दाल के एक दाने को उगाकर बनाई थी मस्जिद मोठ
हमारा देश कई तरह की किंवदंतियों व कहानियों के लिए मशहूर है ? उसमें भी हरेक ऐतिहासिक इमारत के बनने और बिगड़ने के पीछे की कहानी हमेशा से ही काफी दिलचस्प रहती है। इन्हीं में से एक है दाल के एक दाने से भव्य मस्जिद बनाए जाने की कहानी ।

ये मस्जिद साऊथ एक्सटैंशन पार्ट दो में स्थित है। लोदी कालीन इस मस्जिद को मस्जिद मोठ के नाम से जाना जाता है। इसके बनने की कहानी बड़ी ही दिलचस्प तो है ही लेकिन अन्न की महत्ता को भी बताती है कि कभी सामने पड़े अनाज का तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए।
एक बीज बोकर कई गुना बढ़ाया
मस्जिद मोठ की कहानी कुछ इस तरह है कि इसे सिकंदर लोदी के वजीर मियां भुवा ने तैयार करवाया था। कहते हैं कि वह सिकंदर लोदी के साथ प्रार्थना करने के लिए नजदीक ही बनी एक मस्जिद में आया था। यहां घुटने टेकने के दौरान उसने देखा कि एक पक्षी की चोंच से मसूर के बीज का एक दाना गिर गया है।
उन्हें लगा कि इस दाने को व्यर्थ करने की बजाय अल्लाह की सेवा में लगाया जाना चाहिए। तब उन्होंने इस बीज को अपने बगीचे में बो दिया। कई वर्षों तक उस बीज से उगने वाले पौधे से मिलने वाले बीजों को लगातार बोया गया, जिससे वह कई गुना बढ़ गया। वजीर ने अंत में फसल को बेचकर पैसा कमाया और सुल्तान की अनुमति से उससे साल 1505 में मस्जिद का निर्माण करवाया। यही वजह है कि इस मस्जिद का नाम मस्जिद मोठ रखा गया।
मस्जिद की वास्तुकला जानें
मस्जिद मोठ को बलुआ पत्थर के एक ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है। इस मस्जिद का लेआऊट पूरी तरह चौकोर है। यहां आपको मेहराबों के डिजाइन में मुगल व हिंदू कला का बेजोड़ नमूना देखने को मिलेगा। प्रवेश द्वार की सीढ़ियों के ऊपर 38.6 मीटर चौड़ाई का एक बड़ा प्रांगण है। आंगन के भीतर पश्चिम तरफ मुख्य मस्जिद है। इसमें आयताकार प्रार्थना हॉल है।
2 मंजिला इस मस्जिद में अष्टकोणीय छतरियां हैं। पश्चिम की ओर बुर्ज है। मस्जिद में 3 गुंबद हैं। बीच का गुंबद सबसे बड़ा है।
मेहराब ईरानी डिजाइन में फ्लोरा नक्काशी में बनाए गए हैं, जिनमें कुरान की आयतें लिखीं हुई हैं। सफेद संगमरमर से पैनल बनाए गए हैं, साथ मस्जिद की दीवारों पर रंग-बिरंगी टाइलें भी देखने को मिलती हैं।
मस्जिद मोठ के नाम पर इस इलाके का नाम है
इतिहासकारों का कहना है कि सिर्फ मस्जिद मोठ ही नहीं, बल्कि इस जगह पर कृषि की जाती थी और मस्जिद बनने के बाद अगल-बगल गांव बसाए गए। उस गांव का नाम भी मस्जिद मोठ गांव पड़ा। हालांकि शहरीकरण के चलते अब इस गांव का नाम कहीं पर भी नहीं बचा। फिलहाल मस्जिद मोठ के संरक्षण का कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दिल्ली सर्कल द्वारा किया जा रहा है लेकिन अतिक्रमण के चलते मस्जिद अपनी रंगत और शान को खोती चली जा रही है।
शुक्रवार को पढ़ी जाती है नमाज़
कई ऐतिहासिक मस्जिदों में हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा का रोक लगाई गई है क्योंकि लोग दीवारों पर लिखकर चले जाते हैं और र इमारत को कई प्रकार से नुक्सान भी पहुंचाते हैं लेकिन मस्जिद मोठ एक ती ऐसी मस्जिद है जहां आज भी हर शुक्रवार को जुम्मे की नमाज पढ़ी जाती है। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग इबादत करने के लिए अगल- न बगल के इलाकों से भी पहुंचते हैं। विशेष त्यौहारों के मौकों, जैसे ईद व बकरीद पर यहां नमाजियों की संख्या में काफी इजाफा हो जाता है।
सिकंदर लोधी ने राखी थी मस्जिद की नींव
वजीर मियां भुवा ने मस्जिद का निर्माण करवाने की बात सुल्तान सिकंदर लोदी को बताई तो वजीर की चतुराई और अनाज बचाने की ललक से वह इतना प्रभावित हुआ कि इस मस्जिद के निर्माण की नींव रखने के लिए खुद आया था। वैसे यह भी कहते हैं कि सिकंदर लोदी ने मजाक में अपने वजीर को मसूर का एक दाना तोहफे में दिया था। जिसे उसने अपने बगीचे में लगाकर मस्जिद मोठ का निर्माण किया था। वैसे इस बात में कितनी हकीकत है यह कहना बेमानी है लेकिन आज भी महरौली इलाके में रहने वाले लोग इसी कहानी को सुनाया करते हैं।
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