ओंकारेश्वर में बनेगा 'अद्वैतलोक' होंगे भारत की समृद्ध स्थापत्य शैलियों के दर्शन :भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर की महिमा कौन नहीं जानता । शिव पुराण के अनुसार इसे परमेश्वर लिंग के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस चतुर्थ ज्योतिर्लिंग में बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती रोज रात्रि विश्राम के लिए आते हैं और पृथ्वी पर यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव-पार्वती रोज पांसे खेलते हैं।

आदि शंकराचार्य की ज्ञान स्थली ओंकारेश्वर का जल्द ही कायाकल्प होने जा रहा है। 18 सितम्बर को 'शंकरावतरणं' में आदि शंकराचार्य की 108 फुट ऊंची प्रतिमा के अनावरण के साथ ही 'अद्वैतलोक' का शिलान्यास होना है।
'अद्वैतलोक' नामक यह संग्रहालय नर्मदा व कावेरी की ओर मुख किए ओंकारेश्वर के मांधाता पर्वत पर बनेगा। इसमें लोग सिद्धस्थ व समर्पित कारीगरों की कला के साथ-साथ भारतवर्ष की मनोरम, समृद्ध स्थापत्य कला का अनुभव कर पाएंगे। यदि एकात्म धाम की स्थापत्य शैली की बात की जाए तो यह विविध क्षेत्रों के स्थापत्य कलाओं की पुरातात्विक शैली से प्रेरित रहेगी। इसका निर्माण नागर शैली में किया जाएगा। यहां आचार्य शंकराचार्य के जीवन प्रसंगों को भित्तिचित्रों, मूर्तियों के माध्यम से चित्रित किया जाएगा।
शोध के लिए बनेंगे चार केंद्र
इसके अलावा यहां' अद्वैत दर्शन' पर शोध के लिए चार केंद्र भी स्थापित किए जाने की योजना है। ये केंद्र आदि गुरु शंकराचार्य के चार शिष्यों के नाम पर आधारित होंगे जो हैं-
- अद्वैत वेदान्त आचार्य पद्मपाद केंद्र,
- आचार्य हस्तमलक अद्वैत विज्ञान केंद्र,
- आचार्य सुरेश्वर सामाजिक विज्ञान अद्वैत केंद्र,
- आचार्य तोटक साहित्य अद्वैत केंद्र ।
इनमें नागर, द्रविड़, उड़िया, मारू गुर्जर, होयसला, उत्तर भारतीय-हिमालयीन सहित अनेक पारम्परिक वास्तुकला शैलियों की श्रृंखला देखने को मिलेगी।
भारतीय स्थापत्य कला का अनुपम संगम
अद्वैत वेदान्त आचार्य पद्मपाद केंद्र, भारत के पूर्वी क्षेत्र की संरचनात्मक शैली से प्रेरित होगा। वहीं, आचार्य सुरेश्वर सामाजिक विज्ञान अद्वैत केंद्र की वास्तुकला द्रविड़ शैली से प्रेरित रहेगी, श्री शृंगेरी शारदापीठम और आसपास के मंदिरों से वास्तुकला सामीप्य रखने वाला गुजरात स्थित द्वारका मंदिर, आचार्य हस्तमलक अद्वैत विज्ञान केंद्र की संरचना का मूल रहेगा।
यह केंद्र चालुक्य वंश में पनपी मारू- 'गुर्जर शैली को भी प्रदर्शित करेगा। आचार्य तोटक साहित्य अद्वैत केंद्र की संरचना उत्तर भारत की स्थापत्य शैली की होगी। इसके अतिरिक्त यहां आचार्य गोविंद भगवतपाद गुरुकुल व आचार्य गौड़पाद अद्वैत विस्तार केंद्र का भी निर्माण होगा। हिमालयी क्षेत्र की स्थापत्य शैली में आचार्य गौड़पाद अद्वैत विस्तार केंद्र को प्राचीन शहर कांचीपुरम से प्रेरणा लेकर संरचना की जाएगी, जो कभी पल्लव साम्राज्य का केंद्र था ।
नागर शैली
मुख्य स्थापत्य शैलियों में से एक, नागर शैली के मंदिर की संरचना की तुलना मानव शरीर के विभिन्न अंगों से की गई है। इस शैली का क्षेत्र उत्तर भारत में नर्मदा नदी के उत्तर तक है परंतु यह कहीं-कहीं अपनी सीमाओं से आगे भी विस्तारित हो गई है। शिल्पशास्त्र के अनुसार नागर मंदिरों के आठ प्रमुख अंग हैं-
1. मूल आधार : नींव ।
2. मसूरक: नींव और दीवारों के बीच वाला भाग।
3. जंघा : दीवारें ।
4. कपोत : कार्निस ।
5. शिखर : मंदिर का शीर्ष अथवा गर्भगृह का ऊपरी भाग ।
6. ग्रीवा : शिखर का ऊपर वाला भाग ।
7. वर्तुलाकार आमलक : शिखर के शीर्ष पर कलश के नीचे का भाग।
8. कलश : शिखर का शीर्षभाग ।
द्रविड़ शैली कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक द्रविड़ शैली के मंदिर पाए जाते हैं। इसकी विशेषताओं में
- प्राकार (चारदीवारी),
- गोपुरम (प्रवेश द्वार),
- वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भगृह (रथ),
- पिरामिडनुमा शिखर,
- मंडप (नंदी मंडप)
- विशाल संकेन्द्रित प्रांगण तथा
- अष्टकोण मंदिर संरचना शामिल हैं।
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