एक रूप माना जाता है। देश में चौथ माता का एकमात्र प्राचीन और सुप्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में 'चौथ का बरवाड़ा' नामक स्थान में है। माता का भव्य मंदिर इसी छोटे से शहर के शक्तिगिरी पर्वत पर बना हुआ है।

'चौथ माता' का मंदिर, जहां रहस्यमय तरीके से जलती है अखंड ज्योत
सनातन धर्म में करवाचौथ के पर्व को बेहद अहम माना जाता है। हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर करवाचौथ का त्यौहार मनाया जाता है। इस व्रत में चौथ मैया की पूजा की जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है। देश में चौथ माता का प्राचीन और सुप्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर में है।
सनातन धर्म के प्रमुख देवी-देवताओं में चौथ माता का एक महत्वपूर्व स्थान है। चौथ माता को माता पार्वती का ही एक रूप माना गया है, जिनका एकमात्र मंदिर सवाई माधोपुर में एक हजार फुट से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित है। यूं तो हर महीने की चतुर्थी पर भक्तों का रेला लगा रहता है, लेकिन करवा चौथ पर मेले में श्रद्धालुओं का भारी तांता लग जाता है।


यूं तो हर माह की चतुर्थी पर मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटती रहती है, लेकिन करवा चौथ पर लगने वाले मेले में श्रद्धालुओं का भारी तांता लगा रहता है।
चौथ माता की कहानी / चौथ माता की कथा Chauth Mata ki kahani / Chauth Mata ki katha
मंदिर का इतिहास साल 1451 में राजा भीम सिंह ने चौथ माता मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि राजा भीम सिंह एक बार संध्या में शिकार पर निकल रहे थे। इसी दौरान उनकी रानी रत्नावली ने उन्हें रोका तो उन्होंने कहा कि एक बार चौहान घोड़े पर सवार होने पर शिकार करने के बाद ही उतरता है, यह कह कर राजा भीम सिंह कुछ सैनिकों के साथ जंगल की ओर रवाना हो गए।
जंगल में उन्हें एक मृग दिखाई दिया, जिसका वह पीछा करने लगे लेकिन काफी देर पीछा करने के बाद वह गायब हो गया। सैनिक भी रास्ता भटक कर उनसे अलग हो चुके थे। राजा व्याकुल हो उठा और प्यास से बेचैन हो गया। काफी ढूंढने के बाद भी उन्हें कहीं पानी नहीं मिला और वह मूच्छित होकर घने जंगल में ही गिर पड़े। इस दौरान उन्हें पचाला तलहटी में चौथ माता की प्रतिमा दिखाई दी। तेज बारिश के साथ जब उन्हें होश आया तो उनके चारों ओर पानी ही पानी था। सबसे पहले उन्होंने पानी पिया। इस दौरान उनकी नजर घने जंगल में खेलती हुई एक छोटी बच्ची पर पड़ी। राजा भीम सिंह ने उसके पास पहुंच कर उससे पूछा कि यहां अकेले क्या कर रही हो तो बच्ची ने कहा कि यह बताएं कि आपकी प्यास बुझी या नहीं।
इसी के साथ उस बच्ची ने देवी का रूप ले लिया। राजा तुरंत उनके चरणों में गिर गए और कहा कि हे माता, मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, बस इतनी इच्छा है कि आप मेरे राज्य में वास करें।
इसके बाद उनकी प्रतिमा पर्वत पर स्थापित की गई। 1463 में मंदिर मार्ग पर छतरी और तालाब का निर्माण कराया गया।
करवा चौथ पर लगता है खास मेला
चौथ माता के मंदिर में नवरात्रि के अलावा करवा चौथ के मौके पर खास मेला लगता है, जब देशभर से दर्शन करने के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं।
अखंड ज्योति / Chauth Mata ki Akhand Jyoti
पिछले कई सौ साल से मंदिर में एक अंखड ज्योति जल रही है। इसका रहस्य आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है।
शुभ काम का पहला निमंत्रण माता को
स्थानीय लोगों में इस की मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि शादी की रस्में चौथ माता के दर्शन के बाद ही पूरी होती हैं। नवविवाहित दुल्हन अखंड सौभाग्यवती होने के साथ-साथ अपने पति की रक्षा की प्रार्थना भी करती है।
हर शुभ काम से पहले आस-पास के गांवों में रहने वाले लोग चौथ माता के मंदिर में आकर उन्हें पहला निमंत्रण देते हैं। चौथ माता राजस्थान के बूंदी राजघराने की कुलदेवी भी हैं।

चौथ माता की आरती / Chauth Mata ki aarti
जानिये करवा चौथ की कथा क्या है?
.... और देखें : भारत के प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर – Historical Temples of India
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